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गुजरात शराबकांड में माफिया सूरज रजक अब भी आज़ाद: डेढ़ साल में पुलिस ने क्यों नहीं जोड़ा नाम? बाहुबली विधायक के दबाव में थमी कार्रवाई, इंदौर पुलिस पर उठे गंभीर सवालSuraj Rajak, the mafia boss in the Gujarat liquor scandal, remains at large. Why haven't the police added his name in a year and a half? The police action stalled under pressure from a powerful MLA, raising serious questions about the Indore police

इंदौर। अवैध शराब के काले कारोबार का वह बड़ा खुलासा, जिसने 17 अप्रैल 2024 को पुलिस को सुर्खियों में ला दिया था, आज डेढ़ साल बाद सवालों के कटघरे में खड़ा है। पुलिस ने उस दिन प्रेस नोट जारी कर कार्रवाई को “बड़ी सफलता” बताया था, 300 पेटी अवैध अंग्रेजी शराब पकड़कर वाहवाही लूटी थी और अधिकारियों ने खुद की पीठ थपथपाई थी। लेकिन सच्चाई यह है कि इस केस का सबसे बड़ा नाम-शराब माफिया सूरज रजक- 14 नवंबर 2025 तक भी न तो आरोपी बनाया गया और न ही उसकी गिरफ्तारी के लिए कोई ठोस कदम उठाया गया। यह वही सूरज रजक है जिसका नाम पकड़े गए ड्राइवरों और कर्मचारियों ने अपने बयान में साफ तौर पर लिया था।

उस दिन पुलिस ने बाईपास स्थित शराब दुकान से DVR भी जब्त किया था, जिसमें ट्रक की फुटेज साफ-साफ दिख रही थी। चालान डायरी में पूरे सप्लाई नेटवर्क की जानकारी मौजूद है। सबूत इतने स्पष्ट थे कि कोई भी जांच अधिकारी महज दो घंटे में केस की पूरी कड़ियां जोड़ सकता था। लेकिन इंदौर पुलिस ने डेढ़ साल में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया। वही फुटेज, वही डायरी, वही बयान… लेकिन कार्रवाई के नाम पर सन्नाटा।

क्या राजनीतिक दबाव ने रोक दी कार्रवाई?

इस रैकेट के पीछे जिस बाहुबली विधायक की भूमिका बताई जाती है, उसी राजनीतिक दबाव ने पुलिस को इस कदर जकड़ लिया कि शुरुआत में दिखाई गई आक्रामकता पूरी तरह हवा हो गई। पहले दिन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुलिस ने इसे अपनी मास्टर स्ट्रोक कार्रवाई बताया था, पर असली मास्टरमाइंड तक पहुंचने की हिम्मत किसी में नहीं रही। मामला सिर्फ छोटे कर्मचारियों तक सीमित कर दिया गया, जबकि वही कर्मचारी अपने बयान में लगातार कहते रहे थे कि सप्लाई का पूरा निर्देश सूरज रजक देता था। DVR फुटेज यह भी दिखाता है कि ट्रक किस दुकान से निकला, किसके आदेश पर भरा गया, और कैसे यह अवैध सप्लाई होती थी। सबूत इतने साफ हैं कि किसी भी स्तर पर संदेह की गुंजाइश नहीं बचती। लेकिन पुलिस ने इन सबूतों को लगभग अनदेखा कर दिया, क्योंकि मामला सीधे उस व्यक्ति तक जाता है जिसकी पकड़ सत्ता के गलियारों में बेहद मजबूत मानी जाती है।

सबसे बड़ा सवाल यही—इंदौर पुलिस चुप क्यों है?

अगर इंदौर पुलिस पर कोई दबाव नहीं था, तो फिर डेढ़ साल में सूरज रजक पर एक भी धारा तक क्यों नहीं जोड़ी गई? चालान डायरी किसलिए जब्त की गई थी? DVR क्यों उठाया गया था? ड्राइवरों और कर्मचारियों के बयान दर्ज क्यों किए गए थे? क्या यह सब चुनाव के पहले सिर्फ एक दिखावटी एक्शन था, ताकि पुलिस यह साबित कर सके कि वह अवैध शराब माफिया पर कठोर है? हकीकत यह है कि इंदौर में अवैध शराब का यह पूरा नेटवर्क एक बड़े रैकेट का हिस्सा था और पुलिस को इसकी जानकारी भी थी। लेकिन जैसे-जैसे जांच ऊपर की ओर जाती गई, दबाव और भारी होता चला गया। अब शहर इसी हकीकत को देख रहा है—सबूतों का ढेर, लेकिन कार्रवाई का पूरा शून्य।

क्या मामले को फाइलों में दफन कर दिया जाएगा?

अब सबकी निगाहें इंदौर पुलिस कमिश्नर संतोष कुमार सिंह पर टिकी हैं। क्या वे इस केस में सूरज रजक का नाम जोड़कर उसे सलाखों के पीछे पहुंचाने की हिम्मत दिखाएंगे, या फिर यह पूरा मामला भी राजनीतिक दबाव की भेंट चढ़कर फाइलों में गुम हो जाएगा? यह सवाल सिर्फ कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि पुलिस की साख और जनता के भरोसे का भी है।

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