अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध इस हफ्ते और गहरा गया है। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने सोमवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरकार पर उकसावे भरे आर्थिक कदम उठाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि बीजिंग द्वारा दुर्लभ खनिजों पर नए निर्यात नियंत्रण लगाना पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को चुनौती देने जैसा है। बेसेंट ने फॉक्स बिजनेस से बातचीत में कहा, "यह चीन बनाम पूरी दुनिया है। उन्होंने जो नए निर्यात नियंत्रण लगाए हैं, वे अगले महीने से लागू होंगे। हमें नहीं पता कि उन्होंने यह कदम अभी क्यों उठाया, लेकिन हमने इसके खिलाफ आक्रामक रूप से जवाब दिया है।"
उन्होंने कहा कि अमेरिका चीन को इन महत्वपूर्ण खनिजों का हथियार बनाने की अनुमति नहीं देगा। बेसेंट ने कहा, "उन्होंने पूरी स्वतंत्र दुनिया की सप्लाई चेन और औद्योगिक ढांचे पर बंदूक तान दी है। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।" बेसेंट ने बताया कि अमेरिका ने पहले ही भारत, यूरोप और अन्य एशियाई लोकतांत्रिक देशों से समन्वय शुरू कर दिया है ताकि चीन के खिलाफ सामूहिक प्रतिक्रिया दी जा सके।
क्या हैं चीन के नए निर्यात नियंत्रण निर्माण
चीन द्वारा 9 अक्टूबर को घोषित नए नियमों के तहत अब किसी भी उत्पाद में यदि 0.1% से अधिक दुर्लभ खनिज मौजूद हैं, तो उसके निर्यात के लिए सरकारी अनुमति जरूरी होगी। इन नियमों में कुछ नए खनिजों को भी प्रतिबंधित सूची में शामिल किया गया है, साथ ही विदेशी सैन्य उपयोग के लिए इनके निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। आपको बता दें कि चीन दुनिया के 70% दुर्लभ खनिजों का खनन और 90% से अधिक प्रोसेसिंग नियंत्रित करता है, जिससे वह इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा, और ईवी उद्योग में भारी प्रभाव रखता है।
इनमें से डिसप्रोसियम जैसे तत्व इलेक्ट्रिक मोटर, टरबाइन और रक्षा प्रणालियों के लिए अहम हैं। बेसेंट ने कहा, "ये पदार्थ बहुत कम मात्रा में इस्तेमाल होते हैं, लेकिन इनके बिना कोई उद्योग नहीं चल सकता।"
'चीन खुद को नुकसान पहुंचा रहा है'
वित्त मंत्री बेसेंट ने कहा कि बीजिंग की रणनीति कमजीरी का संकेत है, ताकत का नहीं। उन्होंने कहा, "यह दिखाता है कि उनकी अर्थव्यवस्था मंदी में है। शायद यह कोई लेनिनवादी बिजनेस मॉडल है जिसमें ग्राहक को नुकसान पहुंचाना अच्छा माना जाता है।" उन्होंने कहा कि चीन की अर्थव्यवस्था मंदी या अवसाद की स्थिति में है और वह निर्यात बढ़ाकर इससे निकलने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यह रणनीति खुद चीन के लिए विनाशकारी साबित होगी।
अमेरिका हर संभव कदम उठाने को तैयार
बेसेंट ने कहा कि अमेरिका जो भी जरूरी होगा करेगा ताकि सप्लाई चेन स्थिर रहे और तनाव कम हो। उन्होंने कहा, "हम अलग नहीं होना चाहते, बल्कि जोखिम कम करना चाहते हैं। यह चीन बनाम दुनिया की स्थिति है।"
ट्रंप-शी मुलाकात पर सस्पेंस
बढ़ते तनाव के बीच बेसेंट ने पुष्टि की कि राष्ट्रपति ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाकात इस महीने दक्षिण कोरिया में होने की संभावना है, हालांकि स्थिति को देखते हुए कार्यक्रम में बदलाव भी संभव है। दोनों देशों के अधिकारी इससे पहले IMF और वर्ल्ड बैंक की बैठकों के दौरान वॉशिंगटन में प्रारंभिक वार्ता करेंगे। आने वाले हफ्तों में यह स्पष्ट होगा कि दोनों देश तनाव घटाने की दिशा में बढ़ते हैं या व्यापारिक टकराव एक नए मोर्चे में बदल जाता है।
भारत vs पाकिस्तानः नौसेना की तुलना, आंकड़ों में साफ दिखता है अंतर
भारतीय नौसेना 'ब्लू वाटर' नेवी है, जो हिंद महासागर से परे अपनी शक्ति दिखा सकती है। वहीं, पाकिस्तानी नौसेना 'ग्रीन वाटर' है, जो मुख्यतः तटीय रक्षा तक सीमित है। ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स 2025 के अनुसार, भारतीय नौसेना 293 जहाजों के साथ दुनिया की छठी सबसे बड़ी फ्लीट है और 5,93,603 टन के कुल टन भार के आधार पर पांचवें स्थान पर है। इसके पास 2 एयरक्राफ्ट कैरियर (INS विक्रमादित्य और INS विक्रांत), 13 डिस्ट्रॉयर, 14 फ्रिगेट्स, 18 पनडुब्बियां और 1,42,251 कर्मी हैं, जिन्हें 81 बिलियन डॉलर के रक्षा बजट का समर्थन प्राप्त है। दूसरी ओर, पाकिस्तानी नौसेना के पास 121 जहाज, कोई एयरक्राफ्ट कैरियर या डिस्ट्रॉयर नहीं, 10 फ्रिगेट्स, 8 पनडुब्बियां, 35,000 कर्मी और 3,50,000 टन का टन भार है, जो 10 बिलियन डॉलर के रक्षा बजट से संचालित है। पाकिस्तान की नौसेना 27वें स्थान पर है।
स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत
भारत के पास स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत है, जो MiG-29K फाइटर्स से लैस है। इसके अलावा, P-8I पोजीडन विमान समुद्री निगरानी में माहिर हैं। पाकिस्तान की ताकत उसके हंगोर-क्लास पनडुब्बियों में है, जो चीनी सहयोग से बनाई गई हैं, लेकिन संख्या में कम हैं। 1971 के युद्ध में भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह को नष्ट कर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को ठप कर दिया था आज भी वही खतरा मंडराता है।
पाकिस्तान की कमजोरी उसकी निर्भरता है- चीन और तुर्की से जहाज खरीदना। लेकिन भारत की 'आत्मनिर्भर भारत' पहल से 50 से अधिक नए जहाज निर्माणाधीन हैं। हाल ही में, अगस्त 2025 में अरब सागर में भारतीय नौसेना के ड्रिल्स ने पाकिस्तानी नौसेना को भी ड्रिल्स के लिए मजबूर कर दिया।
ऑपरेशन सिंदूरः जब अरब सागर में भारतीय नौसेना ने दिखाई ताकत
अप्रैल में पहलगाम हमले के बाद भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' शुरू किया। यह चार दिनों का संक्षिप्त लेकिन तीव्र संघर्ष था, जिसमें भारत ने पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों पर हवाई और मिसाइल हमले किए। लेकिन समुद्री मोर्चे पर भारतीय नौसेना की भूमिका निर्णायक साबित हुई। डिफेंस मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने 30 मई को कहा, "भविष्य में पाकिस्तान की किसी भी आक्रामकता का जवाब नौसेना की आग्नेय शक्ति से दिया जाएगा।" यह बयान पाकिस्तान के लिए चेतावनी था, क्योंकि ऑपरेशन के दौरान भारतीय नौसेना ने कराची के 300-400 मील दूर अपनी फ्लीट तैनात कर दी जिसमें एयरक्राफ्ट कैरियर, डिस्ट्रॉयर और फ्रिगेट्स शामिल थे।
पाकिस्तानी थिंक टैंक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मैरिटाइम अफेयर्स (NIMA) ने अगस्त में चेतावनी जारी की कि भारत प्री-एम्प्टिव स्ट्राइक्स से पाकिस्तानी नौसैनिक अड्डों को नष्ट कर सकता है। यही वजह है कि पाकिस्तानी नौसेना को पीछे हटना पड़ा। मैक्सर सैटेलाइट इमेजेस से पता चला कि पाकिस्तानी जहाज पूर्व की ओर बढ़ने के बजाय ईरान सीमा के पास ग्वादर बंदरगाह में शरण ले ली। भारतीय नौसेना ने 96 घंटों के अंदर अरब सागर में मिसाइल फायरिंग टेस्ट किए, जो पाकिस्तानी नौसेना को रक्षात्मक मुद्रा में बांध दिए।
एक वरिष्ठ रिटायर्ड भारतीय नौसेना अधिकारी ने बताया, "100 से अधिक ब्रह्मोस मिसाइलें पाकिस्तानी तेल टैंकरों और बंदरगाहों पर निशाना साध रही थीं। पाकिस्तान की वायुसेना पूर्वी मोर्चे पर व्यस्त थी, इसलिए उनका कोई हवाई कवर नहीं था।" यह स्थिति पाकिस्तान के लिए 'असहाय थी। अल जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी विशेषज्ञों ने स्वीकार किया कि 1965 और 1971 के युद्धों की तरह ही नौसेना फिर से निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

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