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द्विपक्षीय रिश्तों लेकर प्रतिबद्ध भारत-US lIndia-US committed to bilateral relations

 सम्पादकीय

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर चल रही वार्ता के बीच पीएम नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप में बातचीत होना एक अच्छा संकेत है। यह दिखाता है कि दोनों देश द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर प्रतिबद्ध हैं और इसमें जो बाधा आई है, उसे जल्द से जल्द हटाकर आगे बढ़ना चाहते हैं।


उतार-चढ़ाव भरा रिश्ता: ट्रेड डील को लेकर दोनों देशों के बीच विभिन्न स्तरों पर कई दौर की वार्ता हो चुकी है। इसी हफ्ते व्यापार, निवेश और रक्षा सहयोग समेत कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। मार्च में बातचीत शुरू होने से लेकर अभी तक, रिश्तों में उतार-चढ़ाव के कई दौर आए हैं। इसी दौरान अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ थोप दिया। अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका होने के बावजूद इस पर तल्खी दिखाने के बजाय भारत ने दृढ़ता और संयम का परिचय दिया

सबसे अच्छा प्रस्ताव:रूसी तेल खरीद पर रोक और दूसरी अमेरिकी मांगों के जवाब में भारत का रुख यही रहा है कि उसका फैसला अपने लोगों के हितों की रक्षा करने वाला होगा। और अब तो अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीर भी मान चुके हैं कि भारत ने अब तक का सबसे अच्छा प्रस्ताव दिया है। हालांकि इसके बावजूद अभी तक ट्रंप प्रशासन की तरफ से टैरिफ में छूट देने या डील फाइनल करने के संबंध में कोई संकेत नहीं मिले हैं।

अमेरिका की अनिश्चितता: केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल का कहना कि अगर अमेरिका प्रस्ताव से संतुष्ट है, तो साइन कर दे - दरअसल अमेरिकी रुख की इसी अनिश्चितता को दर्शाता है। यह अनिश्चितता कई अन्य स्तरों पर भी प्रकट हो रही है। मसलन- एक तरफ द्विपक्षीय बातचीत में सहयोग बढ़ाने की बात हो रही थी, तो दूसरी तरफ ट्रंप भारतीय चावल पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दे रहे थे।संतुलित नीति: भारत और अमेरिका के बीच बातचीत में हालिया प्रगति के दौरान की एक बड़ी घटना रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन का भारत दौरा है। इस यात्रा की टाइमिंग ने सबका ध्यान खींचा। नई दिल्ली ने इससे यह संदेश तो पश्चिम तक पहुंचा ही दिया कि उसके लिए राष्ट्रीय हित सबसे पहले है और यह भी कि अपनी स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति पर कोई समझौता उसे मंजूर नहीं। भारत ने रूस के साथ पुरानी दोस्ती निभाई है, लेकिन अमेरिका को भी नहीं छोड़ा। अब इसी संतुलन की उम्मीद ट्रंप प्रशासन से भी है। उसे भारत जैसे सहयोगी देश की जरूरतों और चिंता को समझना चाहिए। यह डील जितनी जल्दी अंजाम तक पहुंचेगी, दोनों देशों को उतना फायदा होगा।

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