भू बैकुंठ बदरीनाथ धाम के कपाट विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे. ऐसे में बदरीनाथ धाम का अलौकिक पुष्प श्रृंगार किया गया है. जिसके तहत 10 क्विंटल फूलों से धाम को सजाया गया है. काफी संख्या में श्रद्धालु कपाट बंदी के खास मौके पर साक्षी बनने के लिए धाम पहुंचे हुए हैं. अनुमान है कि कपाट बंदी के दौरान 5 हजार से ज्यादा श्रद्धालु धाम में मौजूद रहेंगे.
बता दें कि बदरीनाथ धाम में 21 नवंबर से पंच पूजाएं शुरू हो गई थी. गणेश मंदिर, आदि केदारेश्वर और आदि गुरु शंकराचार्य गद्दी स्थल के कपाट बंद होने के बाद धाम में वेद ऋचाओं का वाचन भी समाप्त हो गया था. सोमवार को माता लक्ष्मी मंदिर में विशेष पूजाओं के साथ पंच पूजाओं की श्रृंखला पूरी हो गई. कपाट बंद होने की पूर्व संध्या पर यानी सोमवार शाम को पंच पूजाओं के अंतर्गत माता लक्ष्मी मंदिर में कढ़ाई भोग समेत विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया गया.
बदरीनाथ धाम में कढ़ाई उत्सव का आयोजन: इस अवसर पर बदरीनाथ के मुख्य पुजारी (रावल) अमरनाथ नंबूदरी ने माता लक्ष्मी को बदरीनाथ गर्भगृह में विराजमान होने के लिए विधिवत आमंत्रित किया. धार्मिक परंपरा के तहत बदरीनाथ मंदिर के कपाट खुलने के बाद 6 महीने तक माता लक्ष्मी परिक्रमा स्थल स्थित उनके मंदिर में विराजमान रहती हैं.
बदरीनाथ धाम में 'कढ़ाई भोग' उत्सव कपाट बंद होने की प्रक्रिया के तहत एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. जिसमें माता लक्ष्मी को भगवान नारायण के साथ गर्भगृह में विराजमान होने का निमंत्रण देने के लिए भोग अर्पित किया जाता है. यह उत्सव जिसे 'पंच पूजा' का चौथा दिन भी कहते हैं. माता लक्ष्मी को समर्पित है और इसके बाद ही मंदिर के कपाट बंद करने की अंतिम तैयारियां शुरू होती हैं.
कढ़ाई भोग के बाद माता लक्ष्मी को भगवान नारायण के साथ गर्भगृह में विराजमान होने का निमंत्रण देने के लिए लक्ष्मी मंदिर में ले जाया जाता है. सोमवार को पंच पूजा के चौथे दिन मंदिर परिसर में विराजित मां महालक्ष्मी जी की विशेष पूजा कर कढ़ाई प्रसाद चढ़ाया गया. इसके बाद मां लक्ष्मी से बदरीनाथ मंदिर गर्भगृह में बाकी शीतकाल के लिए श्री हरि नारायण प्रभु के सानिध्य में विराजमान होने की प्रार्थना की गई.
यहां देंगे दर्शन: बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद भगवान बदरी विशाल की मूल स्वयंभू मूर्ति को ज्योतिर्मठ (नृसिंह मंदिर) में विराजमान किया जाता है. बता दें कि मूल शालिग्राम की स्वयंभू मूर्ति को कभी बदरीनाथ से बाहर नहीं निकाला जाता है, लेकिन पूजा के लिए उत्सव मूर्ति (चल विग्रह) को ले जाया जाता है. शीतकाल में पूजा इसी उत्सव मूर्ति की जोशीमठ के नृसिंह मंदिर मंदिर में होती है. जबकि, भगवान उद्धव और कुबेर जी मूर्ति पांडुकेश्वर (योगध्यान बदरी मंदिर) में विराजते हैं.

Post a Comment