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करवट बदल रहा है देखो भारत का इतिहास Look, the history of India is changing…

संघ की शताब्दी वर्ष के कार्यक्रम शुरू हो गए इन कार्यक्रमों की कड़ी में पहला कार्यक्रम विजयादशमी के निमित्त निकलने वाले संचलनो की मालिकाओं में से एक संचलन में आज रहना हुआ। 





इस बार संघ ने अपनी भौगोलिक रचना जिसमें दस हजार की जनसंख्या पर शहरी क्षेत्र में बस्ती और ग्रामीण क्षेत्र में मंडल कहा है इस स्तर पर और कुछ विशेष श्रेणी के संचलन निकालने की योजना बनाई गई है। इसे इस तरह समझे कि भोपाल में कुल 279 बस्ती और मंडल हैं और भोपाल में लगभग 373 स्थानों पर संचलन निकलने वाले हैं।पूरे मध्यभारत में यानी शासकीय दृष्टि से भोपाल और ग्वालियर संभाग में 2000 से ज्यादा स्थानों पर संचलन निकलेंगे और हजारों नहीं लाखों की संख्या में स्वयंसेवक संचालन में चलेंगे इसके सटीक आंकड़े संघ कार्यक्रम पूरे होने के बाद जारी करेगा ही। इससे पूरे देश की कल्पना की जा सकती है। 

मेरा अयोध्या बायपास के वृंदावन बस्ती के संचलन में रहना हुआ। संचलन शुरू होने के पहले संघ स्थान पर बड़ी संख्या में माता - बहने पीले परिधान पहने उत्साह उमंग के साथ उपस्थित थी। बंधु भी शुभ्रवेश में उपस्थित रहे। सभी समाजजन बड़े कौतूहल और उत्साह के साथ कार्यक्रम में शामिल होते हुए देखे गए। कार्यक्रम में रखे गए संघ के विचार भी सभी ने भी पूरे मनोयोग से पूरे समय रुक कर शांति से सुने गौरतलब है कि इनमें से ज्यादातर लोग कमोबेश पहली बार संघ के किसी कार्यक्रम में मौजूद हुए । 


संघ का काम कैसे बढ़ रहा है, समाज संघ को किस तरह प्रतिसाद दे रहा है इसकी एक बानगी यहां देखने को मिली , इस बस्ती में अभी-अभी काम शुरू हुआ था किसी समय इस बस्ती में जिसमें पांच से छह मोहल्ले आते है, यहां किसी समय केवल दो स्वयंसेवक थे, शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों को सफल बनाने के इरादे से नगर की टोली ने इस बस्ती में संघ के काम को बढ़ाने करने का विचार किया, योजना बनी, घर घर संपर्क शुरू हुआ।  

स्वयंसेवकों के अनुभव में यह आया कि समाज आज संघ से जुड़ने को उत्सुक है ,संघ के साथ जुड़कर काम करना चाहता, है संघ जो कहेगा उसके अनुसार आगे बढ़ने को तैयार है।

 ये इस बात से साबित होता है कि संचलन जहां से निकलने वाला था उसके रास्ते में जहां-जहां से स्वयंसेवक गुजरे प्रत्येक चौराहे पर बड़ी संख्या में लोगों ने संचलन के स्वागत के लिए सुंदर रंगोलिया बनाकर रखी थी। बड़ी संख्या में माताएं टोकरियों में फूल इकट्ठे कर के उत्सुकता से संचलन की राह तक रही थी। ये सब समाज के लोगों ने स्वयं की प्रेरणा से किया। संचलन उनके पास पहुंचने पर फूलों की वर्षा भी कर रहे थे। घोष का नाद सुनकर उल्हास में मातृशक्ति घरों से एक दूसरे को आवाज दे कर निकाल रही थी।

बड़ा अद्भुत दृश्य था । शताब्दी वर्ष में संघ अपने कार्य के पांचवें चरण को उठाने जा रहा है। इसमें अब समाज की सहभागिता संघ के काम में होने जा रही है। साथ ही पंच परिवर्तन के विषयों को आचरण- व्यवहार में लाने के बारे में बड़े पैमाने पर समाजनो की भागीदारी होने जा रही है। 

संघ समाज के साथ मिल जाए और समाज संघ के समान हो जाए यह अपेक्षा इस चरण में है । इसका प्रतिसाद समाज से मिल रहा है, इसके स्पष्ट लक्षण दिखाई दे रहे हैं और समाज से अपेक्षा से कहीं ज्यादा प्रतिसाद मिलेगा ऐसा दिखाई भी दे रहा है। 


ये अनुभव लगभग हर उस जगह पर मिल रहा है जहां - जहां संचलन निकल रहे हैं। जब स्वयंसेवक घोष की ताल पर कदम से कदम मिलाकर संचलन में चलते है तब पूरे हिंदू समाज के मन में ये विश्वास कायम होता है कि अब विजयशालीनी संगठित शक्ति के हाथों धर्म का संरक्षण कर भारत को परम वैभव पर पहुंचता हुआ अपनी आंखों से जरूर देखेंगे।

आज सोशल मीडिया का हर प्लेटफार्म संचनल के वीडियो से लबरेज हो रहा है, स्वयंसेवकों के गणवेश में चित्र वाइरल हो रहे है। वास्तव में ये समाज है जो संघ जैसा होने जा रहा है और संघ समाज के साथ घुलनेमिलने जा रहा है। 

संघ के अधिकारियों को चर्चा में कहते हुए सुनते हैं कि समाज अब पलक पांवड़े बिछाकर संघ की प्रतीक्षा कर रहा है, इस बात को प्रत्यक्ष रूप में आज खुद अपनी आंखों से देखा। डॉक्टरजी और उनके बाद पांच सरसंघचालकों के मार्गदर्शन में लगभग 6 पीढ़ियां राष्ट्र कार्य के लिए समर्पित चुकी है । 


वर्तमान पीढ़ी वास्तव में सौभाग्यशाली है, जो अपनी आंखों के सामने इतिहास को गढ़ते हुए देख रही है । फिर वह भगवान श्री राम मंदिर की स्थापना हो, धारा 370 का हटना हो या आने वाले समय में समान नागरिक संहिता का लागू होना हो, या ऑपरेशन सिंदूर जैसे पराक्रम से भारत की साख दुनिया में स्थापित होती दिख रही हो। इन सारी बातों को देखकर यह विश्वास बढ़ता जा रहा है कि यह पीढ़ी जरूर अपनी आंखों से भारत को पूरे विश्व में सिरमौर बनता हुआ, सबसे ऊंचे पायदान पर बैठा हुआ देखेगी। 

समाज में सांघानुकूल, यानि देश हमे देता है सबकुछ हम भी तो कुछ देना सीखें ...का वातावरण बन चुका है, माता - भगिनियों का उत्साह तो देखते ही बन रहा है। जो लोग कहते हैं कि संघ में मातृशक्ति की कोई भूमिका नहीं वो लोग अपने पूर्वाग्रह के दबड़े से बाहर निकलकर जमीन पर उतरकर देखें किस तरह समाज और खास कर माता- बहने संघ के साथ कदम ताल मिलाकर चलने के लिए तैयार हो गया है। 

उर्दू में कहावत है कि यदि आग़ाज़ अच्छा हो जाए तो अंजाम भी अच्छा होता है, यह बात आज सही साबित होती हुई दिखाई दे रही है। सब दूर शताब्दी वर्ष में संचलन की शुरुआत जबरदस्त तरीके से हुई है और निश्चित ही आने वाले कार्यक्रम खास तौर पर घर-घर संपर्क, हिंदू सम्मेलन, सद्भाव बैठकें, प्रमुख जन गोष्ठीयाँ आदि सारे कार्यक्रमों में समाज का अभूतपूर्व प्रतिसाद मिलने वाला है।

विरोधियों के मंसूबे नाकाम होंगे, भारत का इतिहास करवट बदलने जा रहा है। तत्कालीन सरसंघचालक सुदर्शन जी ने तथा अन्य त्रिकालदर्शी महर्षियों ने कहा है सन 2020 से भारत का समय शुरू होगा, वह समय शुरू हो चुका है। 

जो संघ से जुड़कर उसके साथ काम में हाथ बटाऐंगे और अपना योगदान देंगे , वह निश्चित ही सौभाग्यशाली होंगे और अपने हाथों से भारत का इतिहास गढ़ेंगे, गढ़ता हुआ देखेंगे।

भारत माता की जय। 🇮🇳 🚩🙏

- गिरीश जोशी


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