सतना। जिला अस्पताल से मानवता को झकझोर देने वाला गंभीर मामला सामने आया है, जहां अस्पताल के रक्त संग्रह केंद्र की घोर लापरवाही ने चार मासूम बच्चों की जिंदगी को स्थायी संकट में डाल दिया है। थैलेसीमिया जैसी गंभीर और लाइलाज बीमारी से जूझ रहे इन बच्चों को इलाज के दौरान एचआईवी से संक्रमित रक्त चढ़ा दिया गया, जिसके कारण अब वे भी इस जानलेवा वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। यह मामला लगभग चार महीने पुराना बताया जा रहा है, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इतने लंबे समय के बाद भी जिम्मेदार तंत्र एचआईवी से ग्रस्त रक्तदाताओं की पहचान नहीं कर पाया है।
जानकारी के अनुसार, थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों को नियमित अंतराल पर रक्त चढ़ाना अनिवार्य होता है। इसी आवश्यकता के तहत चारों मासूम सतना जिला अस्पताल के रक्त संग्रह केंद्र से रक्त लेकर उपचार करवा रहे थे। लेकिन जिसे जीवन देने वाला माना जाता है, वही रक्त उनके लिए घातक साबित हो गया। अस्पताल द्वारा उपलब्ध कराए गए रक्त में एचआईवी वायरस मौजूद था, जिससे चारों बच्चे संक्रमित हो गए। यह स्थिति अपने आप में अस्पताल और रक्त संग्रह केंद्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है, क्योंकि रक्त चढ़ाने से पहले एचआईवी की जांच अनिवार्य प्रक्रिया का हिस्सा होती है।
मामले की गंभीरता इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह लापरवाही केवल एक रक्त इकाई तक सीमित नहीं रही। चार बच्चों के संक्रमित होने का अर्थ है कि कम से कम चार रक्त इकाइयां एचआईवी संक्रमित थीं, जिन्हें बिना समुचित जांच के मरीजों को चढ़ा दिया गया। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि कम से कम चार रक्तदाता एचआईवी से ग्रस्त थे, लेकिन इसके बावजूद उनकी पहचान और पता लगाने की प्रक्रिया पूरी नहीं की गई।
आशंका जताई जा रही है कि इसी रक्त संग्रह केंद्र से गर्भवती महिलाओं और अन्य मरीजों को भी रक्त दिया गया होगा, जो उपचार के बाद दोबारा अस्पताल नहीं आए, ऐसे में उनके भी संक्रमित होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। बताया गया है कि जब बच्चों में एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हुई, तब तय नियमों के अनुसार रक्तदाताओं की पूरी श्रृंखला की जांच की जानी चाहिए थी। इसके लिए अस्पताल प्रबंधन, रक्त संग्रह केंद्र और एचआईवी प्रबंधन के लिए विशेष रूप से स्थापित एकीकृत परामर्श एवं जांच केंद्र को सक्रिय भूमिका निभानी थी, लेकिन इस दिशा में गंभीरता नहीं दिखाई गई। यही कारण है कि चार महीने बीत जाने के बाद भी एचआईवी संक्रमित रक्तदाताओं का कोई सुराग नहीं मिल सका है। इस लापरवाही को लेकर अब प्रशासनिक स्तर पर भी सवाल उठने लगे हैं।
मामले के उजागर होने के बाद कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार एस ने इसे गंभीरता से लेते हुए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। वहीं इस पूरे प्रकरण पर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि मामला अत्यंत गंभीर है और इस संबंध में रिपोर्ट मंगाई गई है। रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी और दोषियों के खिलाफ जांच कर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। इस घटना ने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था और रक्त संग्रह प्रणाली की सुरक्षा पर एक बार फिर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है।

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