दीपावली के शुभ पर्व की तिथि को लेकर बना असमंजस अब दूर हो गया है। दो अलग-अलग ज्योतिषाचार्यों और मान्यताओं को समाहित करते हुए यह स्पष्ट होता है कि दीपावली का महालक्ष्मी पूजन पर्व इस वर्ष 20 तारीख की रात को ही मनाना शास्त्रसम्मत एवं विशेष फलदायी है।
दीपावली पर्व कार्तिक मास की अमावस्या की रात्रि में मनाया जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, 20 तारीख को अमावस्या तिथि का पूर्ण रात्रि व्यापिनी होना, महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के पूजन के लिए विशेष महत्व रखता है। पूरी रात अमावस्या का आनंद 20 तारीख की रात को ही रहेगा। दीपावली की रात को कालरात्रि कहा जाता है, जिसका विशेष महत्व है। इस रात्रि में महाकाली, महालक्ष्मी और मां सरस्वती का पूजन होता है। 20 तारीख की रात कालरात्रि के रूप में अमावस्या के पूर्ण प्रभाव में रहेगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान माता महालक्ष्मी का प्राकट्य अमावस्या के दिन ही हुआ था। लक्ष्मी माता रात्रि में भ्रमण करने निकलती हैं और इसलिए रात्रि की पूजा का विशेष महत्व है, जो 20 तारीख की रात को ही प्राप्त होगा।
दीपावली की रात्रि में महालक्ष्मी, महाकाली और मां सरस्वती के त्रि-स्वरूपी पूजन का विधान है। महालक्ष्मी धन, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी के रूप में, महाकाली कालरात्रि के रूप में पूजित होकर नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं और मां सरस्वती ज्ञान, कलम-दवात (बही खाता) और विद्या के रूप में पूजित होती हैं। तीनों स्वरूपों को सामने विराजमान करके रात भर दीपक प्रज्ज्वलित रखने का विधान है, जो इस रात के महत्व को और बढ़ाता है।
समुद्र मंथन से धनतेरस के दिन धनवंतरी जी का प्राकट्य हुआ। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा आए थे। वहीं महालक्ष्मी माता दीपावली के दिन आईं। दीपावली का संबंध कालरात्रि से है और इस दिन लक्ष्मी-नारायण के स्वरूप को याद किया जाता है। नारायण ने सबको एक समान दृष्टि से देखा, इसलिए लक्ष्मी जी ने भी नारायण को स्वीकार किया। लक्ष्मी जी सबको आनंद देने वाली हैं और उनका पूजन सबको मिलकर पूरे परिवार की एकता के साथ मनाना चाहिए।

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