इंदौर का ऐतिहासिक रविन्द्र नाट्यगृह आज एक अद्भुत, ऊर्जावान और प्रेरक परिवेश का साक्षी बना, जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की “प्रमुखजन गोष्ठी” में समाज के विविध क्षेत्रों से हजारों प्रतिनिधि एकत्र हुए। ‘संघ की सौ वर्षी यात्रा’ के अवसर पर आयोजित इस गोष्ठी ने विचारों, मूल्यों और राष्ट्रधर्म के भाव को नए सिरे से अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माननीय सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले, जो अपने विचारों के प्रखर नेतृत्व और राष्ट्रधर्मी दृष्टि के लिए जाने जाते हैं।
पहला सत्र: संघ की 100 वर्षी यात्रा — तपस्या, त्याग और राष्ट्रनिर्माण की गाथा
सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने अपने विस्तृत उद्बोधन में संघ की सौ वर्ष की अद्भुत यात्रा का वर्णन किया।
उन्होंने बताया कि—
• 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने जिस यज्ञकुंड में राष्ट्रसेवा की पहली आहुतियाँ डाली थीं, वह आज विश्व के सबसे बड़े संगठनों में से एक बन चुका है।
• संघ ने केवल शाखाएँ नहीं बढ़ाईं, बल्कि समरस और संगठित समाज के निर्माण का अमिट संकल्प रचा।
• पूरे भारत में फैले 1.70 लाख सेवा प्रकल्पों, बाल संस्कार केंद्रों, वनवासी कल्याण, ग्राम विकास एवं पर्यावरण–संरक्षण गतिविधियों का उल्लेख हुआ।
• उन्होंने द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी माधव सदाशिव गोलवलकर की राष्ट्रनीति, आध्यात्मिक विद्वत्ता और अनुशासन को संघ की निरंतर प्रेरणा बताया।
सभा स्थल तालियों से गूँज उठा जब सरकार्यवाह जी ने कहा—
“राष्ट्र केवल भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और साझा स्मृतियों से निर्मित जीवंत चेतना है।”
पहले सत्र के बाद चाय-पान का छोटा विराम हुआ, किन्तु लोगों के मन में संघ की यात्रा की व्यापकता का भाव गूँजता रहा।
दूसरा सत्र: हिंदुत्व — भारत की आत्मा, समाज का स्वभाव
यह सत्र आज का केंद्र बिंदु था। हिंदुत्व पर इतनी प्रखर और संतुलित व्याख्या शायद लंबे समय बाद सुनाई दी।
सरकार्यवाह जी ने गूंजते शब्दों में कहा:
मुख्य विचार:
1. “हिंदुत्व समाज की आत्मा है।”
यह केवल आस्था नहीं, बल्कि जीवन का व्यवहार और मूल्य–मान्यता है।
2. “आर्यभूमि हमारी माता है; हम पृथ्वी के पुत्र हैं।”
इस भाव ने भारतीय संस्कृति को प्रकृति–संरक्षण का प्रथम संस्कार दिया।
3. “भारतवर्ष विश्व की ज्ञान की प्रथम किरण है।”
यहाँ वेदों से लेकर विज्ञान तक का अखंड प्रवाह रहा है।
4. “‘भा’ का अर्थ है प्रकाश—इसलिए जो ज्ञान के प्रकाश में रत हो, वही ‘भारत’ है।”
यह व्युत्पत्ति ही भारतवर्ष की आध्यात्मिक पहचान को स्थापित करती है।
5. उन्होंने ऐतिहासिक तथ्य रखा कि—
“गुरुनानक देव जी ने पहली बार ‘हिंदुस्तान’ शब्द को लोकप्रचलन में रखा।”
6. “हिंदू एक स्वभाव है; धर्म सनातन है।”
अर्थात हिंदू होना किसी पंथ की सीमा नहीं, बल्कि कर्म, विचार और व्यवहार का स्वरूप है।
7. “धर्मनिरपेक्षता भारत की देन नहीं; यह पश्चिम की राजनीतिक उपज है।”
भारत का चिंतन तो “सर्वधर्म समभाव” और “वसुधैव कुटुम्बकम्” की परंपरा से निर्मित हुआ है।
इन बिंदुओं ने सभागार में बैठे हर व्यक्ति को चिंतन, गर्व और पुनः राष्ट्र–समर्पण की भावना से भर दिया।
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तीसरा सत्र: जिज्ञासा–समाधान — समाज के प्रश्न, संघ का दृष्टिकोण
तृतीय सत्र में प्रश्नोत्तर के माध्यम से अनेक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे गए:
• हिंदुत्व की आधुनिक परिभाषा क्या है?
• वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका कैसे बढ़ रही है?
• शिक्षा और संस्कृति में संघ की क्या भूमिका होनी चाहिए?
• युवा पीढ़ी को राष्ट्रवाद कैसे समझाया जाए?
सरकार्यवाह जी ने हर प्रश्न का अत्यंत तर्कपूर्ण, शांत और लौकिक उत्तर देकर उपस्थित जनों को संतुष्ट किया। यह सत्र ज्ञानवर्धक होने के साथ–साथ अत्यंत संवादात्मक रहा।
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सहभोज: संगठन की एकात्मता का प्रतीक
कार्यक्रम का समापन सहभोज के साथ हुआ। यह परंपरा ‘संगठन में समानता’ के मूल भाव को पुनः स्थापित करती है।
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समापन: राष्ट्र का भविष्य स्वाभिमान और संस्कार से ही निर्मित होगा
इस ऐतिहासिक गोष्ठी ने यह स्पष्ट कर दिया कि—
• संघ की 100 वर्षी यात्रा केवल संगठन का इतिहास नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की आध्यात्मिक गाथा है।
• हिंदुत्व को लेकर जो भ्रम फैलाए जाते हैं, वे ज्ञान और तथ्य के सामने स्वतः नष्ट हो जाते हैं।
• भारत का भविष्य तभी सुरक्षित है जब उसका समाज अपनी जड़ों, संस्कृति और मूल्यों से जुड़ा रहे।
रविन्द्र नाट्यगृह से निकलते हर व्यक्ति के चेहरे पर एक नवीन ऊर्जा, गर्व और कर्तव्यभाव दिखाई दे रहा था।
मंच पर शोभायमान थे—
• डॉ. प्रकाश जी शास्त्री, माननीय प्रांत संघचालक, मालवा प्रांत
• डॉ. मुकेश जी मोढ़, माननीय विभाग संघचालक
• कार्यक्रम में अतिथि के रूप में उपस्थित—केंद्रीय मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, महापौर पुष्यमित्र भार्गव, सांसद संकर लालवानी, मालवा-निमाड़ के विभिन्न शहरों के विधायक, सांसद, हाईकोर्ट अधिवक्ता, चार्टर्ड अकाउंटेंट, डॉक्टर, पत्रकार तथा समाज के अग्रणी औद्योगिक घरानों के प्रतिनिधि
रविन्द्र नाट्यगृह की विशालता आज छोटी लग रही थी क्योंकि उपस्थित जनसमूह का उत्साह किसी पर्व की भाँति उमड़ रहा था।
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