न जाने क्या-क्या सोचते रहते हैं हम,
जाने कितनों ने ढाये हम पर सितम।
यूहीं हम तो मिलते ही रहते थे सनम,
जब भी चल पडते साथ-साथ कदम।
खामोशियां भी रहती थी यहां हरदम,
बोलती थी आंखें हम हो जाते थे नम।
यह मूक प्यार कभी ना देता था दु:ख,
छूकर हाथ तुम्हारा मिलता रहा सुख।
अब लगता है डर यह क्षण न ले छीन,
हर पल दुआ न कटे जीवन तुझ बिन।
संजय एम तराणेकर
(कवि, लेखक व समीक्षक)
इन्दौर-452011 (मध्य प्रदेश)
मो. 98260 25986

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