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दिल्ली विस्फोट: यह सिर्फ हिंसा की एक घटना नहीं, देश के प्रतीकों-जनसुरक्षा के भरोसे पर चोट की कोशिशDelhi blasts: This is not just an incident of violence, it is an attempt to attack the symbols of the country and the trust in public safety.

प्रणव बजाज

दिल्ली के लाल किले के पास हुआ विस्फोट एक बार फिर यह याद दिलाता है कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में शांति बनाए रखना सतत सतर्कता की मांग करता है। यह सिर्फ हिंसा की घटना नहीं थी, यह एक सुनियोजित संदेश था, उन ताकतों की ओर से, जो भय के माध्यम से अस्थिरता फैलाना चाहती हैं।राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) की टीमें जांच में जुटी हैं। प्रारंभिक रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि विस्फोट में उपयोग किए गए इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) अत्यंत योजनाबद्ध तरीके से लगाए गए थे। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश में उसी दिन बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री जब्त की गई। उसी योजना की एक कड़ी के रूप में ये विस्फोट की घटना प्रतीत होती है


। हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने एक बड़े ऑपरेशन में बड़े खतरे को टाल दिया।भारत दशकों से आतंकवाद के खतरे से जूझ रहा है, लेकिन इन खतरों का स्वरूप अब बदल गया है। 1980-90 के आसपास पहले पंजाब फिर जम्मू-कश्मीर से शुरू हुआ आतंकवाद का जहर भारत के कई राज्यों और शहरों तक अपनी जड़ें सक्रिय और निष्क्रिय मॉड्यूल के रूप में फैला चुका है। लश्कर-ए-ताइबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे गैर-राज्य तत्व अब केवल सीमाओं के पार से नहीं, बल्कि प्रॉक्सी वॉरफेयर के माध्यम से स्थानीय नेटवर्क, डिजिटल प्लेटफॉर्म और छोटे वित्तीय चैनलों का उपयोग कर देश के भीतर तक पहुंच बना रहे हैं।आज की दुनिया में आतंकवाद सीमाओं तक सीमित नहीं रहा। यूरोप, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में हम देख रहे हैं कि प्रॉक्सी युद्ध न्यू नॉर्मल बन गया है, जहां विचारधारा, दुष्प्रचार और तकनीक को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत, जो इस अस्थिर क्षेत्र के मध्य में स्थित है, को इस बहुस्तरीय चुनौती का प्रतिदिन सामना करना पड़ता है। दिल्ली के लाल किले के पास हुआ यह हमला केवल जानमाल की हानि के लिए नहीं है, अपितु यह देश के प्रतीकों और जनसुरक्षा पर भरोसे को चोट पहुंचाने की कोशिश है।आतंक के वित्तपोषण, अवैध हथियारों के नेटवर्क, कट्टरपंथी सामग्री और साइबर अपराध जैसे वैश्विक खतरों ने देशों को आत्मसुरक्षा एवं अपने-अपने राष्ट्रीय हितों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर किया 

है। भारत की आंतरिक सुरक्षा नीति भी इसी बदलाव को दर्शाती है। बीते दो दशकों में देश ने एकीकृत सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली विकसित की है। राज्य पुलिस बलों, केंद्रीय एजेंसियों और अर्धसैनिक संगठनों के बीच आज सूचनाओं का त्वरित आदान-प्रदान और स्पष्ट कमांड संरचना मौजूद है। लाल किले की घटना के बाद हुई त्वरित प्रतिक्रिया, फॉरेंसिक टीमों की तैनाती और उनके बीच समन्वय यह दर्शाता है कि भारत की सुरक्षा संरचना कितनी विकसित हो चुकी है।एनआईए, मल्टी एजेंसी सेंटर (एमएसी) और नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (नैटग्रिड) जैसी संस्थाओं की स्थापना ने इस परिवर्तन की रीढ़ तैयार की। विशेष रूप से नैटग्रिड ने कई मंत्रालयों, जैसे आव्रजन, बैंकिंग, दूरसंचार और परिवहन के आंकड़ों को जोड़कर खुफिया एजेंसियों को संदिग्ध गतिविधियों का डिजिटल ट्रेल कुछ ही मिनटों में उपलब्ध कराने की क्षमता विकसित की है। हरियाणा और यूपी में एक दिन में अभी तक की विस्फोटक सामग्री की जब्ती इस प्रणाली की सफलता का प्रमाण है। हर राज्य में क्विक आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस), रिएक्शन टीम्स, फॉरेंसिक जांच ढांचा और बम निष्क्रियकरण ढांचा और अन्य वैज्ञानिक उपकरण उपलब्ध हैं। जांच अधिकारियों को मोबाइल फॉरेंसिक उपकरण, प्रशिक्षण और नियमित मॉक ड्रिल के माध्यम से तैयार किया जा रहा है।विशेषकर दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात एवं उत्तर प्रदेश ने आतंक निरोधी व्यवस्था में खुद को बार-बार साबित किया है। हालांकि, लाल किले का यह विस्फोट याद दिलाता है कि सुरक्षा का अर्थ केवल प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि पूर्वानुमान भी है। आधुनिक आतंकी संगठन अब कम लागत, घरेलू सामग्री और अप्रत्याशित समय का उपयोग करता है। पुलिस और खुफिया तंत्र के लिए असली चुनौती ऐसे पैटर्न को पहले ही पहचान लेना है, चाहे वह वित्तीय लेन-देन में असामान्यता हो, रैडिकलाइजेशन हो, ऑनलाइन कट्टरपंथीकरण हो या विस्फोटक सामग्री की असामान्य खरीद। हमें अमेरिका जैसे मजबूत एवं उन्नत राष्ट्रों से भी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है, जिसने 9/11 की घटना के बाद न केवल बाह्य, अपितु आंतरिक सुरक्षा के स्तर को इतना सुदृढ़ किया कि वहां ऐसी किसी बड़ी घटना की पुनरावृत्ति नहीं हुई। जनता की भूमिका भी अहम है। कई महत्वपूर्ण आतंकी मामलों में स्थानीय सूचनाओं और नागरिक सतर्कता ने निर्णायक योगदान दिया है। अब सामुदायिक सहयोग आंतरिक सुरक्षा का अनिवार्य अंग बन चुका है।हर घटना सीख देती है, और इन शिक्षाओं को संस्थागत रूप देना आवश्यक है। जांच के बाद की समीक्षा रिपोर्टें प्रशिक्षण, शहरी सुरक्षा मानचित्रण और खुफिया तंत्रों को बेहतर बना सकती हैं। अब समय है कि ध्यान पूर्वानुमान आधारित पुलिसिंग (प्रेडिक्टिव पुलिसिंग) पर केंद्रित किया जाए, न कि केवल जांच तक सीमित रहा जाए। तकनीक इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन निगरानी और डिजिटल फॉरेंसिक जैसे उपकरण पुलिसिंग को नई दिशा दे रहे हैं। नैटग्रिड का अगला चरण, जिसमें राज्यों के डाटा नेटवर्क को भी जोड़ा जाएगा, इस संरचना को और सशक्त बनाएगा। लेकिन अंततः सबसे अहम मानव तत्व है। जमीनी स्तर पर तैनात अधिकारियों की सतर्कता, जांचकर्ताओं की सूझबूझ और एजेंसियों के बीच तालमेल ही किसी आपदा को रोक सकते हैं। 

तकनीक सहायता करती है, लेकिन काम मनुष्य ही करता है।लाल किले के पास धमाके की जांच जारी है तथा आने वाले दिनों में सुरक्षा एजेंसियां इसके कारणों एवं सूत्रधारों का खुलासा करेंगी। आंतरिक सुरक्षा ढांचा पहले से कहीं अधिक सक्षम है, पर खतरे भी उतनी ही तेजी से बदल रहे हैं, तथा आतंकी संगठन अब और संगठित, आधुनिक तकनीक से लैस, एवं संसाधन युक्त हो रहे हैं। पुलिस आधुनिकीकरण, फॉरेंसिक साइंस और खुफिया साझेदारी में निवेश को दीर्घकालिक राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया जाना चाहिए। सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मसंतोष का कोई स्थान नहीं। भारत की सुरक्षा प्रणाली आज प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि सहनशीलता और आत्मविश्वास की प्रतीक बन चुकी है। लाल किला सदियों से अनेक संकटों का साक्षी रहा है, और हर बार राष्ट्र पहले से अधिक सशक्त होकर उभरा है। इस बार भी ऐसा ही होगा।

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