प्रणव बजाज
चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले तक विपक्षी दलों के महागठबंधन में जमकर एकता दिखाई जा रही थी, लेकिन चुनाव तारीखों की घोषणा और फिर नामांकन को लेकर जैसे-जैसे दिन आगे बढ़े आपसी टशन दिखने लगी. अब नामांकन दाखिल करने की मियाद खत्म हो गई है, देखना होगा कि आने वाले दिनों में ये गठबंधन कैसे चुनाव लड़ता है.
बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण के लिए कल सोमवार को नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया खत्म हो गई. दूसरे चरण के लिए ढाई हजार से भी अधिक नामांकन पत्र दाखिल किए गए. हालांकि पर्चा जमा कराने के दौर में विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया ब्लॉक में बिखराव की स्थिति दिखाई दी, क्योंकि कई सीटों पर सहयोगी दल आपस में ही मैदान में लड़ते दिख रहे हैं.
चुनाव आयोग के अनुसार, पहले चरण के लिए कुल 1,314 उम्मीदवार ही मैदान में रह गए हैं. 243 सीटों वाले विधानसभा की 121 सीटों पर अगले महीने 6 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. नामांकन पत्रों की जांच के दौरान 70 प्रत्याशियों ने नाम वापस ले लिए तो करीब 500 उम्मीदवारों के पत्र जांच के दौरान खारिज कर दिए गए.
कई सीटों पर फ्रेंडली मुकाबला
विपक्षी दलों के गठबंधन का नेतृत्व करने वाली और पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी रही राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने अपने 143 उम्मीदवारों की सूची जारी की, जबकि उनमें से ज्यादातर उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिए गए और उन्होंने नामांकन पत्र भी दाखिल कर दिए. आरजेडी ने कांग्रेस के साथ टकराव से बचने के लिए कुटुंबा रिजर्व सीट पर बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार राम के खिलाफ उम्मीदवार उतारने से परहेज किया, हालांकि उसके उम्मीदवार लालगंज, वैशाली और कहलगांव में कांग्रेस के उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.
इससे पहले, आरजेडी तारापुर सीट से पूर्व राज्य मंत्री मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के साथ भी चुनावी मुकाबला करने के लिए तैयार दिख रही थी, जहां एनडीए की ओर से उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं. साथ ही गौरा बोराम से भी अपना प्रत्याशी खड़ा किया है.
मुकेश सहनी की पार्टी में दरार
हालांकि, तारापुर सीट से मुकेश सहनी की पार्टी ने ऐलान किया कि वह अपने उम्मीदवार सकलदेव बिंद का समर्थन नहीं करेगी, जिन्होंने बाद नाराजगी दिखाते हुए बिंद ने अपना नामांकन पत्र ही वापस ले लिया और सम्राट चौधरी की मौजूदगी में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए.
मुकेश सहनी की वजह से चर्चा में आई दरभंगा जिले की गौरा बोराम सीट पर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद द्वारा बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को भेजे पत्र में बताया गया कि उनकी पार्टी सहनी के छोटे भाई संतोष का समर्थन कर रही है, और “हमारे चुनाव चिन्ह, लालटेन, के साथ आने वाले व्यक्ति के नामांकन पर विचार नहीं किया जाए”. लेकिन यह बेकार साबित हुआ क्योंकि आरजेडी के चुनाव चिह्न पर नामांकन पत्र दाखिल करने वाले अफजल अली ने पीछे हटने से इनकार कर दिया. इस वजह से पार्टी कार्यकर्ता भी असमंजस की स्थिति में हैं.
यही हाल परिहार सीट का भी है. आरजेडी को यहां भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है, पार्टी की महिला शाखा की प्रमुख रितु जायसवाल ने बतौर निर्दलीय अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है. वे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे की बहू को टिकट दिए जाने से खफा हैं. उनका मानना है कि पिछले विधानसभा चुनावों में उनकी हार में रामचंद्र पूर्वे की भूमिका थी, तब वह बहुत ही कम अंतर से चुनाव हारी थीं.
पिछली बार से कम सीटों पर कांग्रेस
विपक्षी दलों के इंडिया ब्लॉक में अंदरूनी कलह बछवाड़ा, राजापाकर और रोसड़ा में भी देखने को मिलेगी, जहां कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने तीनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रखे हैं. राजापाकर सीट कांग्रेस के पास है, जिसने मौजूदा विधायक प्रतिमा कुमारी दास को अपनी सीट बचाने का मौका दिया है.
बिहार में कांग्रेस कुल 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जो 2020 में लड़ी गई सीटों से 5 कम है, जिसमें उसे 19 सीटों पर जीत मिली थीं और तब महागठबंधन के बहुमत हासिल न कर पाने के लिए पार्टी के कमजोर स्ट्राइक रेट को ज़िम्मेदार ठहराया गया था.
कांग्रेस के अंदर दिख रही कलह
हालांकि इस बार हालात थोड़े बदले हुए हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी की मतदाता अधिकार यात्रा से पार्टी को फायदा मिलने की उम्मीद है. लेकिन यह भी है कि यात्रा से मिली बढ़त के बावजूद, पार्टी को कई जगहों पर तीव्र असंतोष का सामना करना पड़ रहा है. खुद पार्टी के ही नेता टिकट देने के लिए अपनाए गए मानदंडों पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. 5 साल पहले भारी अंतर से हारने वाले कई उम्मीदवारों को फिर से मौका दिया गया जबकि एनडीए को कड़ी टक्कर देने वाले प्रत्याशियों को नजरअंदाज कर दिया गया.
पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव, जिनकी शादी छत्तीसगढ़ से कांग्रेस की राज्यसभा सांसद रंजीत रंजन से हुई है, का टिकट बंटवारे में दिखा असर भी मतभेद की एक बड़ी वजह रही. उनके खास लोगों को मौजूदा विधायकों की जगह टिकट दे दिए गए हैं, या उन्हें उन सीटों से उतार दिया गया जहां पार्टी के जीतने की संभावना बहुत कम है.
शांति से चुनाव लड़ रहे वाम दल
विकासशील इंसान पार्टी, जिसका विधानसभा में फिलहाल कोई विधायक नहीं है, ने आक्रामक रूप से ’40-50 सीटों’ की मांग की थी, साथ ही यह भी मांग की थी कि अगर तेजस्वी यादव अगली सरकार का नेतृत्व करते हैं तो मुकेश सहनी ‘उपमुख्यमंत्री’ होंगे, लेकिन पार्टी ने अंत में महज 16 सीटों पर ही समझौता कर लिया.
इसी तरह सीपीएम (माले) लिबरेशन, जिसका 2020 में महागठबंधन में सबसे अच्छा स्ट्राइक रेट रहा था, तब उसने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12 सीटों पर जीत हासिल की थी, वह इस बार ज्यादा महत्वाकांक्षी नहीं रही और केवल 20 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है. 2 विधायकों वाले सीपीआई इस बार 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. सीपीएम जिसके भी 2 विधायक हैं, 4 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

Post a Comment