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हाईकोर्ट पहुंचा विधायकों की सैलरी बढ़ाने का मामला, याचिकाकर्ता ने कहा- यह जनता के हितों के खिलाफThe matter of increasing the salaries of MLAs reached the High Court, the petitioner said – this is against the public interest.

 ओडिशा विधानसभा द्वारा विधायकों के वेतन और भत्तों में की गई भारी बढ़ोतरी अब न्यायिक जांच के दायरे में आ गई है। इस फैसले को जनविरोधी और असंवैधानिक बताते हुए  उड़ीसा हाईकोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है।

याचिका में मांग की गई है कि वेतन-भत्तों में की गई वृद्धि पर तत्काल रोक लगाई जाए और पूरे निर्णय की संवैधानिक समीक्षा की जाए।

क्या है पूरा मामला

9 दिसंबर को ओडिशा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान विधायकों, मंत्रियों और विभिन्न पदाधिकारियों के वेतन-भत्तों में संशोधन से जुड़े विधेयक सर्वसम्मति से पारित किए गए थे। इन संशोधनों के बाद विधायकों का मासिक मूल वेतन 35 हजार रुपये से बढ़ाकर 90 हजार रुपये कर दिया गया।

इसके अलावा, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, सचिवीय भत्ता, आवास, वाहन, यात्रा और अन्य सुविधाओं को मिलाकर एक विधायक को प्रति माह कुल लगभग 3.45 लाख रुपये तक का भुगतान होने का प्रावधान किया गया है।


पीआईएल में क्या दलीलें दी गईं

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि राज्य पहले से ही आर्थिक दबाव में है और सरकार पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है। ऐसे समय में जनप्रतिनिधियों के वेतन-भत्तों में इस स्तर की बढ़ोतरी आम जनता के हितों के खिलाफ है।

पीआईएल में कहा गया है कि एक ओर सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं के लिए संसाधनों की कमी की बात करती है, वहीं दूसरी ओर जनप्रतिनिधियों के लिए करोड़ों रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ स्वीकृत कर दिया गया।

याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि वेतन वृद्धि का यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है। इसमें कहा गया है कि विधायकों ने स्वयं अपने वेतन में वृद्धि का निर्णय लिया, जिससे हितों के टकराव का भी सवाल खड़ा होता है।

सरकारी खजाने पर कितना पड़ेगा असर

पीआईएल के अनुसार, इस वेतन वृद्धि से राज्य सरकार के खजाने पर हर साल करोड़ों रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा। याचिकाकर्ता का कहना है कि यदि यही राशि जनकल्याणकारी योजनाओं, रोजगार सृजन या स्वास्थ्य सेवाओं में लगाई जाए, तो इसका सीधा लाभ आम लोगों को मिल सकता है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया

वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी के फैसले को लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलकों में भी तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कई सामाजिक संगठनों और नागरिक मंचों ने इसे नैतिक रूप से गलत बताया है। वहीं कुछ विपक्षी नेताओं ने भी सार्वजनिक रूप से कहा है कि मौजूदा हालात में इस तरह की बढ़ोतरी जनभावनाओं के विपरीत है।

अब आगे क्या?

हाईकोर्ट में दायर पीआईएल पर सुनवाई की तारीख तय होने का इंतजार है। यदि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप करती है, तो न केवल ओडिशा बल्कि अन्य राज्यों में भी जनप्रतिनिधियों के वेतन निर्धारण की प्रक्रिया पर नई बहस छिड़ सकती है। फिलहाल, जनता की नजरें हाईकोर्ट के रुख पर टिकी हैं कि क्या यह फैसला न्यायिक कसौटी पर टिक पाएगा या नहीं।

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