मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के मल्हारगढ़ क्षेत्र का एक मामला इन दिनों इंदौर हाई कोर्ट में चर्चा में है. आरोप है कि 12वीं में शीर्ष टॉपर रह चुके एक मेधावी छात्र को पुलिस ने न केवल चलती बस से जबरन नीचे उतारा, बल्कि उसके बाद उसे एक ऐसे ड्रग तस्करी मामले में फंसा दिया, जिसका वह कभी हिस्सा ही नहीं था. मामला सामने आने के बाद परिजनों ने इसे पुलिस की पूरी तरह मनमानी और अवैधानिक कार्रवाई बताया.
ड्रग्स तस्करी में छात्र को पुलिस वालों ने फंसाया
5 दिसंबर को पीड़ित छात्र के पिता सोहनलाल ने इंदौर हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी. इसमें बताया गया कि छात्र किसी काम से मल्हारगढ़ से बाहर जा रहा था, तभी बीच रास्ते में पुलिसकर्मी अचानक बस में चढ़े और बिना कोई स्पष्ट कारण बताए छात्र को उतारकर साथ ले गए. परिजनों का आरोप है कि यह पूरी कार्रवाई किसी वैध प्रक्रिया के बिना की गई और छात्र के साथ व्यवहार भी अपहरण जैसा था. शाम होते-होते पुलिस ने दावा किया कि उनके द्वारा 2.7 किलो अफीम जब्त की गई है और उसी आधार पर छात्र पर ड्रग्स तस्करी का मामला दर्ज कर दिया गया, जबकि परिवार का कहना है कि यह पूरा मामला फर्जी है और छात्र का इससे कोई लेना-देना नहीं.
खुद SP को कोर्ट में पेश होना पड़ा
हाई कोर्ट ने मामले को बेहद गंभीर माना और प्रारंभिक सुनवाई के दौरान मंदसौर के पुलिस अधीक्षक विनोद मीणा को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया. कोर्ट में पेश हुए एसपी मीणा ने कई महत्वपूर्ण तथ्य स्वीकार किए, जो पुलिस की कार्रवाई पर और अधिक सवाल खड़े करते हैं. उन्होंने अदालत में माना कि जिस तरीके से छात्र को बस से उतारा गया, वह विधिक प्रावधानों के अनुरूप बिल्कुल नहीं था. न तो उसे रोके जाने का उचित आधार दर्ज किया गया और न ही गिरफ्तारी के लिए आवश्यक मानक प्रक्रिया का पालन किया गया.
SP ने 6 पुलिस वालों को सस्पेंड किया
इसके अलावा, पुलिस की प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा गया था कि बस में जाकर कार्रवाई करने वाले कर्मचारियों की पहचान स्पष्ट नहीं थी, लेकिन कोर्ट में एसपी मीणा ने साफ कहा कि बस में मौजूद सभी लोग पुलिसकर्मी ही थे और पूरी कार्रवाई मल्हारगढ़ थाने के एक हेड कॉन्स्टेबल की अगुवाई में की गई थी. यह विरोधाभास पुलिस के पहले दावे पर गंभीर संदेह खड़ा करता है. एसपी मीणा ने हाई कोर्ट को बताया कि इस प्रकरण में शामिल 6 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है और विभागीय जांच भी शुरू हो चुकी है. उन्होंने जांच से जुड़े रिकॉर्ड और दस्तावेज कोर्ट के सामने प्रस्तुत कर यह स्पष्ट किया कि अब मामले की समीक्षा नियमों के अनुसार की जा रही है.
हाई कोर्ट में आदेश सुरक्षित
वहीं, पीड़ित छात्र के पक्ष द्वारा कोर्ट में रखे गए तर्कों, प्रस्तुत साक्ष्यों और एसपी मीणा द्वारा मानी गई गड़बड़ियों को अदालत ने गंभीरता से सुना. न्यायालय ने संकेत दिया कि पुलिस की कार्रवाई कई स्तरों पर असंगत और संदेहास्पद प्रतीत होती है. इसके बाद हाई कोर्ट ने मामले में आदेश सुरक्षित रख लिया है, यानी सभी तथ्यों का अध्ययन करने के बाद ही अगला निर्णय सुनाया जाएगा.
फिलहाल, अगली सुनवाई की तारीख अदालत द्वारा घोषित की जानी बाकी है. इस केस ने न सिर्फ मल्हारगढ़ पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगाए हैं, बल्कि यह भी दिखाया है कि अवैधानिक कार्रवाई किस तरह एक निर्दोष छात्र का भविष्य बर्बाद कर सकती है. अब सबकी नजरें हाई कोर्ट के अगले आदेश पर टिकी हैं, जिससे यह तय होगा कि पीड़ित छात्र को न्याय मिलेगा या नहीं.

Post a Comment