पर्यावरणीय एजेंसी एनर्जी एंड क्लाइमेट इंटेलिजेंस यूनिट (ईसीआईयू) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के आधार पर तैयार किए गए अनुमान बताते हैं कि दीपावली की रात भारत भर में लगभग 62,000 टन बारूदी सामग्री का उपयोग हुआ। यह आंकड़ा 2024 की तुलना में करीब 13 प्रतिशत अधिक है। यदि इसकी तुलना रूस-यूक्रेन युद्ध में प्रतिदिन होने वाले विस्फोटों से की जाए तो दीपावली की एक रात में जला बारूद उस युद्ध के तीन दिनों की बमबारी के बराबर है।पहली बार किसी अंतरराष्ट्रीय विश्लेषण में भारत के सांस्कृतिक उत्सव को वैश्विक युद्ध के बारूदी पैमाने पर रखकर देखा गया है। यह उत्सव और विनाश के बीच की महीन रेखा को समझने की एक चौंकाने वाली कोशिश है।
ईसीआईयू के अनुसार विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की ओर से किए गए आकलनों से पता चलता है कि इस बार दीपावली में बारूद की खपत अभूतपूर्व रही। द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट के डाटा के आधार पर किए गए आकलन के मुताबिक केवल पटाखों में इस्तेमाल हुए बारूद की मात्रा 62,000 टन रही।
ईसीआईयू के सर्वेक्षण में दिल्ली- एनसीआर, मुंबई, चेन्नई और जयपुर सहित 12 प्रमुख शहरों को शामिल किया गया, जिसमें विस्फोटकों की मात्रा 61,500 से 63,000 टन के बीच दर्ज की गई। वहीं, काउंसिल का साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) और राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) के आरंभिक रासायनिक डाटा के आधार पर किए गए आकलन के अनुसार यह आंकड़ा 59,000 टन के आसपास रहा। औसतन देखा जाए तो दीपावली में करीब 62,000 टन बारूद जलाया गया। इन आंकड़ों की अंतिम पुष्टि नवंबर 2025 में की जाएगी।स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) और रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टिट्यूट (आरयूएसआई) के अनुसार रूस - यूक्रेन युद्ध के मोर्चे पर औसतन प्रतिदिन 20,000 से 21,000 टन विस्फोटक सामग्री दागी जा रही है। इस तुलना से यह निष्कर्ष निकलता है कि दीपावली की एक रात में भारत ने जितना बारूद जलाया, वह युद्ध की लगभग तीन दिनों की बमबारी (72 घंटे) के बराबर है। यानी सिर्फ एक रात का दीपावली उत्सव युद्ध के एक दिन की पूरी बारूदी खपत से लगभग तीन गुना (295%) अधिक रहारासायनिक और पर्यावरणीय विश्लेषणईसीआईयू का आकलन कहता है
कि रासायनिक दृष्टि से दीपावली की आतिशबाजी और युद्ध के विस्फोटों में काफी हद तक समानता है। दोनों में ही उच्च तापमान, धात्विक मिश्रण और जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है। पटाखों से उत्पन्न औसत तापमान 1,400 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है, जबकि युद्धक तोपों और बमों के विस्फोट 2,800 डिग्री सेल्सियस तक तापमान पैदा करते हैं। दीपावली की रात वातावरण में 4.2 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ी गई, जबकि युद्ध से औसतन 1.9 लाख टन प्रतिदिन उत्सर्जन होता है।दीपावली का धुआं 48 घंटे की दमघोंटू परतदिवाली पर पटाखों का धुआं औसतन 36 से 48 घंटे तक वातावरण में बना रहता है, जबकि घनी आबादी वाले शहरों जैसे दिल्ली-एनसीआर, कानपुर व जयपुर में पिछले वर्ष इसका असर तीन दिन तक दर्ज किया गया था। इस धुएं में मौजूद सूक्ष्म कण (पीएम 2.5, पीएम 10), सल्फर डाइऑक्साइड व नाइट्रोजन ऑक्साइड हवा में नमी के साथ मिलकर धुंध (स्मॉग) बनाते हैं। नीरी के अनुसार दिवाली के बाद एयर क्वालिटी इंडेक्स को सामान्य स्तर पर लौटने में कम से कम 48 घंटे लगते हैं।

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