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इंदौर बिजली कंपनी ने मुकदमेबाज ठेकेदार को दे दिया 21 करोड़ का ठेका, आईटी पार्कों से लेकर सरकारी विभागों में भारी अनियमितताएँ उजागरIndore Electricity Company awards 21 crore contract to litigious contractor, exposing massive irregularities in IT parks and government departments.

 इंदौर। विधानसभा के पटल पर पेश की गई भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की नवीनतम रिपोर्ट ने प्रदेश के कई सरकारी विभागों की करोड़ों रुपये की अनियमितताओं की परतें उधेड़कर रख दी हैं। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि नगरीय निकायों, आईटी पार्कों, बिजली वितरण कंपनियों से लेकर कई अन्य महकमों में लापरवाही, भ्रष्टाचार और मॉनिटरिंग की भारी कमी देखने को मिली है। चौंकाने वाली बात यह है कि इंदौर की पश्चिमी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने एक ऐसे ठेकेदार को 21.23 करोड़ रुपये का ठेका सौंप दिया, जिसने कंपनी के खिलाफ तीन मुकदमे दायर कर रखे थे। इन मुकदमों को छुपाते हुए ठेकेदार ने न केवल टेंडर हासिल किया, बल्कि कंपनी के जिम्मेदार अधिकारियों और विधि विभाग ने भी उसकी मंजूरी दे दी। कैग की रिपोर्ट बताती है कि मध्यप्रदेश स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा विकसित किए गए आईटी पार्कों में भी भारी अनियमितताएँ पाई गईं। मॉनिटरिंग के अभाव में कई गैर-आईटी कंपनियों को भूखंड आवंटित कर दिए गए, जिन पर दवा कारोबार, नर्सिंग होम और अन्य गैर-आईटी गतिविधियाँ संचालित होती मिलीं। जहां आईटी उद्योग को बढ़ावा देने का लक्ष्य था, वहां मूल उद्देश्य ही बदल गया। रिपोर्ट के अनुसार, कुल 240 भूखंडों में से केवल 26 में ही उत्पादन या आईटी गतिविधियाँ होती दिखाई दीं, जो इन परियोजनाओं की विफलता और अव्यवस्था को उजागर करता है।

रिपोर्ट ने बिजली वितरण कंपनियों में भी गंभीर खामियाँ सामने रखीं। मध्य, पूर्व और पश्चिम-इन तीनों बिजली कंपनियों के कई ठेकों की तुलना करने पर पाया गया कि बोली मांगने के लिए जारी बिल ऑफ क्वांटिटी और वास्तविक क्लोज़र रिपोर्ट में दर्ज कार्य में भारी अंतर था। इंदौर की बिजली कंपनी द्वारा अधिक दरों पर ठेके देना और मुकदमेबाज ठेकेदार को 21 करोड़ से अधिक का काम सौंपना इस अव्यवस्था का बड़ा उदाहरण है।

कैग रिपोर्ट 2023 के वित्त वर्ष के आधार पर बनाई गई है, जिसमें विभिन्न सरकारी विभागों की पोलपट्टी खुलकर सामने आई है। यह वही कैग है जिसकी रिपोर्टों के आधार पर भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए देशभर में कई घोटालों को लेकर कांग्रेस सरकार को कठघरे में खड़ा किया था—2जी स्पेक्ट्रम, कोयला घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल आदि इसके प्रमुख उदाहरण रहे हैं। लेकिन अब जब कैग ठोस प्रमाणों के साथ भाजपा शासित राज्यों में अनियमितताओं की ओर संकेत करता है, तब न तो राजनीतिक गलियारे में उतना शोर नजर आता है, न ही मीडिया में बड़े पैमाने पर बहस दिखाई देती है। रिपोर्ट बताती है कि एकीकृत विकास योजना सहित कई योजनाओं में भी व्यापक अनियमितताएँ पाई गई हैं। सवाल यह उठता है कि जब कैग जैसी संवैधानिक संस्था लगातार हजारों करोड़ रुपये की गड़बड़ियों की ओर इशारा कर रही है, तब इन मामलों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? क्या विभागीय अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत के कारण ये मामले दबा दिए जाते हैं? और क्या जनता के पैसों की सुरक्षा करने वाले तंत्र में सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे?

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