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600 रुपए की पेंशन में कैसे चले जीवन, महंगाई के आगे बेबस बुजुर्ग और दिव्यांग, कोई वृद्धाश्रम तो कोई भीख के सहारेHow can one survive on a pension of 600 rupees? Elderly and disabled people are helpless in the face of rising prices; some are forced into old age homes, while others resort to begging.

 इंदौर। मध्य प्रदेश में सामाजिक सुरक्षा के नाम पर दी जा रही पेंशन और सहायता योजनाएं कागजों में तो बड़ी दिखाई देती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। महंगाई के इस दौर में जब रोजमर्रा की जरूरतें लगातार महंगी होती जा रही हैं, तब मात्र 600 रुपए मासिक पेंशन पर जीवन यापन करना जरूरतमंदों के लिए लगभग नामुमकिन हो गया है। हालात यह हैं कि बुजुर्ग, विधवा महिलाएं, दिव्यांग और असहाय परिवार दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। जनसुनवाई में कलेक्टर के सामने कई ऐसे दंपति पहुंचे, जिन्होंने बताया कि पेंशन मिलने के बावजूद उन्हें वृद्धाश्रमों का सहारा लेना पड़ रहा है, 

जबकि कई दिव्यांग मजबूरी में भीख मांगने को विवश हो गए हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इंदौर जिले में विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत कुल 1 लाख 75 हजार 375 हितग्राही पंजीकृत हैं। इनमें मानसिक एवं बहुविकलांग अनुदान सहायता योजना के अंतर्गत 2,635 हितग्राही शामिल हैं। यह वे लोग हैं, जिन्हें सामान्य लोगों की तुलना में ज्यादा देखभाल, दवा और सहारे की जरूरत होती है। बावजूद इसके, उन्हें मिलने वाली सहायता उनकी आवश्यकताओं के सामने बेहद कम साबित हो रही है। कई परिवारों का कहना है कि इलाज और रोजमर्रा की जरूरतों में ही पूरी पेंशन खर्च हो जाती है, बाकी जरूरतें अधूरी रह जाती हैं।

मुख्यमंत्री कन्या अभिभावक पेंशन योजना से 4,209 परिवार जुड़े हुए हैं। ये वे माता-पिता हैं, जिनकी केवल एक बेटी है या जो बेटी के विवाह के बाद पूरी तरह अकेले रह गए हैं। वहीं कुछ परिवारों में बच्चियों की पढ़ाई और परवरिश की जिम्मेदारी बुजुर्ग अभिभावकों पर है। शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य से जुड़ी बढ़ती जरूरतों के बीच यह सहायता राशि ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है

। लोगों का कहना है कि इतनी कम रकम से न तो बच्चों का भविष्य संवारा जा सकता है और न ही सम्मानजनक जीवन जिया जा सकता है। राज्य की सबसे बड़ी योजना एकीकृत सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना है, जिसके अंतर्गत 54,678 हितग्राही शामिल हैं। इसमें बुजुर्ग, विधवा और दिव्यांग वर्ग के लोग आते हैं। लेकिन अधिकांश लाभार्थियों का कहना है कि यह पेंशन केवल नाम की सहायता बनकर रह गई है। बढ़ती महंगाई में दवा, राशन और बिजली-पानी के बिल भरना भी मुश्किल हो गया है। कई बुजुर्गों ने बताया कि बच्चों द्वारा छोड़े जाने के बाद उन्हें समाज और सरकार दोनों से अपेक्षित सहारा नहीं मिल पा रहा है।

शहर में भिक्षावृत्ति पर सख्ती के बाद एक और चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। असहाय बुजुर्ग और दिव्यांग इंदौर छोड़कर अन्य जिलों की ओर जाने को मजबूर हो रहे हैं। इंदौर से रेस्क्यू कर उज्जैन के सेवाधाम आश्रम में भेजे गए कई बुजुर्ग, आश्रम से छूटने के बाद उज्जैन में ही डेरा जमाने लगे हैं। अधिकारियों ने भी माना है कि बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन उनके रखरखाव और पालन-पोषण के लिए पर्याप्त संसाधन और व्यवस्थाएं उपलब्ध नहीं हैं। वहीं दिव्यांगों को रखने वाली एक संस्था के बंद हो जाने से वहां रहने वाले बच्चे पूरी तरह अनाथ जैसी स्थिति में पहुंच गए हैं। दिव्यांग बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के उद्देश्य से चलाई जा रही दिव्यांग शिक्षा प्रोत्साहन सहायता राशि योजना से 2,353 लाभार्थी जुड़े हैं। 

लेकिन शिक्षा सामग्री, स्कूल तक आने-जाने का खर्च और उपचार की लागत के सामने यह सहायता बेहद सीमित साबित हो रही है। मुख्यमंत्री अविवाहित पेंशन योजना में मात्र 295 हितग्राही पंजीकृत हैं, जबकि मुख्यमंत्री कल्याणी पेंशन योजना से 71,291 महिलाएं लाभान्वित हो रही हैं। इसके बावजूद सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब आटा, दाल, सब्जी, दूध, दवाइयां और बिजली-पानी के बिल लगातार महंगे हो रहे हैं, तब 600 रुपए मासिक पेंशन से जीवन चलाना संभव नहीं है। 

सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं का मानना है कि यदि पेंशन की राशि में यथार्थ के अनुरूप बढ़ोतरी नहीं की गई, तो आने वाले समय में वृद्धाश्रमों और सड़कों पर असहाय लोगों की संख्या और बढ़ेगी। कई हितग्राही पहले ही कर्ज लेने या दूसरों पर निर्भर रहने को मजबूर हो चुके हैं। यह स्थिति समाज और शासन दोनों के लिए गंभीर चेतावनी है, जिस पर जल्द ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

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