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नेहरू पेपर विवाद क्या है जिसे लेकर आमने-सामने केंद्र सरकार और कांग्रेस, सोनिया गांधी पर उठे सवाल What is the Nehru Papers controversy that has pitted the central government against the Congress party, raising questions about Sonia Gandhi?


संसद के शीतकालीन सत्र के बीच केंद्र सरकार और कांग्रेस नेहरू पेपर्स पर आमने-सामने है. सरकार जहां नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (एनएमएमएल) से जुड़े 51 बक्सों पर कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी को घेर रही है तो वहीं कांग्रेस बीजेपी और सरकार से माफी की मांग कर रही है. क्या है ये पूरा मामला और कहां से इस विवाद की शुरुआत हुई, आइए समझते हैं.



बीजेपी सांसद संबित पात्रा ने लोकसभा में लिखित प्रश्न किया था. उन्होंने पूछा था कि क्या 2025 में पीएमएमएल के वार्षिक निरीक्षण के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू से संबंधित कतिपय दस्तावेज संग्रहालय से गायब पाए गए हैं. इसके बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया. उन्होंने लिखा, संसद में बोलते हुए बीजेपी के सदस्यों ने अपने कागज़ों के बंडल से कोई न कोई डॉक्यूमेंट निकालकर नेहरू पर हमला किया है. वे यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि उन्होंने कुछ गहरी रिसर्च की है और कुछ सनसनीखेज चीज़ खोजी है जिसे दबाकर रखा गया था.

जयराम ने आगे कहा कि सच तो यह है कि वे लगभग हमेशा ऐसा मटीरियल इस्तेमाल कर रहे हैं जो पब्लिक डोमेन में है. खासकर नेहरू के चुने हुए कामों (1903-1964) के 100 वॉल्यूम जो अब आसानी से मिल जाते हैं.

सरकार का पलटवार

इसके बाद बीजेपी-कांग्रेस में जुबानी जंग शुरू हो गई. मंगलवार को लोकसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में सरकार ने कहा कि नेहरू से जुड़े दस्तावेज गायब नहीं हुए हैं. इसके बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सरकार से माफी मांगने की मांग की. उन्होंने कहा, आखिरकार लोकसभा में सच्चाई सामने आ गई. क्या अब माफी मांगी जाएगी.

सरकार ने इसके बाद पलटवार किया. संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने जवाब दिया. उन्होंने कहा, 2025 में पीएमएमएल के वार्षिक निरीक्षण के दौरान संग्रहालय से नेहरू से संबंधित कोई दस्तावेज गायब नहीं पाया गया है. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि सवाल यह नहीं है कि दस्तावेज कहां हैं, यह है कि अब तक इन्हें सार्वजनिक अभिलेखागार में वापस क्यों नहीं किया गया. शेखावात ने ये भी कहा कि नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे, उनसे जुड़े दस्तावेज निजी संपत्ति नहीं बल्कि देश की धरोहर है और ऐसे अहम ऐतिहासिक अभिलेख किसी की निजी संपत्ति नहीं, बल्कि सार्वजनिक अभिलेखागार है जिससे विद्वान, शोधकर्ता, विद्यार्थी और आम नागरिक नेहरू के दौर के सत्य का निष्पक्ष एवं पारदर्शी अध्ययन कर सकेंगें.

शेखावत ने यह भी कहा कि जयराम रमेश सोनिया गांधी से आग्रह करें कि वे अपने लिखित वचन का पालन करते हुए इन दस्तावेजों को प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय (पीएमएमएल) को लौटाएं. शेखावत के मुताबिक, साल 2008 में यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (एनएमएमएल) से जुड़े 51 बक्सों में रखे गए ये दस्तावेज गांधी परिवार को विधिवत प्रक्रिया के तहत लौटाए गए थे और इन दस्तावेजों का पूरा रिकॉर्ड और कैटलॉग आज भी सुरक्षित है.

शेखावत ने कहा कि ऐतिहासिक अभिलेखों को सार्वजनिक करना केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि नैतिक दायित्व भी है. उन्होंने उम्मीद जताई कि सोनिया गांधी इस विषय में जल्दी सकारात्मक कदम उठाएंगी. दरअसल पीएमएमएल की तरफ से कई बार सोनिया गांधी को औपचारिक पत्र भेजे गए थे. उसके बाद जनवरी और जुलाई 2025 में भी इस संबंध मे रिमाइंडर भी भेजे गए थे.

क्या है नेहरू पेपर्स?

जवाहरलाल नेहरू के प्राइवेट कागजात, जैसे चिट्ठियां, डायरी, नोट्स, भारतीय इतिहास की जानी-मानी हस्तियों की सोच और निजी जिंदगी की झलक देते हैं. गांधी परिवार के पास इन दस्तावेजों के कम से कम 51 कार्टन हैं. इनमें पूर्व पीएम के पिता मोतीलाल नेहरू, मां स्वरूप रानी, ​​पत्नी कमला नेहरू, बहनें विजया लक्ष्मी पंडित और कृष्णा हुथीसिंग, बेटी इंदिरा गांधी, एडविना माउंटबेटन, पीएन हक्सर, अल्बर्ट आइंस्टीन, जयप्रकाश नारायण, बाबू जगजीवन राम और अन्य लोगों को लिखे गए पत्र शामिल हैं.

प्राइवेट पेपर्स में कई लेख, नोट्स, विचार, सोच, बातचीत और संचार के दूसरे रूप होते हैं, जो पब्लिक पर्सनालिटी ने किए होंगे और जिनके रिकॉर्ड उनके घर पर या उनके परिवार के पास मिलते हैं. आमतौर पर इन्हें लाइब्रेरी और दूसरे संस्थानों को दान कर दिया जाता है और रिसर्च करने वालों के खोल दिया जाता है. ये दस्तावेज़ हमें आज़ादी की लड़ाई के दौरान और नेहरू के प्रधानमंत्री रहते हुए असल में क्या हुआ था, इसके बारे में बहुत सारी जानकारी देंगे. इनमें ब्रिटिश, चीनी और दूसरों के साथ हुए बातचीत के रिकॉर्ड भी होंगे, जो बहुत जानकारी देने वाले होंगे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, नेहरू पेपर्स 1971 के बाद इंदिरा गांधी ने डोनेट किए थे और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी ने कुछ और पेपर्स दिए थे. हालांकि, 2008 में सोनिया गांधी ने इनमें से कई पेपर्स वापस ले लिए और कुछ तक एक्सेस भी बैन कर दिया.

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