केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा है कि लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के 15 साल के शासनकाल के दौरान एक लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था, जिसकी FIR तक दर्ज नहीं की गई।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 एक बार फिर जंगलराज के मुद्दे पर ही लड़ा जाएगा। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने जंगलराज का ठीकरा राजद के सिर फोड़ते हुए इसे साफ कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद सिंह और राबड़ी देवी के शासन काल में एक लाख से ज्यादा हत्याएं हुईं। लालू राबड़ी का शासन काल हत्या, अपहरण , बलात्कार और नरसंहार का काल था। ऐसे ही न्यायालय ने लालू-राबड़ी राज को जंगल राज कहा था।
15 साल में 18,186 मर्डर- राय
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि ऑफिशियल डाटा की बात करें तो लालू-राबड़ी का शासन कम से कम 18,186 हत्या का गवाह रहा है। लेकिन ये संख्या काफी कम है। इसकी वजह यह है कि उनके शासन काल में एफआईआर दर्ज ही नहीं होते थे। वही एफआईआर दर्ज होते थे, जिनके लिए जनता अडिग हो जाती या फिर बीजेपी आंदोलन कर देती। अगर ये सारे हत्या के मामले दर्ज होते तो यह संख्या एक लाख से ज्यादा होगी।
15 सालों में 32 हजार अपहरण- राय
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने कहा कि लालू-राबड़ी राज के 15 साल में 32,000 अपहरण हुए। इनमें स्कूली बच्चे, माताएं, बहनों, बेटियां का अपहरण हुआ। अपहरण तो डाक्टरों, इंजीनियरों, व्यवसायियों और किसानों का भी हुआ। सबसे बड़ी बात कि इस अपहरण के समझौते का केंद्र सीएम आवास हुआ करता था। लालू यादव और राबड़ी देवी की सरकार अपराधियों, गुंडों की सरकार थी। इनके गुंडे और नेताओं में कोई फर्क नहीं था।
नरसंहार की भेंट चढ़े 600 निरीह लोग- नित्यानंद राय
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि वह राज नरसंहारों का राज था। इन 15 वर्षों में 59 बड़े जातीय नरसंहार हुए। इस नरसंहार में 600 लोगों की जान गईं। लेकिन लालू-राबड़ी की सरकार पीड़ित परिवार को न्याय दिलाना तो दूर, उनके पास अपनी संवेदना तक व्यक्त करने नहीं गए। तेजस्वी यादव में हिम्मत है तो जवाब दें कि इन नरसंहारों का जिम्मेदार कौन है? क्या राजद के शासन में नरसंहार करने वालों को संरक्षण नहीं मिलता था? क्या अपहरण के मामलों का निपटारा सीएम हाउस से नहीं होता था?चुनाव में भी हिंसा- नित्यानंद राय
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने कहा 1990 से 2004 तक हुए चुनाव में कुल 700 लोगों की हत्या हुई। इनमें 50 तो पुलिसकर्मी थे। ये हत्याएं गरीब लोगों की हुई थी। इन्हें वोट डालने नहीं दिया जाता था। जब कोई गरीब हिम्मत कर पहुंचता भी था तो राजद के गुंडे उन्हें रोकते थे। और नहीं मानने पर उनकी हत्या कर देते थे।

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