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नाबालिग की संपत्ति बेचना गैरकानूनी, वयस्क होने पर रद करने का अधिकार', SC का अहम फैसला 'Illegal sale of minor's property, right to cancel on attainment of majority', important decision of SC

 

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि किसी नाबालिग की संपत्ति उसके प्राकृतिक अभिभावक ने बिना अदालत की अनुमति के बेच दी हो, तो बालिग होने पर उसे उस बिक्री को रद करने के लिए अदालत में मुकदमा दायर करना जरूरी नहीं है। वह अपने स्पष्ट और असंदिग्ध आचरण, जैसे उस संपत्ति को दोबारा खुद बेच देने के माध्यम से भी उस लेनदेन को अस्वीकार कर सकता है।

नाबालिग की संपत्ति बेचने के लिए अदालत की पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य

यह निर्णय जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने कर्नाटक के एक मामले में सुनाया। कोर्ट ने कहा कि हिंदू अल्पसंख्यक और अभिभावक अधिनियम, 1956 के अनुसार, प्राकृतिक अभिभावक को नाबालिग की संपत्ति बेचने के लिए अदालत की पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है और बिना अनुमति की गई बिक्री 'वाएडेबल' यानी शून्य घोषित करने योग्य है।



मामला दावणगेरे, कर्नाटक के दो प्लाटों से जुड़ा था, जिन्हें पिता द्वारा बिना अदालत की अनुमति बेचा गया था। बालिग होने के बाद बेटों ने स्वयं उन प्लाटों को दोबारा बेच दिया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह कदम अपने आप में पुरानी बिक्री को निरस्त करने का स्पष्ट संकेत है।


नाबालिग को वयस्क होने पर अपनी संपत्ति का सौदा रद करने के लिए मुकदमे की जरूरत नहीं

कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में नाबालिग के बालिग होने के बाद मुकदमा दायर करना एक विकल्प है, बाध्यता नहीं। यदि वह अपने आचरण से यह दर्शाता है कि वह पूर्व बिक्री को स्वीकार नहीं करता, तो वह पर्याप्त माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संपत्ति विवादों में नाबालिगों के अधिकारों को मजबूत करने वाला माना जा रहा है।

कहता है हिंदू अल्पसंख्यक और अभिभावक अधिनियम

विवादास्पद प्रश्न यह था कि क्या नाबालिगों के लिए यह जरूरी है कि वयस्क होने पर एक निर्धारित समयावधि के भीतर अपने प्राकृतिक अभिभावक द्वारा निष्पादित पूर्व सेल डीड को रद करने के लिए मुकदमा दायर करें। 

इसके जवाब में पीठ ने इस हिंदू अल्पसंख्यक और अभिभावक अधिनियम, 1956 की धारा सात और आठ का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि बगैर अदालत की अनुमति के नाबालिग की अचल संपत्ति के किसी भी हिस्से को उसके प्राकृतिक अभिभावक द्वारा बंधक रखने, बेचने, उपहार में देने या अन्यथा हस्तांतरित करने या यहां तक कि उस संपत्ति के किसी हिस्से को पांच साल से ज्यादा समय के लिए किराए पर देने या नाबालिग के वयस्क होने की तिथि से एक साल से अधिक समय के लिए पट्टे पर देने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

इसमें कहा गया है, ''इसलिए, अधिनियम की धारा 8 की उपधारा (2) के तहत किसी भी तरीके से नाबालिग की संपत्ति हस्तांतरित करने के लिए नाबालिग के अभिभावक के लिए अदालत की पूर्व अनुमति अनिवार्य है।''

क्या था मामला

यह विवाद कर्नाटक के दावणगेरे के शामनूर गांव में दो सटे हुए प्लाटों का है। रुद्रप्पा ने अपने तीन नाबालिग बेटों के नाम पर प्लाट खरीदा था, जिसे उसने जिला अदालत की मंजूरी के बगैर बेच दिया। बड़े होने पर बच्चों ने वही प्लाट शिवप्पा को बेच दिया। इस पर प्लाट के पूर्व खरीदार ने आपत्ति जताते हुए मुकदमा कर दिया।

कर्नाटक हाई कोर्ट ने उसके दावे को खारिज कर दिया। वहीं दूसरे प्लाट को भी रुद्रप्पा ने इसी तरह बेचा, जिसे रुद्रप्पा के नाबालिग बेटों ने बालिग होने पर शिवप्पा को बेच दिया। शिवप्पा ने दोनों प्लाट मिलाकर घर बना लिया। बच्चों की मां नीलम्मा ने इन प्लाट पर स्वामित्व का दावा किया।


 शिवप्पा ने सुप्रीम कोर्ट में केस फाइल किया था

ट्रायल कोर्ट में मामला खारिज हो गया, लेकिन प्रथम अपीलीय अदालत और 2013 में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष को पलट दिया। कोर्ट ने कहा कि नाबालिगों ने अपने पिता की सेल डीड को रद करने के लिए औपचारिक मुकदमा दायर नहीं किया था। इसके खिलाफ शिवप्पा ने सुप्रीम कोर्ट में केस फाइल किया था।

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