रूस और भारत की दोस्ती किसी से छुपी नहीं है. मॉस्को हमेशा से ही भारत की विदेश नीति का एक अहम हिस्सा रहा है. वहीं रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कल 4 दिसंबर को दिवसीय दौरे पर भारत आ रहे हैं.
भारत और रूस के रिश्तों में बड़ी उपलब्धियां: पहले हमें दोनों देशों की दोस्ती की तलहटी में चलते हैं. भारत और USSR ने अप्रैल 1947 में, भारत की आजादी से 4 महीने पहले, फॉर्मल डिप्लोमैटिक रिश्ते बनाए. शुरुआती डिप्लोमैटिक रिश्ते बहुत कम थे, शायद यह समझ में भी आता था.
इसकी वजह ये थी कि रूस के प्रधानमंत्री जोसेफ स्टालिन कॉलोनियल और निर्भर देशों के पूंजीपतियों को “समझौता करने वाली” और “क्रांतिकारी” ताकतें मानते थे. उनका ये भी मानना था कि ये ताकतें अपने ही लोगों की पीठ पीछे इंपीरियलिज़्म के साथ मिलकर “साजिश” कर रही थीं.
1950 - 1970 का दशक: नींव की स्थापना
1953: पहले भारत-सोवियत ट्रेड एग्रीमेंट पर साइन हुए. इससे आर्थिक सहयोग की शुरुआत हुई.
1955: पहले प्रधानमंत्री का दौरा: साल 1955 भारत-USSR रिश्तों के लिए अहम था, उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जून 1955 में मॉस्को गए और रूसी पीएम निकिता ख्रुश्चेव ने नवंबर 1955 में उनके बदले में दौरा किया. इन दोनों दौरों ने अगले तीन दशकों के लिए रिश्तों की रफ़्तार तय की. इन दो दौरों ने अगले तीन दशकों के लिए रिश्तों की रफ़्तार तय की.
1960 का दशक: 1960 के दशक में चीन के साथ दोनों देशों के बिगड़ते रिश्तों ने उन्हें और करीब ला दिया. सोवियत यूनियन भारत के लिए एक जरूरी पार्टनर बनकर उभरा. सोवियत यूनियन ने भारत के सपोर्ट में कई बार UN सिक्योरिटी काउंसिल में अपने वीटो का इस्तेमाल किया. 1957 और 1971 के बीच आधा दर्जन बार वीटों का इस्तेमाल किया. यह आमतौर पर कश्मीर के मुद्दे पर और एक बार गोवा में पुर्तगाली शासन को खत्म करने के लिए भारत के मिलिट्री दखल के संबंध में था. भारत ने 1956 में हंगरी संकट और 1968 में चेकोस्लोवाकिया के दौरान USSR के खिलाफ वोट में हिस्सा नहीं लिया. भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध के दौरान, USSR ने बीच-बचाव की भूमिका निभाई और 1966 में तथाकथित ताशकंद समिट की मेजबानी की, जहां एक शांति संधि पर साइन किए गए. भारतीय प्रधानमंत्री का वाशिंगटन से वापस आते समय मॉस्को में रुकना भी आम बात थी.
1962: सोवियत यूनियन ने चीन-भारत युद्ध के दौरान भारत को मिलिट्री सपोर्ट दिया, जिससे रक्षा संबंध मजबूत हुए.
1971: भारत और सोवियत संघ के बीच रिश्तों में एक अहम मोड़ 9 अगस्त, 1971 को शांति और दोस्ती की संधि पर साइन होना था। शांति, दोस्ती और सहयोग की संधि गहरी होती साझेदारी का नतीजा थी। इसमें एक ज़रूरी सिक्योरिटी प्रोविज़न शामिल था जिसके तहत दोनों “किसी भी तीसरे पक्ष को कोई मदद देने से बचेंगे जो दूसरे पक्ष के साथ हथियारबंद लड़ाई में शामिल है। अगर किसी भी पक्ष को इससे कोई खतरा होता है, तो हाई कॉन्ट्रैक्टिंग पार्टियां तुरंत आपसी बातचीत करेंगी ताकि ऐसे खतरे को दूर किया जा सके और अपने देशों में शांति और सुरक्षा पक्का करने के लिए सही असरदार कदम उठाए जा सकें।
1980 का दशक - कोल्ड वॉर और मजबूत रिश्ते
1980: भारत ने एडवांस्ड फाइटर जेट्स समेत डिफेंस टेक्नोलॉजी के ट्रांसफर के लिए सोवियत यूनियन के साथ एक एग्रीमेंट साइन किया.
1984: सोवियत यूनियन ने भारत को अपनी स्पेस कैपेबिलिटी डेवलप करने में मदद की, जिससे सोवियत मदद से भारतीय स्पेस प्रोग्राम लॉन्च हुआ.
1985: सोवियत यूनियन ने तमिलनाडु के कुडनकुलम में न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने में भारत की मदद की.
1987: डिफेंस टेक्नोलॉजी, जॉइंट एक्सरसाइज और वेपन सिस्टम में कोलेबोरेशन पर फोकस करते हुए मिलिट्री कोऑपरेशन पर एक फॉर्मल एग्रीमेंट साइन किया गया.
1990 का दशक: नब्बे का दशक दोनों देशों के लिए उथल-पुथल वाला समय था. सोवियत यूनियन के खत्म होने के बाद, भारत और रूस ने जनवरी 1993 में एक नई दोस्ती और सहयोग संधि और 1994 में एक दोतरफ़ा मिलिट्री-टेक्निकल सहयोग समझौता किया.
1991: सोवियत यूनियन खत्म हो गया, और रूस को USSR के विदेशी रिश्ते विरासत में मिले. भारत ने नए रशियन फेडरेशन के साथ जल्दी से तालमेल बिठा लिया और रूस के साथ अपने मजबूत रिश्ते को फिर से पक्का किया.
1993: 1993 में “स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप पर घोषणा” पर साइन होने के साथ भारत-रूस के रिश्तों का एक नया दौर शुरू हुआ. इस समझौते में राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया गया.
1994: रूस और भारत ने पहले के सैन्य संबंधों को आगे बढ़ाते हुए रक्षा और टेक्नोलॉजी में “द्विपक्षीय सहयोग के लिए रूपरेखा” पर साइन किए.
2000 का दशक: 2000 में व्लादिमीर पुतिन के राष्ट्रपति चुने जाने और भारत द्वारा मल्टी-अलाइनमेंट की नीति (वाजपेयी NDA के सालों में) अपनाने से उस दशक में भारत-रूस के रिश्ते बढ़े. इस दौरान, नई दिल्ली ने न केवल रूस के साथ, बल्कि US और EU के साथ भी स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप पर साइन किए. राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि भारत रूस के लिए एक अहम प्राथमिकता वाला पार्टनर है और इस बात पर जोर दिया कि एशिया के देशों सहित दूसरे देशों के साथ मॉस्को के रिश्ते चाहे जैसे भी हों, “वे कभी भी भारत के साथ रिश्तों का विकल्प या उनके प्रति कोई भेदभाव नहीं होंगे.”
2000 में, प्रेसिडेंट पुतिन के भारत दौरे के दौरान, इस पार्टनरशिप को एक नया क्वालिटी वाला रूप मिला, यानी स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप। स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप ने भारत के प्रधानमंत्री और रूस के प्रेसिडेंट के बीच सालाना मीटिंग्स को इंस्टीट्यूशनल बनाया और तब से ये मीटिंग्स रेगुलर होती रही हैं।
2000: भारत और रूस ने “स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप पर डिक्लेरेशन” पर साइन करके अपने रिश्ते को “स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप” तक बढ़ाया यह डिफेंस, न्यूक्लियर एनर्जी और स्पेस में लंबे समय के सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में एक अहम कदम था।
2001: डिफेंस कोऑपरेशन पर इंटरगवर्नमेंटल एग्रीमेंट पर साइन हुए, जिससे एक गहरा मिलिट्री अलायंस बना, खासकर मिलिट्री सिस्टम्स के जॉइंट डेवलपमेंट में.
2002: भारत और रूस ने स्पेस एक्सप्लोरेशन में सहयोग के लिए एक एग्रीमेंट पर साइन किए. रूस सैटेलाइट लॉन्च में भारत की मदद करने और स्पेस टेक्नोलॉजी शेयर करने के लिए सहमत हुआ.
2003: रूस और भारत ने एक “न्यूक्लियर कोऑपरेशन एग्रीमेंट” पर साइन किया. इससे भारत के सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम के लिए रूस का सपोर्ट पक्का हुआ.
2004: एयरक्रॉफ्ट प्रोडक्शन के लिए इंडो-रशियन जॉइंट वेंचर लॉन्च किया गया. इसमें मिलिट्री एयरक्रॉफ्ट मैन्युफैक्चरिंग पर कोलेबोरेशन भी शामिल था.
2005: कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक कोऑपरेशन एग्रीमेंट (CECA) फ्रेमवर्क पर सहमति बनी. इसका मकसद ट्रेड और इकोनॉमिक रिश्तों को बढ़ाना था.
2010: भारत और रूस ने “दिल्ली डिक्लेरेशन” पर साइन किया, जिसका मकसद अपनी स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप को और गहरा करना था, खासकर डिफेंस, स्पेस और एनर्जी सेक्टर में.
रूस और भारत की दोस्ती किसी से छुपी नहीं है. मॉस्को हमेशा से ही भारत की विदेश नीति का एक अहम हिस्सा रहा है. वहीं रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कल 4 दिसंबर को दिवसीय दौरे पर भारत आ रहे हैं.
भारत और रूस के रिश्तों में बड़ी उपलब्धियां: पहले हमें दोनों देशों की दोस्ती की तलहटी में चलते हैं. भारत और USSR ने अप्रैल 1947 में, भारत की आजादी से 4 महीने पहले, फॉर्मल डिप्लोमैटिक रिश्ते बनाए. शुरुआती डिप्लोमैटिक रिश्ते बहुत कम थे, शायद यह समझ में भी आता था.
इसकी वजह ये थी कि रूस के प्रधानमंत्री जोसेफ स्टालिन कॉलोनियल और निर्भर देशों के पूंजीपतियों को “समझौता करने वाली” और “क्रांतिकारी” ताकतें मानते थे. उनका ये भी मानना था कि ये ताकतें अपने ही लोगों की पीठ पीछे इंपीरियलिज़्म के साथ मिलकर “साजिश” कर रही थीं.
1950 - 1970 का दशक: नींव की स्थापना
1953: पहले भारत-सोवियत ट्रेड एग्रीमेंट पर साइन हुए. इससे आर्थिक सहयोग की शुरुआत हुई.
1955: पहले प्रधानमंत्री का दौरा: साल 1955 भारत-USSR रिश्तों के लिए अहम था, उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जून 1955 में मॉस्को गए और रूसी पीएम निकिता ख्रुश्चेव ने नवंबर 1955 में उनके बदले में दौरा किया. इन दोनों दौरों ने अगले तीन दशकों के लिए रिश्तों की रफ़्तार तय की. इन दो दौरों ने अगले तीन दशकों के लिए रिश्तों की रफ़्तार तय की.
1960 का दशक: 1960 के दशक में चीन के साथ दोनों देशों के बिगड़ते रिश्तों ने उन्हें और करीब ला दिया. सोवियत यूनियन भारत के लिए एक जरूरी पार्टनर बनकर उभरा. सोवियत यूनियन ने भारत के सपोर्ट में कई बार UN सिक्योरिटी काउंसिल में अपने वीटो का इस्तेमाल किया. 1957 और 1971 के बीच आधा दर्जन बार वीटों का इस्तेमाल किया. यह आमतौर पर कश्मीर के मुद्दे पर और एक बार गोवा में पुर्तगाली शासन को खत्म करने के लिए भारत के मिलिट्री दखल के संबंध में था. भारत ने 1956 में हंगरी संकट और 1968 में चेकोस्लोवाकिया के दौरान USSR के खिलाफ वोट में हिस्सा नहीं लिया. भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध के दौरान, USSR ने बीच-बचाव की भूमिका निभाई और 1966 में तथाकथित ताशकंद समिट की मेजबानी की, जहां एक शांति संधि पर साइन किए गए. भारतीय प्रधानमंत्री का वाशिंगटन से वापस आते समय मॉस्को में रुकना भी आम बात थी.
1962: सोवियत यूनियन ने चीन-भारत युद्ध के दौरान भारत को मिलिट्री सपोर्ट दिया, जिससे रक्षा संबंध मजबूत हुए.
1971: भारत और सोवियत संघ के बीच रिश्तों में एक अहम मोड़ 9 अगस्त, 1971 को शांति और दोस्ती की संधि पर साइन होना था। शांति, दोस्ती और सहयोग की संधि गहरी होती साझेदारी का नतीजा थी। इसमें एक ज़रूरी सिक्योरिटी प्रोविज़न शामिल था जिसके तहत दोनों “किसी भी तीसरे पक्ष को कोई मदद देने से बचेंगे जो दूसरे पक्ष के साथ हथियारबंद लड़ाई में शामिल है। अगर किसी भी पक्ष को इससे कोई खतरा होता है, तो हाई कॉन्ट्रैक्टिंग पार्टियां तुरंत आपसी बातचीत करेंगी ताकि ऐसे खतरे को दूर किया जा सके और अपने देशों में शांति और सुरक्षा पक्का करने के लिए सही असरदार कदम उठाए जा सकें।
1980 का दशक - कोल्ड वॉर और मजबूत रिश्ते
1980: भारत ने एडवांस्ड फाइटर जेट्स समेत डिफेंस टेक्नोलॉजी के ट्रांसफर के लिए सोवियत यूनियन के साथ एक एग्रीमेंट साइन किया.
1984: सोवियत यूनियन ने भारत को अपनी स्पेस कैपेबिलिटी डेवलप करने में मदद की, जिससे सोवियत मदद से भारतीय स्पेस प्रोग्राम लॉन्च हुआ.
1985: सोवियत यूनियन ने तमिलनाडु के कुडनकुलम में न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने में भारत की मदद की.
1987: डिफेंस टेक्नोलॉजी, जॉइंट एक्सरसाइज और वेपन सिस्टम में कोलेबोरेशन पर फोकस करते हुए मिलिट्री कोऑपरेशन पर एक फॉर्मल एग्रीमेंट साइन किया गया.
1990 का दशक: नब्बे का दशक दोनों देशों के लिए उथल-पुथल वाला समय था. सोवियत यूनियन के खत्म होने के बाद, भारत और रूस ने जनवरी 1993 में एक नई दोस्ती और सहयोग संधि और 1994 में एक दोतरफ़ा मिलिट्री-टेक्निकल सहयोग समझौता किया.
1991: सोवियत यूनियन खत्म हो गया, और रूस को USSR के विदेशी रिश्ते विरासत में मिले. भारत ने नए रशियन फेडरेशन के साथ जल्दी से तालमेल बिठा लिया और रूस के साथ अपने मजबूत रिश्ते को फिर से पक्का किया.
1993: 1993 में “स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप पर घोषणा” पर साइन होने के साथ भारत-रूस के रिश्तों का एक नया दौर शुरू हुआ. इस समझौते में राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया गया.
1994: रूस और भारत ने पहले के सैन्य संबंधों को आगे बढ़ाते हुए रक्षा और टेक्नोलॉजी में “द्विपक्षीय सहयोग के लिए रूपरेखा” पर साइन किए.
2000 का दशक: 2000 में व्लादिमीर पुतिन के राष्ट्रपति चुने जाने और भारत द्वारा मल्टी-अलाइनमेंट की नीति (वाजपेयी NDA के सालों में) अपनाने से उस दशक में भारत-रूस के रिश्ते बढ़े. इस दौरान, नई दिल्ली ने न केवल रूस के साथ, बल्कि US और EU के साथ भी स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप पर साइन किए. राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि भारत रूस के लिए एक अहम प्राथमिकता वाला पार्टनर है और इस बात पर जोर दिया कि एशिया के देशों सहित दूसरे देशों के साथ मॉस्को के रिश्ते चाहे जैसे भी हों, “वे कभी भी भारत के साथ रिश्तों का विकल्प या उनके प्रति कोई भेदभाव नहीं होंगे.”
2000 में, प्रेसिडेंट पुतिन के भारत दौरे के दौरान, इस पार्टनरशिप को एक नया क्वालिटी वाला रूप मिला, यानी स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप। स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप ने भारत के प्रधानमंत्री और रूस के प्रेसिडेंट के बीच सालाना मीटिंग्स को इंस्टीट्यूशनल बनाया और तब से ये मीटिंग्स रेगुलर होती रही हैं।
2000: भारत और रूस ने “स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप पर डिक्लेरेशन” पर साइन करके अपने रिश्ते को “स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप” तक बढ़ाया यह डिफेंस, न्यूक्लियर एनर्जी और स्पेस में लंबे समय के सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में एक अहम कदम था।
2001: डिफेंस कोऑपरेशन पर इंटरगवर्नमेंटल एग्रीमेंट पर साइन हुए, जिससे एक गहरा मिलिट्री अलायंस बना, खासकर मिलिट्री सिस्टम्स के जॉइंट डेवलपमेंट में.
2002: भारत और रूस ने स्पेस एक्सप्लोरेशन में सहयोग के लिए एक एग्रीमेंट पर साइन किए. रूस सैटेलाइट लॉन्च में भारत की मदद करने और स्पेस टेक्नोलॉजी शेयर करने के लिए सहमत हुआ.
2003: रूस और भारत ने एक “न्यूक्लियर कोऑपरेशन एग्रीमेंट” पर साइन किया. इससे भारत के सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम के लिए रूस का सपोर्ट पक्का हुआ.
2004: एयरक्रॉफ्ट प्रोडक्शन के लिए इंडो-रशियन जॉइंट वेंचर लॉन्च किया गया. इसमें मिलिट्री एयरक्रॉफ्ट मैन्युफैक्चरिंग पर कोलेबोरेशन भी शामिल था.
2005: कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक कोऑपरेशन एग्रीमेंट (CECA) फ्रेमवर्क पर सहमति बनी. इसका मकसद ट्रेड और इकोनॉमिक रिश्तों को बढ़ाना था.
2010: भारत और रूस ने “दिल्ली डिक्लेरेशन” पर साइन किया, जिसका मकसद अपनी स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप को और गहरा करना था, खासकर डिफेंस, स्पेस और एनर्जी सेक्टर में.

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