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ग़ज़लGhazal

न जाने क्या-क्या सोचते रहते हैं हम,

जाने कितनों ने ढाये हम पर सितम।



यूहीं हम तो मिलते ही रहते थे सनम,

जब भी चल पडते साथ-साथ कदम।

खामोशियां भी रहती थी यहां हरदम,

बोलती थी आंखें हम हो जाते थे नम।

यह मूक प्यार कभी ना देता था दु:ख,

छूकर हाथ तुम्हारा मिलता रहा सुख। 

अब लगता है डर यह क्षण न ले छीन,

हर पल दुआ न कटे जीवन तुझ बिन।

संजय एम तराणेकर

(कवि, लेखक व समीक्षक)

इन्दौर-452011 (मध्य प्रदेश)

मो. 98260 25986

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