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मानव इतिहास का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट - स्वच्छ ऊर्जा का युग - जब पूरी दुनिया में मुफ्त होगी बिजली”The greatest project in human history – the era of clean energy – when electricity will be free all over the world.”


-एडवोकेट अमेय बजाज 

मानव सभ्यता आज एक ऐसे युग की ओर बढ़ रही है जहाँ हमारी ऊर्जा-जरूरतें foss­i­l fuels या पारंपरिक non-renewable स्रोतों पर नहीं रहेंगी। इसके केंद्र में है ITER (International Thermonuclear Experimental Reactor) — एक ग्लोबल, बहुराष्ट्रीय प्रयोग जो “धरती पर सूरज बनाने” की दिशा में अग्रसर है। यह केवल एक विज्ञान-प्रयोग नहीं; यह ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरण-स्थिरता और वैश्विक सहयोग का प्रतीक बन चुका है।

🔭 क्या है ITER?



ITER का अर्थ है अंतरराष्ट्रीय ताप-परमाणविक प्रायोगिक रिएक्टर।

यह दक्षिणी फ्रांस के कडाराश (Cadarache) में बन रहा है, जहाँ 35 देशों के वैज्ञानिक और इंजीनियर मिलकर सूर्य की ऊर्जा उत्पन्न करने वाली नाभिकीय संलयन प्रक्रिया (Nuclear Fusion) को पृथ्वी पर दोहराने का प्रयास कर रहे हैं।

यह वही प्रक्रिया है जो सूर्य को अरबों वर्षों से जलाए हुए है —

जब दो हल्के परमाणु (जैसे हाइड्रोजन के समस्थानिक — ड्यूटेरियम और ट्रिटियम) आपस में मिलकर भारी परमाणु बनाते हैं और अपार ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं।

परियोजना का विस्तृत परिचय

ITER फ्रांस के दक्षिणी क्षेत्र Cadarache में स्थापित है, जहाँ 35 से अधिक राष्ट्र मिलकर काम कर रहे हैं। इसके अंतर्गत वह प्रक्रिया दोहराई जा रही है जो सूर्य में अरबों वर्षों से जारी है—दो हल्के परमाणुओं (Deuterium और Tritium) का संलयन (fusion) करना, जिससे Helium और विशाल ऊर्जा उत्सर्जित होती है। यह प्रयोग कठिन, बहुआयामी और परस्पर निर्भर इंजीनियरिंग चक्रों से भरा हुआ है।

इसमें शामिल है:



 • एक विशाल Tokamak यंत्र जिसमें उच्च-चुंबकीय क्षेत्र बनाए जाते हैं।

 • सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट्स, जो प्लाज़्मा को नियंत्रित रखने के लिए अत्यधिक ठंडे तापमान (≈ –269 °C) पर काम करते हैं।  

 • उच्च तापमान पर (लगभग 150 मिलियन °C) प्लाज़्मा को गर्म करना, जिसे सूरज के केंद्र की तुलना में भी अधिक ताप माना जाता है।  

 • सुरक्षित संचालन के लिए कड़ाई से तय शर्त-साधन और वैश्विक विनियामक मानदंड।


इन सबका उद्देश्य है वह स्थिति प्राप्त करना जिसे “burning plasma” कहा जाता है — जहाँ उत्पन्न ऊर्जा उस ऊर्जा से अधिक हो जाती है जो इसे बनाए रखने में खर्च होती है।

वर्तमान चरण — “Final Assembly” की दिशा में

वर्तमान में ITER का सबसे अहम चरण है Reactor Core Assembly — अर्थात् उस हिस्से का निर्माण जिसमें सभी मुख्य घटक, यंत्र, मैग्नेट्स, कूलिंग सिस्टम्स और संरचनाएँ एक साथ जुड़ रही हैं।  



इसमें विशेष रूप से ध्यान देनेीय बातें हैं:

 • 2025 में पहली बार “First Plasma” तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है।  

 • प्रमुख कम्पोनेंट्स जैसे Vacuum Vessel Sectors, Cryostat, Tokamak Building और अन्य उपकरणों का एकीकरण चल रहा है।  

 • इस चरण में देरी और लागत बढ़ोतरी का सामना भी हो रहा है। नवीनतम जानकारी कहती है कि प्रारंभिक व्यावसायिक उत्पादन (Deuterium–Tritium phase) लगभग 2035 से शुरू हो सकता है।  

यह चरण इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि यह सफल रहा, तो यह पुष्टि करेगा कि “वाणिज्यिक-स्तर पर fusion ऊर्जा संभव है” — और यह कार्बन-मुक्त, अत्यंत संसाधन-प्रभावी ऊर्जा का मार्ग प्रशस्त करेगा।



भारत की भागीदारी — आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व

भारत इस महा-प्रयास का एक अहम स्तंभ है। भारत ने 2005 में इस परियोजना में शामिल होकर लगभग 9 % ‘in-kind’ योगदान देने का承诺 किया है।  

भारत के प्रमुख योगदान इस प्रकार हैं:

 • Cryostat : लगभग 3,850 टन वजन का, 30 मीटर ऊँचा व 30 मीटर व्यास का स्टील-वैक्यूम चैंबर। इसे गुजरात में लार्सेन & टुब्रो (L&T) द्वारा निर्मित किया गया।  

 • Cryolines & Cryo-distribution सिस्टम : –269 ° C पर मैग्नेट्स को ठंडा रखने हेतु बनाया गया नेटवर्क।  

 • In-wall Shielding, Cooling Water सिस्टम, Heating Systems, Diagnostics & Power Supplies — भारत की कई कंपनियाँ और अनुसन्धान संस्थाएँ इन भागों को विकसित कर रही हैं।  

 • इस प्रकार भारत न केवल घटक सप्लायर है बल्कि तकनीकी महारत और उच्च-प्रौद्योगिकी निर्माण की दिशा में भी अग्रसर है।

भारत की यह भूमिका दिखाती है कि हम केवल ‘सहभागी’ नहीं बल्कि भविष्य-ऊर्जा के वैश्विक वरियता क्षेत्र में ‘नेता’ बन सकते हैं।

ITER का विकास और भविष्य

ITER की अवधारणा 1985 में जन्मी। इसके बाद 2007 में निर्माण स्थल Cadarache, France में चुना गया। 2010 से 2024 तक Engineering और Component Integration का महत्त्वपूर्ण दौर चला, जिसमें सभी प्रमुख उपकरण और घटकों का विकास और परीक्षण किया गया। वर्तमान में 2025 में Reactor Core Assembly प्रारंभ हो चुका है, जो परियोजना का सबसे अहम चरण है। आने वाले वर्षों में, 2030 के दशक में First Plasma Experiment (Hydrogen–Deuterium Fusion) के माध्यम से प्रारंभिक ऊर्जा उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ाया जाएगा। 2036 तक Full Magnetic Capability हासिल करने की योजना है, जबकि 2039 में Deuterium–Tritium Experimental Phase प्रारंभ होगा। और अंततः 2050 के बाद, DEMO Reactors के माध्यम से वाणिज्यिक Fusion Power Plants का मार्ग प्रशस्त होगा।

आगे की चुनौतियाँ एवं अवसर

इस परियोजना के सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं, लेकिन साथ ही वे अवसर भी हैं जिनका सही उपयोग हमारी ऊर्जा-भविष्य को बदल सकता है:

 • Materials & Engineering: fusion उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले सामग्री को अत्यधिक ताप, विकिरण व चुंबकीय तनाव सहन करना होता है। उदाहरण के लिए, helium बबल्स तथा अन्य माइक्रो–डैमेज के अध्ययनongoing हैं।  

 • Tritium Breeding & Sustainability: भविष्य के रिएक्टरों में Tritium की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना आवश्यक है। इसकी तकनीक अभी विकासाधीन है।

 • व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा: निजी कंपनियाँ भी fusion ऊर्जा क्षेत्र में कदम रख रही हैं; समय के साथ ITER जैसे प्रोजेक्ट्स के परिणाम तेजी से सामने आने की संभावना है।

 • शेड्यूल और लागत नियंत्रण: जैसा कि नवीनतम रिपोर्ट कहती हैं, इस तरह की परियोजनाएँ अक्सर समय व बजट से पीछे रहती हैं, इसलिए प्रबंधन व नियंत्रण महत्त्वपूर्ण हैं।  

 • उपयोग-स्तर तक पहुंच: ITER मुख्यतः अनुसंधान-उद्देश्य से है; वाणिज्यिकरण (electricity grid में feed) अगले चरण में आएगा — दुनिया के सामने यह ट्रांज़िशन करना चुनौतीपूर्ण होगा।  

वैश्विक एवं राष्ट्र-स्तरीय प्रभाव

ITER यदि सफल होता है, तो उसके परिणाम मानवता के लिए क्रांतिकारी होंगे। एक मिनट में यह समझा जा सकता है कि:

 • यह समान मात्रा की ऊर्जा देता है जो वर्तमान में भारी-दहन ईंधनों (फॉसिल fuels) से निकलती है — मगर कुप्रभाव या प्रदूषण के बिना।  

 • यह कार्बन-उत्सर्जन को समाप्त कर सकता है, जिससे जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायता मिलेगी।

 • भारत जैसे विकासशील देशों को ऊर्जा-स्वायत्तता मिलेगी, फॉसिल-ईंधन पर निर्भरता कम होगी, आर्थिक एवं पर्यावरणीय लाभ होंगे।

 • वैश्विक वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग नेटवर्क मजबूत होंगे — उच्च-प्रौद्योगिकी उत्पादन-श्रेणी में भारत की भागीदारी बढ़ेगी

निष्कर्ष

स्वच्छ, असीमित और निर्बाध ऊर्जा का सपना अब कल्पना नहीं रहा — वह अब व्यावहारिकता की ओर कदम बढ़ा रहा है।

ITER के माध्यम से हम देख रहे हैं कि कैसे वैश्विक सहयोग, वैज्ञानिक साहस, तकनीकी नवप्रवर्तन और देश-निर्देशित संकल्प मिलकर उस युग को जन्म दे सकते हैं जिसमें हम foss­i­l fuels की जंजीरों से मुक्त होंगे। भारत की भूमिका इस यात्रा में न केवल सहयोगी की है — बल्कि नेतृत्वकारी की भी है।


जब उस युग में हम प्रवेश करेंगे, जहाँ ऊर्जा की चिंता नहीं, बल्कि उसका शांतिपूर्ण, समृद्धिपूर्ण और पर्यावरण-संवेदनशील उपयोग होगा — तब यह याद रहेगा कि वह प्रथम कदम था जब हमने “धरती पर सूरज” बनाने का साहस किया और सफलता की ओर बढ़े।

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