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- भारत पहली बार स्क्वैश विश्व कप विजेताIndia are the Squash World Cup winners for the first time.


विश्व कप नहीं, राष्ट्र का उत्सव: भारतीय स्क्वैश का स्वर्णाभिषेक

[स्वर्ण के स्पर्श से ओलंपिक तक: भारत का स्क्वैश महायान]

[स्वप्न, साधना और स्वर्ण: भारतीय स्क्वैश का अमर अध्याय]

 

·       प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

14 दिसंबर 2025 की उस उत्साह से भरी चेन्नई की जीवंत शाम, जब एक्सप्रेस एवेन्यू मॉल का शीशे से घिरा स्क्वैश कोर्ट तिरंगे की गूंज से थर्रा उठा। भारत ने खेल इतिहास में एक ऐसा अध्याय रच दिया जो केवल रिकॉर्ड पुस्तकों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पीढ़ियों की स्मृतियों में स्वर्णाक्षरों में अंकित होगा। यह क्षण मात्र विश्व कप जीतने का नहीं, बल्कि उस सपने की पूर्णता था जिसे भारतीय स्क्वैश वर्षों से संजोए हुए था। टॉप सीड हांगकांग चीन को फाइनल में एकतरफा 3-0 से परास्त कर भारत न सिर्फ विश्व चैंपियन बना, बल्कि इस प्रतिष्ठित ट्रॉफी पर अधिकार जमाने वाला एशिया का पहला देश भी। यह जीत साहस, रणनीति, धैर्य और अदम्य इच्छाशक्ति की सामूहिक विजयगाथा थी।


यह खिताब इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि भारत पूरे टूर्नामेंट में अजेय रहा। ग्रुप स्टेज में स्विट्जरलैंड और ब्राजील को 4-0 से रौंदना हो, क्वार्टर फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को 3-0 से बाहर करना हो, सेमीफाइनल में दो बार के डिफेंडिंग चैंपियन मिस्र को बिना एक भी मैच गंवाए हराना हो, या फाइनल में हांगकांग जैसी मजबूत टीम को पूरी तरह निष्प्रभावी करना—हर चरण में भारत ने अपनी सर्वोच्चता स्थापित की। एक भी टाई गंवाए बिना यह अभियान भारत को ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और मिस्र के बाद विश्व कप जीतने वाला केवल चौथा देश बनाता है, और एशिया में उसे निर्विवाद अग्रदूत के रूप में स्थापित करता है।

फाइनल की शुरुआत भारत की अनुभवी योद्धा, 39 वर्षीय जोशना चिनप्पा से हुई। विश्व रैंकिंग में 79वें स्थान पर होने के बावजूद उन्होंने 37वीं रैंकिंग वाली का यी ली को 7-3, 2-7, 7-5, 7-1 से पराजित कर अनुभव की शक्ति का सशक्त प्रमाण दिया। तीसरे गेम में निर्णायक क्षणों में धैर्य और रणनीति से बाजी पलटना और चौथे गेम में प्रतिद्वंद्वी को महज एक अंक पर रोक देना—यह प्रदर्शन केवल तकनीकी श्रेष्ठता नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता की जीत था। चेन्नई की अपनी बेटी जोशना घरेलू दर्शकों के जोशीले समर्थन से प्रेरित दिखीं और उन्होंने इसे अपने करियर की शीर्ष पाँच प्रस्तुतियों में शामिल बताया। यह जीत उस खिलाड़ी की कथा थी जिसने उम्र को कभी अपनी सीमा नहीं बनने दिया।

इसके बाद जब अभय सिंह कोर्ट पर उतरे, तो मुकाबले की गति ही बदल गई। युवा जोश और निर्भीक आक्रमण उनके हर शॉट में झलक रहा था। विश्व रैंकिंग में 29वें स्थान पर काबिज अभय ने हांगकांग के एलेक्स लाउ को महज 19 मिनट में 7-1, 7-4, 7-4 से सीधे गेमों में परास्त कर भारत को 2-0 की अजेय बढ़त दिला दी। उनकी जबरदस्त फिटनेस, बिजली-सी फुर्ती और निशाने पर लगते शॉट्स ने प्रतिद्वंद्वी को पलटवार का अवसर तक नहीं दिया। चेन्नई के इस स्थानीय नायक ने जीत को “अविश्वसनीय” बताते हुए कहा कि दर्शकों का अपार स्नेह ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बना।

निर्णायक मुकाबले में 17 वर्षीय अनाहत सिंह ने उतरते ही यह जता दिया कि भारतीय स्क्वैश का भविष्य कितना उज्ज्वल है। विश्व रैंकिंग में 28वें स्थान पर काबिज इस युवा सनसनी ने एशियन चैंपियन टोमाटो हो (रैंक 31) को 7-2, 7-2, 7-5 से पराजित कर खिताब पर अंतिम मुहर लगा दी। पहले दो गेमों में उनका दबदबा और तीसरे गेम में दबाव के क्षणों में दिखाया गया संयम असाधारण था। महज 16 मिनट में दर्ज इस जीत ने स्पष्ट कर दिया कि वह केवल एक प्रतिभा नहीं, बल्कि आने वाले वर्षों की नेतृत्वकर्ता है। टीम के चौथे सदस्य वेलवन सेंथिलकुमार को कोर्ट पर उतरने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी—इतनी निर्णायक थी भारतीय टीम की बढ़त।

यह विजय अनेक अर्थों में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। वर्ष 2023 में इसी वेन्यू पर भारत ने जहां कांस्य पदक हासिल किया था, वहीं महज दो वर्षों के भीतर उसी मंच पर स्वर्ण तक पहुंचना भारतीय स्क्वैश के तेज़ और ठोस विकास का सशक्त प्रमाण है। कोच हरिंदर पाल संधु ने इसे “उच्च दबाव में परफेक्ट प्रदर्शन” करार दिया—ऐसा प्रदर्शन जिसमें रणनीति की स्पष्टता, अनुशासन की गहराई और आत्मविश्वास की चमक एक साथ दिखाई दी। यह जीत भारतीय खेल तंत्र की उस परिपक्वता को रेखांकित करती है, जहां लक्ष्य अब केवल प्रतिस्पर्धा करना नहीं, बल्कि निरंतर वर्चस्व स्थापित करना बन चुका है।

सबसे महत्वपूर्ण यह कि स्क्वैश 2028 लॉस एंजिल्स ओलंपिक में पदार्पण करने जा रहा है। विश्व चैंपियन के रूप में भारत अब केवल प्रतिभागी नहीं, बल्कि ओलंपिक पदक का प्रबल दावेदार होगा। यह ट्रॉफी खेल की लोकप्रियता को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी, संसाधनों और फंडिंग के नए द्वार खोलेगी और देशभर से युवा प्रतिभाओं को आगे आने की प्रेरणा देगी। सौरव घोसल से जोशना चिनप्पा तक, और अब अनाहत सिंह व अभय सिंह की नई पीढ़ी तक—भारतीय स्क्वैश की यह यात्रा संघर्ष, निरंतरता और प्रेरणा की जीवंत मिसाल है।

चेन्नई की उस शाम ने यह स्पष्ट कर दिया कि स्क्वैश, जिसे कभी सीमित दायरों का खेल माना जाता था, आज भारतीय खेल संस्कृति का सशक्त और अभिन्न अंग बन चुका है। अनुभव और युवा जोश का यह अद्भुत संगम अब केवल एशिया तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे विश्व को चुनौती देने की क्षमता रखता है। यह विश्व कप किसी अध्याय का अंत नहीं, बल्कि एक भव्य शुरुआत है—ओलंपिक की ओर बढ़ते भारत के कदम अब और तेज़, और कहीं अधिक दृढ़ हो चुके हैं। भारत का यह स्क्वैश क्राउन केवल एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि उस स्वर्णिम युग की घोषणा है, जिसमें भारत स्क्वैश के नए सिकंदर के रूप में उभर कर सामने आया है।

 

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