• रवि उपाध्याय
हमारे एक बहुत पुराने मित्र हैं छेदी बाबू। अब आप पूछेंगे यह कैसा नाम हुआ और इसका मतलब क्या हुआ? तो मित्रों हर नाम कुछ न कुछ कहता है। इसके पहले की मैं छेदी बाबू के नाम का अर्थ बताऊं आप यह बताएं कि टीटू,चीकू, मिट्ठू, शेरू आदि निरर्थक नाम के क्या अर्थ होते हैं। खैर छोड़िए आधुनिक समाज में 90 फीसद बातें निरर्थक होती हैं। यदि हम इस अर्थहीन बहस में पड़ेंगे तो फिर नेताओं और चमचे क्या करेंगे। यह बेकार की अंतहीन बहस उन्हें ही मुबारक।
इस तरह की बहस एक तरह से ठीक रात रात भर चलने वाले संगीत समारोह जैसी होती है । बेचारा गायक आँखें भींचे,अपने कान पर हाथ रख कर अजीब अजीब सी आवाज़ में रात रात भर एक ही लाइन को पंचम स्वर में गाता है। बाजूबंद खुल खुल जाए... बाजूबंद खुल खुल जाए। पर बाजूबंद इतना जिद्दी है कि खुलता ही नहीं आता है।गायक भाई साहब को श्रोताओं की पीढ़ा का एहसास ही नही होता। हो भी कैसे बंदा तो पहले से ही अपनी आँखें भींचे ही रहता है। सुनने वाले भी सोचते रहते होंगे कि अब घर जा कर भी क्या कर लेंगे। टिकट खरीदा है तो यही बैठे रहो कम से कम बाहर की शीत लहर से तो बचेंगे। ऐसे समारोह से स्टेटस सिंबल होता है। इसमें शामिल होने वालों को बहुत ही प्रबुद्ध और संगीत मर्मज्ञ माना जाता है।
अब बात छेदी बाबू के नाम का अर्थ की तो इसका शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जो छेद करता है। अंग्रेजी को ओढ़ने और बिछाने वालों को बता दूं कि छेदी का अंग्रेजी में बोरर कह सकते हैं। बोरर मतलब छेद करने वाला है। बोरर का हिंदी में एक अर्थ उबाऊ या नीरस करने वाला भी है। हमारे छेदी बाबू को इसलिए छेदी कहा गया है क्योंकि उनको एक व्यक्ति की बात नमक मिर्च लगा कर दूसरे तक और उससे तीसरे तक पहुंचाने में महारत हासिल है। छेदी बाबू की इस खासियत से पूरा शहर वाक़िफ हैं। रही बात बाबू शब्द की तो यह सम्मानजनक शब्द है। इसे किसी को आदर देने के लिए उपयोग किया जाता है।
उनकी इसी विशेषज्ञता की वजह से उनसे सभी संभल कर बात करते हैं। यदि किसी को कोई बात पूरे शहर में कोई बात पहुंचानी हो तो बे बेस्ट संचार पुरूष हैं। इस मामले में वे महिलाओं के इस विशेष गुण को भी मात देने की अदभुत क्षमता रखते हैं। ऐसा नहीं है कि ऐसा करने वाले वे दुनिया में एक अकेले व्यक्ति हों। इस मामले में आदि पुरुष नारद जी को माना जाता है। वह भ्रमणशील रहते हुए सभी देवताओं से मिलते जुलते रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि वह यहां की बात वहां और वहां की बात यहां पहुंचाने का काम करते रहें हैं। उन्हें देवताओं के संदेशवाहक कहा जाता है।
आज के जमाने में नारद जी को पत्रकार अपने आदि पुरुष मनाते हैं। नारद जयंती को देश में कई जगह पत्रकार दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन को समारोह पूर्वक मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो काम प्राचीन जमाने में नारद जी करते थे वहीं काम आजकल पत्रकार मित्र करते हैं। छेदी बाबू भी यही काम करते हैं। उनकी बातें कान भरने वाली होतींं हैं। आपको बतला दें कि कान भरने का काम पहले घरों पर नियमित रूप से हजामत करने जाने वाला नाई भी बड़ी मीठी जुबान से करते थे। वे हजामत करते समय पूरे शहर की इधर उधर की बातें पहुंचा देते थे। उनमें कुछ बातें घरों के बाहर की हुआ करतीं थीं तो कुछ बातें घरों के दरवाजों के अंदर की हुआ करतीं थीं। वह कस्बाई जासूस माने जाते थे। आजकल तो शहरों में सेलून और पार्लर बन गए हैं। वहां ऐसी बातें अब शायद नहीं होतींं हैं। वहां अब गॉसिप होते हैं। पहले जैसे,नाइयों बाली बात अब वहां नहीं होती हैं। हां अब जो नारदजी के स्वघोषित शिष्य हैं जिन्हें जर्नलिस्ट कहा जाता है। वह आज नारद जी महाराज की विरासत को भली भांति निवाह रहे हैं। वे इधर के सीक्रेट उधर और उधर के सीक्रेट इधर ट्रांसफर करते रहते हैं। ऑफ दी रिकॉर्ड अगले पल ही कानाफूसी बन सियासत में गूंजने लगतीं है। यही उनकी रोजी रोटी और बिजनेस की जरूरत होती है। इसी विधा की वज़ह से पत्रकारों को नेताओं के यहां उसी तरह का आदर और सम्मान मिलता है जैसा पुरातन काल में नारद जी को देवताओं के यहां मिलता होगा।
यही गुण हमारे मित्र छेदी बाबू में कूट कूट कर भरे हैं। इधर की बातें उधर और उधर की बातें इधर करना उनकी यूएसपी है। वे माउथ टू माउथ पब्लिसिटी के बड़े मैसेंजर माने जाते हैं। बड़ी बड़ी बोरिंग मशीनें भले ही जमीन के पेट को चीर कर पानी या तेल निकालने में नाकाम हो जाएं पर छेदी बाबू को वो महारत हासिल है जो जेम्सबॉन्ड को भी नहीं हासिल होगी, और न ही व्योमकेश बख्शी को ये कुशलता मिली होगी। छेदी बाबू हमारे कस्बे के जासूस करमचंद हैं। वो आदमी कितना ही कठिन व्यक्ति क्यों न हो छेदी बाबू उसके पेट को फाड़ कर राज़ उगलवा ही लेते हैं।
( लेखक एक व्यंग्यकार एवं राजनैतिक समीक्षक भी हैं। )
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