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PWDV एक्ट के तहत महिला का रहने का अधिकार ससुराल वालों की शांति की कीमत पर नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्टA woman's right to live under the PWDV Act cannot be at the cost of the peace of her in-laws: Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि एक महिला का शेयर्ड घर में रहने का अधिकार "पूरी तरह या पक्का" नहीं है और इसे सीनियर सिटीजन/ससुराल वालों के शांति से रहने के अधिकारों के साथ बैलेंस किया जाना चाहिए [मंजू अरोड़ा बनाम नीलम अरोड़ा और अन्य]।

जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और हरीश वैद्यनाथन शंकर की डिवीजन बेंच ने कहा कि प्रोटेक्शन ऑफ़ वुमन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट, 2005 (PWDV एक्ट) लग्ज़री में बराबरी की गारंटी नहीं देता, बल्कि रहने के लिए सही जगह की गारंटी देता है।


कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि रहने का अधिकार सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए है, न कि कानूनी मालिकों की कीमत पर एक बड़े पारिवारिक घर पर कब्ज़ा बनाए रखने के लिए।

कोर्ट ने फैसला सुनाया, “बड़ा सिद्धांत यह है कि PWDV एक्ट के तहत रहने का अधिकार पूरी तरह या स्थायी नहीं है; यह सुरक्षा का अधिकार है, कब्ज़े का नहीं। इसी तरह, सीनियर सिटीज़न्स का अपनी प्रॉपर्टी में शांति और गरिमा के साथ रहने का अधिकार इस कानूनी सुरक्षा से कम नहीं है। जहाँ दोनों तरह के अधिकार टकराते हैं, वहाँ कोर्ट को एक नाजुक संतुलन बनाना होगा ताकि किसी भी पक्ष की गरिमा या सुरक्षा से समझौता न हो।”

कोर्ट ने समझाया कि जहाँ PWDV एक्ट पीड़ित महिला को रहने का एक ज़रूरी और सुरक्षात्मक अधिकार देता है, वहीं इसे सीनियर सिटीज़न्स के अपने घर में बिना किसी परेशानी के रहने के अधिकार को खत्म करने या अनिश्चित काल के लिए निलंबित करने के रूप में नहीं समझा जा सकता।

कोर्ट ने आगे कहा, “कानून को इस तरह से काम करना चाहिए कि सुरक्षा और शांति दोनों बनी रहें, खासकर उन मामलों में जहाँ एक ही छत के नीचे कई पीढ़ियाँ एक साथ रहती हैं, और पारिवारिक रिश्ते पूरी तरह से टूट गए हैं।”

बेंच ने ये फ़ैसले एक महिला की अपील को खारिज करते हुए दिए। महिला ने सितंबर 2025 में एक सिंगल-जज बेंच के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अपने ससुराल का घर खाली करने का निर्देश दिया गया था।

यह मामला महिला और उसके पति के बीच लंबे समय से चल रहे वैवाहिक विवाद से जुड़ा था, जिसमें परिवार के सदस्यों के बीच दो दर्जन से ज़्यादा मुकदमे पेंडिंग थे।

उसके ससुराल वालों ने दावा किया कि घर का माहौल "ज़हरीला और रहने लायक नहीं" हो गया है और उन्होंने उसे घर से निकालने का आदेश देने की मांग की, साथ ही एक वैकल्पिक घर का किराया और उससे जुड़े खर्च उठाने की पेशकश भी की।

महिला ने तर्क दिया कि यह प्रॉपर्टी उसका साझा घर है और वहां रहने का उसका अधिकार छीना नहीं जा सकता। उसने कहा कि दिया गया वैकल्पिक आवास अपर्याप्त है और उसे घर से निकालना PWDV एक्ट के तहत उसके कानूनी अधिकारों का उल्लंघन है।

कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज कर दिया और कहा कि ससुराल वालों द्वारा दिए गए वैकल्पिक आवास की पेशकश PWDV एक्ट की धारा 19(1)(f) के तहत उसके रहने के अधिकार की पूरी तरह से रक्षा करती है।

कोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि उसे चार हफ़्तों के भीतर उसी इलाके में एक दो-बेडरूम का फ्लैट दिया जाए, जिसका सारा किराया और यूटिलिटी पेमेंट ससुराल वाले करेंगे।

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