प्रणव बजाज
दो राज्यों में कफ सिरप से जुड़ी बच्चों की मौत की घटनाएं देश की दवा-नियामक व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े करती हैं। इस त्रासदी के बाद नीति नियामकों में जो सक्रियता दिख रही है, उम्मीद है कि उसके ठोस नतीजे निकलेंगे, ताकि ऐसे हादसे की पुनरावृत्ति न हो।
मध्य प्रदेश और राजस्थान में कथित रूप से जहरीले कफ सिरप से ज्यादातर पांच वर्ष से कम उम्र के मासूमों की मौत की दिल दहलाने वाली खबरों ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह संकट दवा निर्माण, वितरण और निरीक्षण की पूरी प्रक्रिया में गंभीर खामियों को दिखाता है।
दरअसल, सितंबर की शुरुआत में, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के परासिया में जब पांच वर्ष से कम आयु के कई बच्चे एकाएक स्वास्थ्य जटिलताओं के चलते मरने लगे, तो अधिकारियों को लगा कि कुछ गड़बड़ है। जमीनी जांच शुरू हुई, दूषित जल स्रोत, रोग फैलाने वाले चूहे और मच्छरों की आबादी-सभी कुछ जांचा गया, लेकिन कुछ ठोस नहीं पता चल सका।माता-पिता की असहमति से बच्चों का पोस्टमार्टम न करा पाना जांच में बाधा बना रहा। फिर जब सभी बच्चों की किडनी के काम करना बंद होने की बात सामने आई, तब इसे कफ सिरप से जोड़ा गया। दावा किया जा रहा है कि कोल्ड्रिफ कफ सिरप से मध्य प्रदेश में कई बच्चों की मौतें हो चुकी हैं। इसी तरह राजस्थान से भी करीब तीन बच्चों के मरने की खबर है, जिनका जिम्मेदार कायसन फार्मा के एक कफ सिरप को माना जा रहा है।जांच में पाया गया कि तमिलनाडु स्थित श्रीसन फार्मास्युटिकल कंपनी निर्मित कोल्ड्रिफ सिरप में डायथिलीन ग्लाइकॉल जैसे विषैले रसायन निर्धारित सीमा से कहीं अधिक पाए गए हैं।
यह त्रासदी 2022 में गांबिया और उज्बेकिस्तान में कथित भारतीय सिरप से हुई मौतों की याद दिलाती है। सवाल उठता है कि क्या हमने उससे कुछ सीखा? ऐसी घटनाएं देश की दवा-नियामक व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े करती हैं।हर राज्य में ड्रग कंट्रोलर दवा के प्रत्येक बैच की जांच के लिए जिम्मेदार होता है, परंतु जमीनी हकीकत यह है कि निरीक्षण औपचारिकता बनकर रह गया है। ऐसे भी दृष्टांत हैं, जिनमें गुणवत्ता परीक्षण में विफल रही दवाएं सरकारी योजना के तहत फिर से वितरित की जा रही हैं। ऐसे में, सवाल यह भी है कि सरकारी अस्पतालों में मुफ्त बांटी जाने वाली दवाएं कितनी सुरक्षित हैं। यह तंत्रगत भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता की ओर इशारा करता है।ऐसी विडंबनाओं से देश की ‘दुनिया के फार्मेसी हब’ वाली छवि पर आघात पहुंचेगा। अब समय है कि दवा उद्योग और नियामक संस्थाओं की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।
वहीं डॉक्टरों और फार्मासिस्टों को भी बच्चों को कोई सिरप या एंटीबायोटिक दवा देने से पहले पर्याप्त सतर्कता बरतनी चाहिए।त्रासदी के बाद दोनों राज्य सरकारों ने विवादित सिरपों पर प्रतिबंध लगाया है और जांच के आदेश दिए हैं। केंद्र सरकार ने भी एडवाइजरी जारी की है और जांच के लिए एक समिति भी गठित की है। उम्मीद है कि यह कार्रवाई सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं रहेगी और इससे व्यवस्था में ठोस बदलाव आएंगे।

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