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झारखंड हाईकोर्ट द्वारा फैसला सुनाने में दो साल की देरी से सुप्रीम कोर्ट 'हैरान' The Supreme Court was 'surprised' by the two-year delay in delivering the verdict by the Jharkhand High Court.

 

इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में हुई थी और 18 जुलाई 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था, लेकिन आज तक कोई फैसला नहीं सुनाया गया है।


सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मेसर्स मीवान स्टील्स लिमिटेड बनाम मेसर्स भारत कोकिंग कोल लिमिटेड मामले में झारखंड हाईकोर्ट द्वारा दो साल से ज़्यादा समय तक फैसला न सुनाने पर गंभीर चिंता जताई।

इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में हुई थी और 18 जुलाई 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था, लेकिन आज तक कोई फैसला नहीं सुनाया गया है।

जस्टिस एमएम सुंदरेश और सतीश चंद्र शर्मा की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट की देरी ने "न्यायिक विवेक को झटका दिया है"।

कोर्ट मीवान स्टील्स लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रहा था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिज़र्व किए गए फैसलों को सुनाने में देरी से जुड़ा बड़ा मुद्दा पहले से ही एक पेंडिंग मामले में विचाराधीन है, जिसकी सुनवाई 14 नवंबर को होनी है।

इसलिए, इसने भारत के चीफ जस्टिस से उचित आदेश लेने के बाद इस मामले को भी उसी के साथ लिस्ट करने का निर्देश दिया।

हाई कोर्ट में यह याचिका 17 अक्टूबर, 2012 के एक बिल्ड-ऑपरेट-मेंटेन कॉन्ट्रैक्ट से जुड़ी थी, जो पाथरडीह वॉशरी के पास 5 MTPA कोयला वॉशरी लगाने के लिए था।

मीवान स्टील्स ने भारत कोकिंग कोल लिमिटेड पर कई कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने का आरोप लगाया है, जिसमें प्रोजेक्ट साइट सौंपने में देरी, यूटिलिटीज़ की सप्लाई न करना और कोयले की घटिया क्वालिटी शामिल है। कंपनी ने ₹13.16 करोड़ की बैंक गारंटी और ₹11.9 करोड़ की रिटेंशन राशि जारी करने की मांग की है।

सुप्रीम कोर्ट में अपील मीवान स्टील्स ने यह कहते हुए दायर की थी कि दलीलें खत्म होने के बाद हाई कोर्ट द्वारा फैसला सुनाने में देरी आर्टिकल 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।

मीवान स्टील्स ने अनिल राय बनाम बिहार राज्य और माधव हयावदनराव होसकोट बनाम महाराष्ट्र राज्य के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सुनवाई और फैसले के बीच बिना वजह की देरी न्याय व्यवस्था में जनता के विश्वास को कम करती है।

इसने झारखंड हाईकोर्ट नियम, 2001 के नियम 101 पर भी ज़ोर दिया, जिसमें कहा गया है कि रिज़र्व किए गए फैसले आमतौर पर दलीलें खत्म होने के छह हफ़्तों के भीतर सुनाए जाने चाहिए, और अगर तीन महीने के भीतर नहीं सुनाए जाते हैं, तो उन्हें दोबारा असाइनमेंट के लिए चीफ जस्टिस के सामने रखा जाना चाहिए।

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