[सेबी 2.0 और बाजार का भविष्य: नियमन से नवाचार तक]
[नियमों की भीड़ से निकलकर व्यवस्था की ओर बढ़ता वित्तीय तंत्र]
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”
भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले पूंजी बाजार में दशकों बाद सबसे बड़ा सुधार आने वाला है। 18 दिसंबर 2025 को लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रतिभूति बाजार संहिता विधेयक 2025 पेश किया, जो तीन पुराने कानूनों—सेबी अधिनियम 1992, डिपॉजिटरी अधिनियम 1996 और प्रतिभूति अनुबंध (विनियमन) अधिनियम 1956—को समाप्त कर एक एकीकृत, आधुनिक और सिद्धांत-आधारित संहिता स्थापित करने का प्रस्ताव करता है। यह विधेयक न केवल नियमों की जटिलता दूर करेगा बल्कि निवेशकों का विश्वास मजबूत करते हुए भारत को वैश्विक वित्तीय केंद्र बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। तेजी से उभरती भारतीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पूंजी जुटाने की प्रक्रिया को सरल बनाने वाली यह पहल, बाजार की पारदर्शिता और कुशलता को मजबूत करेगी तथा नवाचार और विश्वास को बढ़ावा देते हुए उसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में नई ऊँचाइयों तक पहुँचाएगी।
विधेयक का मुख्य उद्देश्य मौजूदा कानूनों में फैली विसंगतियों और दोहराव को खत्म करना है। अलग-अलग अधिनियमों से उत्पन्न होने वाली अस्पष्टताएं कंपनियों और निवेशकों के लिए अनुपालन बोझ बढ़ाती थीं, जिससे व्यापारिक लागत में वृद्धि होती थी। नई संहिता से सभी प्रावधान एक ही कोड में समाहित होंगे, जिससे कानूनी स्पष्टता आएगी। विशेष रूप से बॉन्ड बाजार को गहराई प्रदान करने और बाजार अस्थिरता के दौरान सुरक्षा कवच की भूमिका निभाने का प्रावधान बाजार को अधिक लचीला बनाएगा। सरकार का दावा है कि यह कोड निवेशकों का भरोसा बढ़ाएगा, नवाचार को प्रोत्साहित करेगा और वैश्विक निवेशकों को भारत की ओर आकर्षित करेगा।
सेबी की शासन व्यवस्था और शक्तियों को मजबूत बनाने पर विधेयक का विशेष फोकस है। वर्तमान में सेबी बोर्ड में 9 सदस्य हैं, जिन्हें बढ़ाकर अधिकतम 15 करने का प्रस्ताव है। इससे बोर्ड में विविध विशेषज्ञता आएगी और निर्णय प्रक्रिया अधिक संतुलित होगी। बोर्ड सदस्यों को अपने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हितों का अनिवार्य खुलासा करना होगा, साथ ही हितों के टकराव की स्थिति में सदस्य को हटाने का प्रावधान जोड़ा गया है। यह हाल की कुछ विवादास्पद घटनाओं को ध्यान में रखकर लाया गया सुधार है। इसके अतिरिक्त, सेबी को अपनी कार्यप्रणाली की समीक्षा करने, नियमों की समानुपातिकता सुनिश्चित करने और कर्मचारी क्षमता निर्माण की नई जिम्मेदारियां मिलेंगी।
निवेशक संरक्षण के मोर्चे पर विधेयक कई क्रांतिकारी प्रावधान ला रहा है। ओम्बुड्सपर्सन तंत्र की स्थापना से शिकायत निवारण तेज और प्रभावी होगा। छोटे-मोटे उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर केवल सिविल दंड लगाने से अनावश्यक कानूनी लड़ाइयां कम होंगी। जांच या निरीक्षण शुरू करने की समय सीमा आठ वर्ष निर्धारित करने से कानूनी निश्चितता बढ़ेगी। दंड को अवैध लाभ या हानि से जोड़ने से प्रवर्तन अधिक न्यायपूर्ण बनेगा। ये बदलाव छोटे निवेशकों को मजबूत सुरक्षा प्रदान करेंगे और बाजार में भागीदारी को प्रोत्साहित करेंगे।
नवाचार को बढ़ावा देने के लिए विधेयक में रेगुलेटरी सैंडबॉक्स की स्थापना का प्रावधान है। यह नियंत्रित वातावरण में नए वित्तीय उत्पादों और सेवाओं का परीक्षण करने की अनुमति देगा, जिससे फिनटेक और स्टार्टअप्स को बड़ा लाभ मिलेगा। अंतर-नियामकीय समन्वय के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) फ्रेमवर्क से विभिन्न नियामकों के बीच सहयोग बढ़ेगा। सेबी को कुछ पंजीकरण कार्यों को बाजार अवसंरचना संस्थानों या स्व-नियामक संगठनों को सौंपने की शक्ति मिलेगी, जिससे नियामकीय बोझ कम होगा। ये सुधार बाजार को अधिक गतिशील और तकनीकी रूप से उन्नत बनाएंगे।
विधेयक में बाजार अवसंरचना संस्थानों (एमआईआई) जैसे स्टॉक एक्सचेंज, क्लियरिंग कॉर्पोरेशन और डिपॉजिटरीज को औपचारिक मान्यता प्रदान करने का महत्वपूर्ण प्रावधान है। इससे इन संस्थाओं को अपने स्व-नियम (बाय-लॉज) बनाने की स्वायत्तता मिलेगी, जो समान पहुंच, पारदर्शिता, अंतर-सहयोग और बाजार में अनुशासन सुनिश्चित करने में सहायक होंगे। साथ ही, सेबी को अपनी आय के अधिशेष को रिजर्व फंड में रखने और आवश्यकता पूरी होने पर इसे भारत की संचित निधि में हस्तांतरित करने की अनुमति मिलेगी, जिससे नियामक की वित्तीय स्वतंत्रता और जवाबदेही मजबूत होगी। ये प्रावधान बाजार की संस्थागत मजबूती को बढ़ावा देंगे तथा दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करेंगे।
विधेयक के पेश होते ही विपक्ष ने तीखा विरोध दर्ज किया। कुछ सांसदों ने तर्क दिया कि यह विधेयक एक ही नियामक को अत्यधिक शक्तियाँ सौंपता है, जो शक्तियों के पृथक्करण जैसे लोकतांत्रिक सिद्धांत के विरुद्ध है। उनका कहना था कि इससे नियामक की स्वायत्तता कमजोर होगी और पूंजी बाजार में एकाधिकार का खतरा बढ़ेगा। जवाब में सरकार ने स्पष्ट किया कि विधेयक को वित्त संबंधी स्थायी समिति के पास भेजा जाएगा, जहाँ सभी आशंकाओं पर गहन, रचनात्मक और पारदर्शी चर्चा होगी। समिति अपनी रिपोर्ट अगले सत्र में प्रस्तुत करेगी, जिससे आगे की प्रक्रिया तय होगी। यह कदम लोकतांत्रिक परंपराओं और सभी पक्षों की चिंताओं के सम्मान को दर्शाता है।
इस विचार की नींव पहली बार 2021-22 के केंद्रीय बजट में एकल संहिता की घोषणा के साथ रखी गई थी। आज इसका औपचारिक रूप से सामने आना भारतीय पूंजी बाजार की बढ़ती परिपक्वता, नीतिगत स्पष्टता और वैश्विक मंच पर सशक्त उपस्थिति की महत्वाकांक्षा को प्रतिबिंबित करता है। विशेषज्ञों के अनुसार, सिद्धांत-आधारित नियामक ढांचा सेबी को बाजार की निरंतर बदलती चुनौतियों और आवश्यकताओं के अनुरूप त्वरित, लचीले और प्रभावी निर्णय लेने की व्यापक स्वतंत्रता प्रदान करेगा। अनुपालन लागत में कमी से कंपनियाँ नवाचार और विस्तार पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगी, विदेशी निवेश को नया प्रोत्साहन मिलेगा और भारत आत्मनिर्भर, सुदृढ़ तथा प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था की दिशा में निर्णायक कदम आगे बढ़ाएगा।
समग्र रूप से देखें तो प्रतिभूति बाजार संहिता विधेयक, 2025 भारतीय पूंजी बाजार को अधिक पारदर्शी, सुदृढ़, कुशल और निवेशक-केंद्रित बनाने की एक दूरदर्शी एवं ऐतिहासिक पहल है। विपक्ष द्वारा उठाई गई आशंकाएँ लोकतांत्रिक विमर्श का आवश्यक हिस्सा हैं और स्थायी समिति में उनका संतुलित व गहन समाधान ही एक मजबूत कानून की नींव रखेगा। यदि यह विधेयक पारित होता है, तो यह न केवल बाजार की गहराई, स्थिरता और विश्वसनीयता को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा, बल्कि ‘विकसित भारत’ के संकल्प को साकार करने में भी निर्णायक भूमिका निभाएगा। निस्संदेह, इसकी आगे की यात्रा पर पूरे देश की सजग निगाहें टिकी रहेंगी।

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