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केंद्र सरकार बना रही है ऐसा नियम कि मुंबई में अडानी को सीमेंट प्लांट के लिए नहीं लेनी होगी पर्यावरण मंज़ूरी The central government is enacting a rule that will prevent Adani from seeking environmental clearance for its cement plant in Mumbai.

केंद्र सरकार ने नया मसौदा नियम पेश किया है, जिसके तहत कैप्टिव पावर प्लांट के बिना काम करने वाले सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट को पर्यावरण मंज़ूरी लेने की ज़रूरत नहीं होगी. इस प्रस्ताव से अडानी समूह की कल्याण (मुंबई) में 1,400 करोड़ रुपये की सीमेंट परियोजना आसान हो सकती है. स्थानीय लोग इस प्लांट का कड़ा विरोध कर रहे हैं। 

नई दिल्ली: पर्यावरण मंत्रालय ने 26 सितंबर को जारी अपने मसौदा अधिसूचना में प्रस्ताव रखा है कि ‘कैप्टिव पावर प्लांट के बिना काम करने वाले स्वतंत्र सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट’ को पहले से पर्यावरणीय मंजूरी लेने की अनिवार्यता से छूट दी जाए.

अगर यह प्रस्ताव मंजूर हो जाता है तो अडानी समूह के लिए कल्याण (जो मुंबई महानगरीय क्षेत्र का हिस्सा है) में अपनी 1,400 करोड़ रुपये की लागत वाली सीमेंट ग्राइंडिंग प्लांट परियोजना को आगे बढ़ाना आसान हो जाएगा.

6 एमएमटीपीए यानी प्रति वर्ष छह मिलियन मीट्रिक टन क्षमता वाला यह प्लांट अंबुजा सीमेंट लिमिटेड का है, जो अडानी समूह की कंपनी है. इस परियोजना का कल्याण के मोहने गांव और आसपास के 10 अन्य गांवों के स्थानीय लोग कड़ा विरोध कर रहे हैं.

धारावी पुनर्विकास परियोजना के बाद, यह मुंबई महानगर क्षेत्र में अडानी समूह की दूसरी परियोजना है जिसे स्थानीय निवासियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है.

गांव वालों के विरोध की जानकारी मीडिया में आने के बाद महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) ने 16 सितंबर को एक जनसुनवाई का आयोजन किया था, जिसमें लोगों ने प्लांट का जोरदार विरोध किया. नागरिकों ने कहा कि सीमेंट प्लांट से स्वास्थ्य और पर्यावरण पर बुरा असर पड़ेगा और सवाल उठाया कि सरकार इतनी घनी आबादी वाले शहर में इसे कैसे लगाने दे सकती है.

हालांकि, सरकार अब जो ड्राफ्ट नोटिफिकेशन लाई है, उसमें कहा गया है कि ऐसे प्लांट्स के लिए जनसुनवाई और एनवायरनमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट (ईआईए) यानी पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन की रिपोर्ट की ज़रूरत नहीं होगी. इसका तर्क यह है कि अकेले चलने वाले ऐसे ग्राइंडिंग यूनिट्स से प्रदूषण की संभावना कम होती है.

अधिकारियों का कहना है कि प्रस्तावित ग्राइंडिंग यूनिट में कैप्टिव पावर प्लांट नहीं होगा, जिससे ग्रांंइडिंग के लिए ‘कैल्सिनेशनट’ और ‘क्लिंकराइजेशन’ जैसी प्रक्रियाएं नहीं की जाएंगी, ये दोनों उच्च तापमान वाली प्रक्रियाएं हैं (पहली में कच्चे माल को गर्म किया जाता है, दूसरी में सीमेंट को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है).

इसका मतलब है कि ऐसे यूनिट से कार्बन उत्सर्जन कम होगा, सीमेंट प्लांट की तुलना में कचरा कम पैदा होगा और ऊर्जा की खपत भी घटेगी (क्योंकि उच्च तापमान वाली ये प्रक्रियाएं इसमें नहीं होतीं). इसके अलावा, कच्चे माल और तैयार उत्पादों का परिवहन रेलवे या ई-वाहनों (या दोनों के संयोजन) से किए जाने से प्रदूषण की संभावना और भी कम हो जाती है.

लेकिन स्थानीय लोगों को आशंका है कि संयंत्र से निकलने वाली धूल और गैसें घनी आबादी वाले शहर पर बुरा असर डालेंगी. प्रदर्शनकारी ग्रामीणों को अब तक सरकार द्वारा लाए नए ड्राफ्ट नोटिफिकेशन की जानकारी नहीं है.

ग्रामस्थ मंडल मोहने कोलीवाड़ा के अध्यक्ष सुभाष पाटिल, जो इस संयंत्र के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, ने कहा है कि गांव वालों को अभी तक केंद्र द्वारा जारी ऐसी किसी अधिसूचना की जानकारी नहीं है.

 ‘मुझे नहीं लगता कि यह सरकार का सही कदम है. हम इसे पढ़ेंगे और फिर सामूहिक रूप से तय करेंगे कि आगे क्या करना है.’

इस बीच महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी ने पुष्टि की कि यह ड्राफ्ट अधिसूचना केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी की गई है. उन्होंने कहा है, ‘लोग इस ड्राफ्ट पर अपनी आपत्तियां या सुझाव भेज सकते हैं और जैसे ही 60 दिनों की अवधि खत्म होगी, अंतिम निर्णय लिया जाएगा. हम नियमों के अनुसार कार्रवाई करेंगे.’

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