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हे जनार्दन तुम कब जागोगे.......O Janardan, when will you wake up?


                       • रवि उपाध्याय 

यदि आप से सवाल किया जाए कि देश को आजादी मिलने के बाद सबसे अधिक फायदा किस को हुआ ? तो बतलाइए आपका जवाब क्या होगा। शायद आप इसके जबाव में कहेंगे नेताओं का । तब हम कहेंगे एक दम गलत जवाब। भाई कुछ नेताओं को तो फायदा होना ही था। क्योंकि उन्होंने शायद आज़ादी के आंदोलन की अगुआई ही इसलिए की थी। 


उन्हें पहले से ही मालूम था कि इस समय देश की जनता अनपढ़ और थोड़ा में ही खुश होने वाली है। उन पर ताजी ताजी मिली आज़ादी का खुमार सवार है। इसे चने के झाड़ पर चढ़ा कर, उस झाड़ पर अपना उल्लू सीधा किया जा सकता है। पिछले 70-75 साल से यही हो रहा है। चुनाव दर चुनाव जनता को चने के झाड़ पर चढ़ा कर उस पर अपना उल्लू बैठा दिया जाता है। उस चने के झाड़ को कभी समाजवाद तो कभी साम्यवाद तो कभी पूंजीवाद का नाम दे दिया जाता है। जबकि उस झाड़ पर नितांत स्वार्थवाद के फल लगते हैं। आज़ादी मिलते ही नेताओं ने हमें बताया कि जनता ही उनके लिए जनार्दन हैं। स्वयं को जनार्दन बताए जाने पर हम फूल कर कुप्पा हो गए। हमें खुदा जो बता दिया गया था। जनार्दन के नाम पर हम को बेवकूफ बना कर ठगा गया।

आपको बता दें कि जब व्हाट्सएप, ईमेल और सोशल मीडिया नहीं थे। उस समय किसी की कुशल क्षेम पूछने और अपने हाल ए दिल बताने के लिए चिट्ठी लिखी जातीं थीं। उसमें संबंधित को यथा योग्य संबोधन करने के बाद लिखा जाता था यहां सब कुशल मंगल है। आशा है वहां भी कुशल मंगल होंगे। चिट्ठी में आगे यह जरूर लिखा जाता था कि थोड़ा लिखा है बहुत समझना। उसी तरह आज़ादी के बाद नेताओं ने जो आप हम को थोड़ा दिया उसे बहुत समझ लेने के लिए हमें बरगलाया। हमें यह बताया गया कि इसी में ही आनंद है।  कुढ़ने से क्या फायदा । बड़े बुजुर्गों ने पहले से ही यह सिखाया है संतोषी सदा सुखी। उसी संतोष की तिलक लगाएं हम तब से अब तक घूम रहे हैं।

खैर, यह बहस और रोना धोना तो चलता ही रहा है और आगे भी चलता रहेगा। क्योंकि चलना ही जिंदगी है और रुकना सीधे परम् ब्रह्म परमेश्वर से मिलने जैसा है। क्योंकि लोग भले ही ईश्वर, अल्लाह, जीसस और वाहे गुरु को सुबह, शाम, उठते, बैठते, खाते,पीते, सोते जागते बेचारे ईश्वर या खुदा को टेम- बेटेम याद कर चैन से न रहने दें। पर यह भी सच्चाई है कि जिस दिन उसने तुम को याद कर लिया तो सोचो उस दिन फ़िर क्या होगा। इसे राहुल गांधी के शब्दों में कहें तो कहेंगे। खेल खत्म, फिनिश, टाटा- बाय बाय। उसके बाद तो फिर कुछ भी नहीं रह जाता है। और कुछ रहता है तो खाली खाली डब्बा है खाली खाली बोतल है कुछ भी नहीं रह जाता है...।

अब हम अपने मूल सवाल और आपके जवाब पर लौटते हैं। माफ़ कीजिए यह मन तो बड़ा ही चंचल है जरा में यहां जरा में वहां ? न मैं जानू न तुम जानो। हां तो सवाल यह था कि आजादी मिलने का सबसे ज्यादा लाभ किसे मिला। आपका जवाब होगा, नेताओं को। तो अफसोस..,भाइयों ये जवाब हंड्रेड परसेंट ग़लत हैं। नेताओं ने तो आपके हित में वह काम किया कि जो काम भगवान भी नहीं कर सकते थे। ना भूतों न भविष्यते

हमारे देश के नेता तो बहुत ही दयालु हैं। जैसे ही देश को आज़ादी मिलने के बाद पहला आम चुनाव हुआ उन्होंने आप और हम जैसी तुच्छ साधारण जनता को जनार्दन बना दिया। जनार्दन का मतलब समझते हैं न जी। जनार्दन का मतलब होता है भगवान और खुदा। नेताओं ने आपको को खुदा बना दिया और बेचारे वे बाखुदा नाखुदा बन गए। भला कोई कर सकता है इतना बड़ा त्याग ? कि खुद तो असुर बन जाए और जनता को देवता बना दे। ऐसा काम कोई दयालु और त्यागी ही कर सकता है और उन्होंने ऐसा किया भी। 

आप कहोगे कि नेता भ्रष्टाचारी हैं। पापी हैं, चोर हैं,अधर्मी हैं । तो भैया आप ही बताओ उन्होंने नेता बनकर आपके होने वाले इन संभावित दुर्गुणों को अपना कर हम और आप को इन पापों से बचा के तो रखा है। यदि वे यह काम नहीं करते तो आप और हम यह करते और पाप के भागी बन जाते। मरने के बाद जब हम नरक में जाते और आपको उबलते हुए तेल के कड़ाहे में पकौड़े की तरह पकाया जाता तब कैसा लगता ? इस धरती पर पहले से ही नेताओं ने आपको क्या कम पकाया है। कभी जाति के नाम पर तो कभी मज़हब के नाम पर, कभी ऊंच नीच और अमीर गरीब के नाम पर वैसे ही पकाया है जैसे ईंटों को भट्ठों में पकाया जाता है । सोचो हमारे नेता कितने उपकारी हैं जिन्होंने ये सभी पाप स्वयं करके हमें नरक में जाने से बचा रखा है। हम को तो ऐसे उदारमना नेताओं का आभारी होना चाहिए। 

हमारे देश के एक सूबे में बड़े भले नेता हुए हैं। उन्होंने अपने सूबे में किसी व्यक्ति के बालिग होने तक की उम्र की अवधि तक जनता को भगवान मान कर उनकी पूजा की। वह पहले दिन से कहा करते थे ये सूबा मेरा मंदिर हैं और आप मेरे भगवान हैं  और में आपका पुजारी हूं । उन्होंने जनता की बरसों तक ऐसी सेवा की, कि उन पर झमाझम लक्ष्मी माता प्रसन्न हो कर धन - धान्य बरसने लगीं। बड़े बड़े लंबे चौड़े खेत, खलिहान और ट्रैक्टर हो गए। दूध दही की नदियां बहने लगीं। डेयरी में गाय भैंसों ने दूध दही के भंडार भर दिए। यह होता है जनता की सेवा का फल। भगवान के घर देर भले ही हो अंधेर कतई नहीं है। वो जब देता है तो फिर छप्पर फाड़ के देता है। भगवान जैसे उनके दिन फिरे है लक्ष्मी मैया ऐसे दिन सभी के पलटे ।

भाइयों इसमें अफसोस करने की कोई बात नहीं है, सोचो यदि तुम भी जन सेवा करते, तो भैया तुम भी मेवा खाते। अब तुम को तो जनार्दन बना कर बैठा दिया गया । अब चुपचाप भगवान टुकुर टुकुर  सुनते रहो दुनिया के दुःख दर्द। भगवान तो भावना के भूखे होते हैं। थोड़ा सा भजन और प्रसाद पा कर खुश हो जाते हैं और दे डालते हैं वरदान, चिरंजीवी भव: । यही हाल सियासी दुनिया के जनार्दनों आपका है,आप भी चना चिरौंजी में ही खुश हो कर उन्हें ठका ठक, ठका ठक वोट रूपी वरदान देते रहते हो। तो, है लोकतंत्र के जनार्दनों उठो और जागो । स्वयं के ईश्वर होने के गुमान और नेताओं द्वारा बुने गए भ्रम जाल से बाहर निकलो और इंसान बन कर जिओ । 

यह समझलो कि तुम न तो जनार्दन हो और न ही भगवान। नेताओं द्वारा तुम्हे जनार्दन बनाए गए भ्रमजाल से बाहर निकलो । अरे ! तुम इस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस मुल्क के असली मालिक हो, उठो ! वो मुल्क जिस पर उन हालियों ( कृषि श्रमिकों) ने कब्जा कर लिया जिन्हें तुमने खेत की देख भाल के लिए रखा है। तुम इस खेत के असली मालिक हो।खुद को पहचानो। 

जैसे दादी और नानियों द्वारा सुनाई जाने वाली पुरानी कहानियों में जादूगर की जान तोते की गर्दन में बसती थी । वैसे ही लोकतंत्र में सरकारों और नेताओं की जान वोट रूपी तोते में बसती है। इस वोट रूपी तोते की गरदन अब तुम्हारी मुट्ठी में है। जरा मरोड़ी की सरकारें टांय टांय कर गो वेंट गॉन हुईं...। तो उठो जनार्दन उठो ! वोट को तुम सुदर्शन चक्र बना कर नेताओं को बता दो कि तुम्हारे कब्जे में सरकार और सत्ता रूपी तोते की गर्दन है। 

( लेखक व्यंग्यकार और एक राजनैतिक समीक्षक हैं। )

05112025

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