(जयसिंह रघुवंशी(जय))
मुझे अच्छी तरह याद है जब निर्देशक हषिकेष मुखर्जी ने कहा था कि धर्मेन्द्र का सबसे बड़ा गुण उनका स्वास्थ्य होना है शायद यही वजह है कि विमल राय सरीखे निर्देशक ने उन्हें अपनी फिल्म बंदिनी में भूमिका दी। स्वयं हषिकेष मुखर्जी ने अभी भी मैं अपने फिल्मों अनुपमा और सत्यकाम में अपारंपरिक भूमिकाओं के लिए उन्होंने धर्मेन्द्र को चुना। वैसे आपको बता दो धर्मेन्द्र फिल्म फेयर यूनाइटेड प्रोड्यूसर को खोजा है। शुरुआत में उनकी प्रगति की गति बहुत धीमी रही। उन्होंने बेगाना ओर आप की परछाइयां में कुछ उल्लेखनीय काम नहीं करके दिखाया उनके जीवन में नया मोड 1964 में आया जब मोहन कुमार की हिट फिल्म " आयी मिलन की बोला" में उन्होंने लोकप्रिय जुबली कुमार राजेन्द्र कुमार से बाजी मार ली थी। धर्मेन्द्र ने इन फिल्म में खलनायक की भूमिका निभाई थी। हीरो राजेंद्र कुमार थे पर वाहवाही धर्मेंद्र ने ही लूटी थी, पर सफलता के शिखर पर पहुंचने वाली फिल्म फूल और पत्थर थी इसका निर्माण ओ. पी. रल्हन ने सन् 1966 में किया था। उसके बाद धर्मेन्द्र ने कभी मुड़कर नहीं देखा
। धर्मेन्द्र जिनका पूरा नाम धर्मेन्द्र सिंह देओल है ने फिल्मों में ऐसे मर्द पुरुष की रूप में छाए हुए है जिनका चेहरा भावशून्य नहीं है। बहुमुखी भूमियों में सफल धर्मेन्द्र कुछ फिल्मों में हास्य प्रधान भुमिकाएं भी की है। मुझे याद आ रही है मीना कुमारीजी की बात उन्होंने कह था धर्मेन्द्र जब हास्य प्रधान फिल्म करेंगे तब उनका अंदाज अलग ही होगा। जैसे फिल्म ज्वारभाटा, चुपके चुपके, प्रतिज्ञा, नौकर बीवी का, यमला पगला दीवाना ओर मीना कुमारी जी की बात सही रही।धर्मेन्द्र इन भूमिका में भी सफल रहे । धर्मेन्द्र एकमात्र ऐसे कलाकार है जो सुपर स्टार राजेश खन्ना के जमाने में भी छाए रहे और एंग्रीयांग मैंने अमिताभ के साथ जोड़ी सफल रहे। जैसे आशा पारेख, मीना कुमारी, नूतन, शर्मीला टैगोर, हेमा मालिनी के साथ 20 फिल्में की और रियल लाईफ में यह जोड़ी हिट रही है।
हेमाजी से धर्मेन्द्र की दी सुपुत्री आयना और ईशा है। फिल्म दुनिया की यह सबसे खूबसूरत रोमेंटिक जोड़ी रही है। परदे पर धर्मेन्द्र भले ही कठोर है लेकिन निजी जिंदगी में वह एक बोला और भावुक इंसान है। एक संपूर्ण नायक की हैसियत से फिल्म संसार में धर्मेन्द्र आज भी डेट हुए है। उनके साथ अभिनय की पारी शुरू करने वाले कलाकार आउट हो चुके है।
देशी जेम्सबॉन्ड ही मेन बहुत ही भोले और शर्मिले है। शीर्प पर पहुंचे के लिए उन्होंने कोई रणनीति कभी नहीं बनाई। फिल्में करना और करते चले जन शायद उनका मूल मंत्र था , उनके व्यक्तित्व के खुरदुरेपन में ही ऐसा आकर्षण शक्ति थी कि नायिकाओं दिलो के साथ दर्शक का प्यार भी लूटता चला गया। धर्मेन्द्र की कई फिल्में पुरस्कार के लिए नामिलेट हुई। व्यावसायिक सिनेमा में अपने शरीर ओर अपने आक्रमक तेवरों से एक बड़े अभिनेता के रूप में स्थापित हो चुके धर्मेन्द्र ने लीक से हटकर भी भूमिकाएं की है। ऋषिकेष मुखर्जी ने धर्मेन्द्र को लेकर अनुपमा, सत्यकाम, गुड्डी जैसी फिल्म बनाई। इन फिल्मों के जरिए धर्मेन्द्र ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा का सिक्का जमाया। अनुपमा का वह कवि तो सत्यकाम का ईमानदार इंजीनियर जो इस भ्रष्ट व्यवस्था खिलाफ उठ खड़े होने से अपने आपको रोक नहीं पाता। धर्मेन्द्र के बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता है।

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