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ओंकारेश्वर का कार्तिक मेला नए स्वरूप की ओर, स्थान परिवर्तन पर प्रशासनिक मंथन जारी Omkareshwar's Kartik Mela is taking a new shape, with administrative discussions underway on relocating the fair.

 भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की पावन नगरी में देवउठनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक लगने वाला पारंपरिक कार्तिक मेला इस वर्ष नई दिशा लेने की तैयारी में है। ब्रह्मपुरी क्षेत्र में सीमित स्थान और घटते आयोजन स्वरूप को देखते हुए प्रशासन अब मेले के स्थान परिवर्तन पर विचार कर रहा है। कलेक्टर ऋषव गुप्ता ने संभावित स्थलों का निरीक्षण करने के निर्देश दिए हैं।



 पारंपरिक स्थल ब्रह्मपुरी में जगह की कमी .अनादिकाल से ब्रह्मपुरी क्षेत्र में लगने वाला यह मेला अब जगह की कमी से जूझ रहा है। दुकानदारों, झूला संचालकों और सर्कस वालों को पर्याप्त स्थान न मिलने से उनकी भागीदारी लगातार घटती जा रही है। नागरिकों और व्यापारियों ने प्रशासन से मांग की है कि मेले को अधिक विस्तृत और सुविधाजनक स्थल पर स्थानांतरित किया जाए, ताकि श्रद्धालुओं और आगंतुकों को बेहतर व्यवस्था मिल सके।

 निरीक्षण में प्रशासनिक और स्थानीय प्रतिनिधि शामिल कलेक्टर को नागरिकों द्वारा दी गई सूचना के बाद तहसीलदार उदय मंडलोई, राजस्व निरीक्षक नीरज रावत, नगर परिषद अधिकारी, जनप्रतिनिधि, व्यापारी और मीडिया प्रतिनिधियों की टीम ने मंगलवार को संभावित मेला स्थलों का मौका मुआयना किया। निरीक्षण में ओंकार प्रसादालय के सामने का क्षेत्र भी देखा गया। राजस्व निरीक्षक ने बताया कि रिपोर्ट तैयार कर वरिष्ठ अधिकारियों को भेजी जाएगी, ताकि अंतिम निर्णय लिया जा सके।

 तीन नए स्थलों पर विचार मेले को अधिक विस्तृत और सुलभ क्षेत्र में आयोजित करने के लिए तीन प्रमुख स्थान प्रस्तावित किए गए हैं- नया बस स्टैंड क्षेत्र, टंट्या मामा मूर्ति स्थल के आसपास का मैदान और ट्रेचिंग ग्राउंड क्षेत्र। इन स्थानों पर पार्किंग, आवागमन, सुरक्षा और व्यापारिक गतिविधियों के लिए बेहतर व्यवस्था संभव बताई जा रही है। तहसीलदार मंडलोई ने कहा कि मेला सुव्यवस्थित और पारंपरिक गरिमा के अनुरूप लगे, इसके लिए नगर परिषद को तैयारी शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं।

धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मेला ओंकारेश्वर का कार्तिक मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह आस्था, अर्थव्यवस्था और पर्यटन तीनों का संगम है। देवउठनी एकादशी से पूर्णिमा तक चलने वाली पंचक्रोशी यात्रा में हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं, जो ओंकारेश्वर से प्रारंभ होकर कोठी, अंजरूत, सनावद, टोकसर और बड़वाह होते हुए पुनः ओंकारेश्वर लौटते हैं। पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु पूजन, दर्शन और खरीदारी के साथ मेले की रौनक का आनंद लेते हैं। स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि यदि मेला विस्तृत स्थल पर आयोजित होता है, तो इससे व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि, श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा में सुधार होगा। साथ ही मेले का आकर्षण भी पुनर्जीवित होगा।

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