रवि उपाध्याय
भाई साहब यह कहावत एक दम सही है कि एक दिन घूरे के भाग्य भी पलटते हैं उसी तरह करवाचौथ वह दिन है जब 365 दिनों के बाद पति नामक निरीह प्राणी के भी दिन पलटते हैं। पूरे साल में भैया यही दिन है जब पति नाम का निरीह प्राणी महत्वपूर्ण नंदी की तरह महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दिन वह अपनी पत्नि को बड़ी शान से पानी पिला कर श्रीमती जी का उपवास तुड़वाता है। बाकी 365 दिन तो वह खुद ही टूटता रहता है। इस दिन अपनी जीवन संगिनी को पानी पिलाना उसकी ड्यूटी होती है। मतलब ड्यूटी मतलब ड्यूटी। नो भूल, नो चूक।
जो पति भूल गया तो पूरे साल भर पत्नि भी भूल जाती है कि आपका ओहदा क्या है और वो सात वचन क्या हैं ? जो उसने अग्नि और पंडत जी को हाजिर नाजिर मान कर लिए थे। वह यह भी भूल जाती है कि आप उसके पप्पू के पापा हो। वह आपको साल भर तक पापा को पप्पू बना कर रखती है और आपने यदि यह टास्क तय समय पर तय कर लिया तो भी कोई गारंटी नहीं कि अगली सुबह आपके साथ पत्नि का व्यवहार कैसा होगा। ऐसी परिस्थित में तब आपके साथ पुनः मूषको: भव: जैसी घटना होना तय है। इसलिए लिमिट में रहने का है, एटीट्यूड नहीं दिखाने का।
करवा चौथ वह दिन है जब पति को वास्तव में पहली बार अपने पतित्व का एहसास होता है। यह परिवर्तन,चुपचाप से मन ही मन आनंद लेने का है। क्योंकि पत्नि के आगे किसी की भी नहीं चलती है। यह वह शक्ति है जिसका कोई तोड़ नहीं है और यदि कहीं आपने ग़लती से जरा भी सब्स्टीट्यूट अथवा अल्टरनेट ढूंढने की कोशिश की तो वहां भी आपके पूजे जाने की शतप्रतिशत संभावना बलवती है। आपने वह बॉलीवुड फिलम देखी होगी जिसकाशीर्षकथा ' सौ दिन सास का एक दिन बहू का '। एक और टीवी सीरियल आया था सास भी कभी बहू थी। तो भाइयों यह समझ लो कि उपरोक्त लाइनों में वर्णित सास हो या बहू दोनों महिलाएं है। दोनों ही दोनों पदों पर रहते हुए पॉवरफुल हैं। यह हंड्रेड परसेंट मान लीजिए कि इनमें कोई भी पुरुष न तो कभी पॉवरफुल था और न कभी होगा। चाहे वह बेचारा पति हो या ससुरा। देव से पहले कुलदेवी की ही पूजा की जाती है।
करवा चौथ वह त्योहार है जहां पति को पत्नि को प्रसन्न करने का एक गोल्डन चांस मिलता है। इस दिन उसे पत्नि को उपहार देना होता है । उपहार को देखने के बाद ही गृह स्वामिनी द्वारा यह तय किया जाता है कि उस दिन आपको कितना वेटेज मिलना है। आपको ये सब निस्पृह भाव से श्रीमद् भगवत गीता जी के उपदेश को ध्यान में रख कर करना है। कि तुम क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाओगे। व्यर्थ की चिंता क्यों करते हो। मान अपमान यह सब सांसारिक भ्रम है, तुम्हें इस सबसे ऊपर उठना है। बिना किसी से आशा या अपेक्षा के।
तुम केवल यह देखो कि जिसे तुम सात फेरे लेकर आए थे वह पत्नि कितनी भक्ति भाव से तुम्हारी लंबी उम्र के लिए कितना कठिन उपवास कर रही हैं। वह चौबीसों घंटे, सातों दिनऔर बारह महीने तुम्हारी उसी तरह निगहबानी कर रही है जिस तरह फौजी सरहद पर निगहबानी करते हैं। उसका उद्देश्य है कि कहीं तुम पथ से भटक नहीं जाओ। जो पत्नि करवा चौथ पर तुम्हारी पूजा और आरती उतारने के बाद अपना उपवास तोड़ती है वही पथ से भटकने पर तुम्हारी आरती उतार भी सकती है। इसलिए यह दिन इसलिए बनाया है कि इस दिन को तुम एंजॉय करो। आगे तो सब भली करेंगे राम।
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