इंदौर। इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट पहले ही देरी का शिकार है और अब अंडरग्राउंड रूट में किए गए बदलाव के चलते इसकी लागत में भी भारी बढ़ोतरी तय मानी जा रही है। खजराना से ही मेट्रो को अंडरग्राउंड करने के हालिया निर्णय के बाद पूरे प्रोजेक्ट पर इसका सीधा असर पड़ा है। इस बदलाव के कारण करीब साढ़े तीन किलोमीटर लंबे नए अंडरग्राउंड रूट का दोबारा सर्वे कराना पड़ेगा और टेंडर प्रक्रिया भी नए सिरे से करनी होगी। पहले करीब साढ़े सात हजार करोड़ रुपये का इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट अब बारह हजार करोड़ रुपये की लागत को पार कर चुका है और जानकारों के अनुसार इसमें अभी और बढ़ोतरी संभव है।
रोबोट चौराहा से एमजी रोड तक एलिवेटेड कॉरिडोर का ठेका यूआरसी कंस्ट्रक्शन कंपनी को 543 करोड़ रुपये में दिया गया था, जिसमें साढ़े पांच किलोमीटर का निर्माण शामिल था, लेकिन अब कंपनी सिर्फ करीब दो किलोमीटर का ही काम कर पाएगी। ऐसे में कंपनी द्वारा हर्जाने की मांग की जाएगी, जिससे मेट्रो कॉरपोरेशन पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। मेट्रो प्रोजेक्ट में यह बदलाव कागजों पर भले ही आसान नजर आए, लेकिन जमीनी स्तर पर इसके कई जटिल पहलू हैं। सबसे पहले बढ़ी हुई लागत का विस्तृत आंकलन किया जाएगा। फिलहाल करीब 900 करोड़ रुपये के अतिरिक्त खर्च का अनुमान लगाया गया है, जबकि इससे पहले विशेषज्ञों ने ही लागत में करीब 1600 करोड़ रुपये तक की बढ़ोतरी की बात कही थी। यह अनुमान भी करीब एक साल पुराना है और इस दौरान निर्माण सामग्री और अन्य खर्च लगातार बढ़ते रहे हैं।
इंदौर मेट्रो का मूल प्रोजेक्ट करीब 32 किलोमीटर का है, जिसमें साढ़े आठ किलोमीटर अंडरग्राउंड और शेष हिस्सा एलिवेटेड कॉरिडोर के रूप में प्रस्तावित है। पहले चरण में गांधी नगर से रोबोट चौराहा तक करीब 11 किलोमीटर एलिवेटेड कॉरिडोर का काम लगभग पूरा हो चुका है। इसके बाद रोबोट चौराहा से खजराना, बंगाली, पलासिया चौराहा होते हुए एमजी रोड तक साढ़े पांच किलोमीटर एलिवेटेड कॉरिडोर का ठेका आरवीएनएल की सब-कॉन्ट्रैक्टर कंपनी यूआरसी कंस्ट्रक्शन को दिया गया था और कंपनी ने रोबोट चौराहा से खजराना तक निर्माण कार्य भी कर लिया है। इसके बाद काम की अनुमति नहीं मिली, क्योंकि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने समीक्षा बैठक में खजराना से ही मेट्रो को अंडरग्राउंड करने का निर्णय लिया।
इस फैसले के चलते अब साढ़े तीन किलोमीटर का एलिवेटेड कॉरिडोर नहीं बनेगा। कंपनी ने साढ़े पांच किलोमीटर के हिसाब से संसाधन, मशीनरी और तैयारी कर रखी थी, इसलिए अब मामला आर्बिट्रेशन तक पहुंचने की संभावना है और मेट्रो कॉरपोरेशन को भारी जुर्माना भी चुकाना पड़ सकता है। यह प्रक्रिया भी आसान नहीं होगी, क्योंकि इसमें ऑडिट आपत्ति, तकनीकी जांच और विभिन्न स्तरों पर स्वीकृति की जरूरत पड़ेगी।
दूसरी ओर, अंडरग्राउंड रूट के लिए पहले से ही हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी और टाटा प्रोजेक्ट्स को साढ़े आठ किलोमीटर के लिए 2191 करोड़ रुपये का ठेका दिया जा चुका है। टेंडर शर्तों के अनुसार अधिकतम 25 प्रतिशत अतिरिक्त कार्य ही उसी ठेके में कराया जा सकता है, यानी करीब दो किलोमीटर तक ही काम संभव है, जबकि अब अंडरग्राउंड रूट साढ़े तीन किलोमीटर तक बढ़ गया है। ऐसे में नए सिरे से सर्वे और टेंडर प्रक्रिया अनिवार्य हो जाएगी।
इसके अलावा बढ़ी हुई लागत के लिए राज्य सरकार को कैबिनेट से अतिरिक्त वित्तीय स्वीकृति लेनी होगी और प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजना पड़ेगा। साथ ही एशियन डेवलपमेंट बैंक की भी मंजूरी आवश्यक होगी, जिसने इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए ऋण उपलब्ध कराया है। कुल मिलाकर यह पूरी प्रक्रिया लंबी, जटिल और समय लेने वाली है, जबकि इसे फिलहाल जितना सरल दिखाया जा रहा है, वास्तविकता उससे कहीं ज्यादा कठिन है।
जहां एक ओर खजराना से अंडरग्राउंड रूट को लेकर लंबे समय से जनप्रतिनिधियों की मांग थी, जिसे अब मंजूरी मिल गई है, वहीं दूसरी ओर एमजी रोड, राजवाड़ा, बड़ा गणपति और आसपास के क्षेत्रों में भी दुकानदारों और रहवासियों द्वारा अंडरग्राउंड रूट में बदलाव की मांग की जा रही है। उनका कहना है कि निर्माण के कारण उनकी संपत्तियों को नुकसान हो सकता है।
हालांकि फिलहाल पहले से मंजूर साढ़े आठ किलोमीटर के अंडरग्राउंड रूट में कोई बदलाव नहीं किया गया है और इस विषय पर हालिया समीक्षा बैठक में भी कोई चर्चा नहीं हुई। इस मामले में हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी लंबित है, जिसमें हेरिटेज इमारतों, अंडरग्राउंड वॉटर और अन्य मुद्दों को उठाया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि तकनीकी रूप से अंडरग्राउंड मेट्रो से इन समस्याओं की आशंका नहीं है, क्योंकि दुनिया के कई बड़े शहरों में पिछले पचास वर्षों से अधिक समय से अंडरग्राउंड मेट्रो संचालित हो रही है, जहां न तो हेरिटेज इमारतों को नुकसान पहुंचा है और न ही भूजल से जुड़ी कोई गंभीर समस्या सामने आई है।

Post a Comment