लेखक : सीए तेजेश सुतरिया, इंदौर
भारत के इतिहास में कुछ तिथियाँ केवल कैलेंडर पर दर्ज नहीं होतीं, वे राष्ट्र की आत्मा में बस जाती हैं। 19 नवंबर ऐसी ही एक अद्भुत तारीख है—एक ऐसा दिन जिसने दो अलग-अलग सदियों में भारत को दो विलक्षण स्त्रियाँ दीं, जिन्होंने अपने-अपने समय में साहस, नेतृत्व और अटूट संकल्प का अमिट उदाहरण प्रस्तुत किया।
19 नवंबर 1828 को जन्मीं रानी लक्ष्मीबाई ने पराधीन भारत को वह ज्वाला दी जो स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम में प्रज्वलित होकर पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गई। उनकी तलवार केवल युद्ध का शस्त्र नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और अस्मिता की पहचान थी। झांसी की रानी ने उस दौर में वह किया, जिसे आज भी असंभव साहस की ऊँचाई माना जाता है—अपनी मातृभूमि के सम्मान के लिए अंत तक लड़ना।
ठीक 89 वर्ष बाद, 19 नवंबर 1917 को जन्मीं भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वतंत्र भारत को वह नेतृत्व दिया जिसने वैश्विक राजनीति में देश की पहचान को मजबूती से स्थापित किया। उनका व्यक्तित्व किसी संघर्ष के मैदान में तलवार लेकर नहीं उतरा, लेकिन निर्णयों की दृढ़ता और राष्ट्रहित के प्रति अटल प्रतिबद्धता ने उन्हें आधुनिक भारत की सबसे प्रभावशाली नेताओं में स्थान दिलाया।
इन दोनों महान स्त्रियों को जोड़ती है उनकी कर्मशक्ति, उनका निर्भीक स्वभाव, और वह अटूट दृढ़ता, जिसने उन्हें अपने-अपने युग की पहचान बना दिया। इतिहास बदला, परिस्थितियाँ बदलीं, चुनौतियाँ बदलीं—लेकिन साहस की धारा 19 नवंबर को निरंतर बहती रही।
19 नवंबर इस बात की याद दिलाता है कि इतिहास केवल तारीखों से नहीं, बल्कि उन व्यक्तित्वों से बनता है जो अपने साहस, कर्म और सेवा से समाज में रोशनी जगाते हैं। ऐसे दिनों का महत्व हमें यह सिखाता है कि नारी शक्ति का योगदान किसी एक कालखंड तक सीमित नहीं—यह भारत की आत्मा का शाश्वत आधार है।
इस विशिष्ट तिथि पर, राष्ट्र इन दोनों विलक्षण स्त्रियों के साहस और योगदान को आदरपूर्वक स्मरण करता है।

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