• रवि उपाध्याय
तोड़ना और तुड़वाना हमारे जीवन का अंग बन गया है। इन दोनों क्रियाओं में जो आनंद और दुःख है उसका शब्दों में बयान या कहिए बखान नहीं किया जा सकता है। इस दुनिया में यदि सबसे ज्यादा बार अगर कोई दो चीजें सबसे ज्यादा बार तोड़ी गई है तो उनमें एक है दिल और दूसरी है कसमें यानि प्रॉमिसेस। इसके अलावा कानून तोड़ने की घटनाएं तो रोज़ व रोज़ होती ही रहतीं हैं । मेरा मन यह पक्की तौर पे मानता है कि दिल और कसमें - वादे सदियों से तोड़े जाते रहे हैं और आगे भी ऐसा होता रहेगा। दिलों को तोड़े जाने और फिर जोड़े जाने का यह सिलसिला आज भी जारी है । अब तो यही कहा जा सकता है - जब तक सूरज चांद रहेगा ऐ नादान दिल तेरा यही हाल रहेगा।
हमने यह सब कुछ किताबों से जाना है और कुछ फ़िल्मों से सीखा है कि दिल टूटने के बाद क्या क्या होता है। इसका सही सही पता 1962 में आई फिल्म सन ऑफ इंडिया फिल्म से पता चला। इसमें अभिनेत्री कुमकुम दुखी दिल से आंखों में आंसू भरे हुए गीत गा रहीं थीं - दिल तोड़ने वाले तुझे दिल ढूंढ रहा है, आवाज़ दे तू कौन सी नगरी में छुपा है..। ऐ दिल तोड़ने वाले तुझे दिल ढूंढ रहा है । अब बेचारी कुम कुम को क्या मालूम दिल तोड़ने वाले जाने चले जाते हैं कहां..वे फिर मिलते नहीं है। किसीऔर नए दिल की तलाश में निकल लेते हैं।
वैसे बतला दें कि तोड़ने के शब्द की हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी बड़ी अहम भूमिका रही है। अंग्रेजों के जमाने में आज़ादी के दीवानों की हड्डियां तोड़ी जाती थीं। अंग्रेजों के वही टारगेट हुआ करते थे। बाकी तो अंग्रेजी हुकूमत के गेस्ट आर्टिस्ट हुआ करते थे। उनके इसी आर्ट पर मोहित हो कर अंग्रेज जब देश छोड़ कर अपने वतन को लौटे तो देश की चाबी इन गेस्ट आर्टिस्टों को यानी सियासी कलाकारों को सौंप कर चले गए।
कहते हैं कि एक दिन घूरे या घुड़े के दिन भी फिरते हैं लेकिनआज़ादी के लिए लड़ने वालों के परिवार आज भी संघर्ष कर रहे हैं। नई पीढ़ी को बता दें कि घूरा अथवा घुड़ा क्या होता है। यह वह जगह है जहां शहर या गांव भर का कचरा इकट्ठा किया जाता है। इसे आज कल डंपिंग स्टेशन बोला जाता है। पहले स्कूल में पढ़ाया जाता था कि घूरे से सोना कैसे बनाएं ? अब आलू से सोना बनाने की बातें की जाती हैं। वैसे आलू से चिप्स बनाने वाली कंपनियों ने सिद्ध कर दिया है कि आलू से सोना कैसे बनाया जा सकता है। वैसे दिल्ली में सत्ता रूढ़ पार्टी ने बता दिया है कि घूरे या कचरे के ढेर में से वोट कैसे बनाए जा सकते हैं।
महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता बनवाने में भी इस तोड़ने की क्रिया की बड़ी भूमिका रही है। वे अंग्रेजों के बनाए नमक कानून और नील कानून तोड़ कर जनता के हीरो बन गए थे । गांधी जी ने नमक कानून के खिलाफ साबरमती से दांडी तक की पदयात्रा की और नमक बना कर अंग्रेजों के बनाए कानून को तोड़ा। अंग्रेज हुकूमत ने किसानों के नमक बनाने पर रोक लगा दी थी। नमक हमारे देश का था। अंग्रेजों ने भी वही नमक खाया था पर उन्होंने नमक पर टैक्स लगा दिया। जैसे अंग्रेजों ने नमक के साथ गद्दारी की वैसा ही आगे चल कर जिन्ना और उनके साथियों ने भी किया। उन्होंने भी नमक हरामी करते हुए देश के दो टुकड़े करवा डाले।
नमक सत्याग्रह के बाद गांधी जी ने बिहार के चंपारण पहुंच कर नील कानून तोड़ा। उसके बाद अंग्रेज सरकार ने नील की खेती करने से इनकार करने वाले किसानों को तोड़ दिया। यानि तोड़ फोड़ का यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है।
बचपन में चोरी से बागानों से आम, इमली और बैर तोड़ने और तोड़ कर दौड़ने का जो मज़ा था उसका आनंद ही अलग होता था। देश आज़ाद होने के बाद तोड़ने का काम आम हो गया। जैसे आजादी के बाद सरकार ने हरेक परिवार को मकान, बिजली, पानी और सड़क देने का वायदा किया था। उसे वायदा तोड़ दिया गया। गांधी जी ने अंग्रेजी हुक़ूमत द्वारा बनाए गए जन विरोधी कानून को देश और जनहित में तोड़ा था।
आजादी के बाद देश की जनता पूरी तरह से गांधीवादी बन गई और उन्हीं का अनुसरण करते हुए अपनी ही सरकार के बनाए कानूनों और नियमों को तोड़ मरोड़ कर उनके मार्ग पर चल कर गांधीवादी बन कर बापू को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर रही है। इसमें चौराहों पर लगे सिंगल इस बात की गवाही देते हैं कि कैसे कानून तोड़े जाते हैं। सरकार ने कहा दो पहिया चालक हेलमेट लगाएं। भला क्यों लगाएं ? खोपड़ी हमारी, फूट गई तो मुआवजा मांगेंगे। लाल बत्ती हो तो हो टोपी लगाई और सर्र से निकल गए । पकड़ाए तो विक्टिम कार्ड तो है ही। कह देंगे कि शरीयत में हेलमेट लगाने की बात नहीं की गई है। भगवद गीता में भी कहा गया है कि तुम्हारे हाथ में कुछ नहीं है। जो करता हूं वो मैं करता हूं। वैसे भी एक भजन में और अंधा कानून फिल्म के एक गाने में भी बयान किया गया है कि जितनी चाबी भरी राम ने उतना चले खिलौना।
लगता है कि कानून बनाने वाले भी गजब के नेत्र हीन हैं । अरे भाई,जब देख रहे हो कि दो पहिया वाहन चलाने वाला व्यक्ति खुद ही हेलमेट नहीं लगा रहा है इसके बाद भी हुकुम जारी कर दिया कि पीछे बैठी सवारी भी हेलमेट लगाएं। इन्हें कोई कैसे बताए कि दो पहिया वाहन पर चार लोग समा जाते हैं तो फिर कैसे सभी हेलमेट लगा सकते हैं। एक दूसरे से खुपड़ियां नहीं टकराएंगी। हमने इस बारे में दरयाफ़्त की तो पता चला कि यह जानबूझ कर किया गया है। ताकि ट्रैफिक पुलिस की इनकम बढ़े। दो में से एक के की दक्षिणा तो मिल ही जाएगी।
कानून और नियमों को तोड़ना हमारी आज़ादी का सबूत बन गया है। वायदे तोड़ना तो सियासी दलों का शगल बन गया है। हर चुनाव में सियासी दलों द्वारा जनता से बड़े बड़े वायदे किए जाते हैं पर इनमें से कितने पूरे होते हैं यह सारा देश जानता है। सियासी दल हर चुनाव में थोक के भाव जनता से वादे करते हैं बताओ काहे के वास्ते ? ताकि उन्हें तोड़ा जा सके। कहा भी गया कि वायदे किए ही तोड़ने के लिए हैं। इससे यह एहसास बना रहता है कि भैया हम भी कम तोड़ू नहीं हैं। एक देख लो कांग्रेस ने सचिन पायलट,टी एस सिंहदेव, डीके शिवकुमार और ज्योतिरादित्य से मुख्यमंत्री बनाने का वायदा किया था। क्या हुआ। तोड़ दिया न। 60 सालों से जनता से शुद्ध पानी देने का वायदा भी नहीं निभाया तो जनता ने भी हुक्का पानी बंद कर दिया।
अब 1962 में आई इस फिल्म अनोखी रात के गाने को ही देख लीजिए। फिल्म में अरुणा ईरानी उछल उछल कर चेतावनी देते हुए खुशी खुशी गाना गा रही है मेरी बेरी के बैर मत तोड़ो कोई कांटा चुभ जाएगा। और आज ज़माना इतना बदल गया है कि बैर तो छोड़िए आज आपने पत्ती भी तोड़ी तो माली या चौकीदार आपको दौड़ा देगा।
आज़ादी के बाद तोड़ने जोड़ने का काम आज भी जारी है। अब कानून तोड़े और तुड़वाने का काम आज भी जारी है। यूपी में योगी इस काम में पूरे देश में सबसे आगे हैं।उन्होंने वहां माफियाओं की कमर तोड़ दी है। सरकारी जमीनों पर कब्जा कर बनाए महल तोड़ दिए हैं। गुंडे, माफियाओं के हौसले तोड़ दिए हैं। और यह जनता भी कम तोड़ू नहीं है । वह भी एक दशक से उन सियासी दलों का गुरूर तोड़ रही है जिन्होंने जनता से किए वादों को तोड़ा है। इन सियासी दलों पर हिंदी गजलकार दुष्यन्त त्यागी की गजल पूरी तरह फिट बैठती है जिसमें कहा गया है कि यूं तो तय था चिराग़ा हर एक घर के लिए कहां मयस्सर नहीं शहर भर के लिए। सियासी नेताओं को समझ लेना चाहिए कि मतदाता की मार जब पड़ती है तो भले ही कोसों दूर तक की पदयात्रा कर लो या पूरा देश नाप लो...पर मंज़िल है कि मिलती ही नही है।

Post a Comment