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विनोद बाबा कौन हैं जिनसे मिलने बरसाना पहुंच गए प्रेमानंद महाराज, दो संतों के दिव्य मिलन से भक्‍त निहाल Who is Vinod Baba, the saint whom Premanand Maharaj went to meet in Barsana? Devotees were overjoyed by the divine meeting of the two saints.

 

मथुरा: ब्रज की पावन धरा पर भक्ति और अध्यात्म का एक ऐसा दृश्य देखने को मिला जिसने भक्तों के हृदय को आनंदित कर दिया। राधा रानी की लाडली शरण स्थली बरसाना के पीली पोखर स्थित 'प्रिया कुंज आश्रम' में दो महान संतों का अद्भुत मिलन हुआ। सुप्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज , ब्रज के विरक्त संत विनोद बाबा महाराज से मिलने उनके निवास स्थान पहुंचे।



वृंदावन के 'राधा केली कुंज' से जब प्रेमानंद महाराज, बरसाना के प्रिया कुंज पहुंचे, तो वहां का वातावरण पूरी तरह से भक्तिमय हो गया। दोनों संतों ने एक-दूसरे का अभिवादन अत्यंत विनम्रता और प्रेम के साथ किया। इस मिलन को ब्रज के 'प्रेम रस' और 'निकुंज रस' का जीवंत संगम माना जा रहा है। विनोद बाबा, जो अपनी कठिन साधना और एकांत वास के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने प्रेमानंद महाराज का भावपूर्ण स्वागत किया। दोनों संतों के बीच काफी समय तक श्रीजी राधा रानी की लीलाओं और आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा हुई।संतों की विनम्रता ने जीता भक्तों का दिल

इस मुलाकात के दौरान सबसे खास बात संतों की सरलता और विनम्रता रही। भक्तों के लिए यह दृश्य किसी उत्सव से कम नहीं था, जहां दो ऐसे महापुरुष एक साथ बैठे थे जिनका जीवन केवल राधा-नाम के सुमिरन के लिए समर्पित है। संतों ने एक-दूसरे के प्रति जो सम्मान दिखाया, वह सनातन परंपरा और संत मत की श्रेष्ठता का प्रतीक है।प्रिया कुंज और पीली पोखर में उल्लास

बरसाना के प्रिया कुंज आश्रम में इस मिलन की सूचना मिलते ही बड़ी संख्या में भक्त दर्शनों के लिए उमड़ पड़े। पीली पोखर का यह क्षेत्र संतों की उपस्थिति से ऊर्जावान हो उठा। सोशल मीडिया पर भी इस मिलन की तस्वीरें और वीडियो तेजी से वायरल हो रहे हैं, जिन्हें देखकर श्रद्धालु इसे साक्षात राधा-माधव का प्रेम बता रहे हैं।गौड़ीय वैष्णव परंपरा से हैं संत विनोद बाबा

बरसाना के 'प्रिया कुंज' आश्रम में निवास करने वाले विनोद बाबा ब्रज के अत्यंत सरल और विरक्त संत माने जाते हैं। वे गौड़ीय वैष्णव परंपरा से हैं और अपना अधिकांश समय श्रीजी (राधा रानी) की भक्ति और साधना में व्यतीत करते हैं। उनकी सौम्यता और करुणा ऐसी है कि वे स्वयं मार्ग में बंदरों और बच्चों को बड़े प्रेम से प्रसाद वितरित करते हैं।13 साल की उम्र में संन्‍यास ले चुके हैं प्रेमानंद महाराज

कानपुर में जन्मे अनिरुद्ध कुमार पांडेय ने 13 वर्ष की अल्पायु में संन्यास ले लिया। अब वे प्रेमानंद महाराज कहलाने लगे। पूर्व में वे ज्ञान मार्ग पर थे, लेकिन वृंदावन आने के बाद राधा रानी की भक्ति में लीन हो गए। वे 'राधा केली कुंज' आश्रम के माध्यम से 'राधा नाम' का प्रचार करते हैं। दोनों किडनियां खराब होने के बावजूद उनकी दिनचर्या और पदयात्रा भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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