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हमारे युवांश को अपनी दक्षता अब भारत में ही दिखानी चाहिए ?Our youth should now show their skills in India only?

हमारे युवांश को अपनी दक्षता अब भारत में ही दिखानी चाहिए ?Our youth should now show their skills in India only?

मोदी सरकार भी अमेरिका जैसी सुविधाएं उपलब्ध करवाएं।


भारत में अमेरिकी कंपनियों पर शिकंजा हो।



प्रणव बजाज
  (संपादक)

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गत 17 सितंबर को भले ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके जन्मदिन पर बधाई दी हो, लेकिन ट्रंप भारत के सामने लगातार समस्याएं खड़ी कर रहे हैं। अब ट्रंप ने आदेश जारी किया है कि जो भारतीय अमेरिका की कंपनियों में नौकरी कर रहे है उन्हें 88 लाख रुपए शुल्क के तौर पर जमा कराने होंगे, तभी उन्हें एच-1 वीजा मिलेगा।



 गंभीर बात यह है कि ट्रंप का यह आदेश 21 सितंबर से लागू हो गया है। ट्रंप के इस आदेश से अमेरिकी कंपनियों में भी खलबली मच गई है। अमेरिका की प्रमुख माइक्रोसॉफ्ट, टीसीएस, इंफोसिस, अमेजन, गूगल, एपल इंक, वालमार्ट, डोट लाइन जैसी कंपनियों में भारत के इंजीनियर ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यदि भारत के इंजीनियर और एक्सपर्ट इन कंपनियों से बाहर आ जाए तो इन कंपनियों की स्थिति गड़बड़ा सकती है। यानी भारतीय इंजीनियर ही इन कंपनियों को चला रहे है।

 रूस से तेल खरीदने से खफा ट्रंप ने भारत पर यह दूसरा वार किया है। इससे पहले भारतीय उत्पादों पर पचास प्रतिशत टैरिफ लगाया था। ट्रंप को उम्मीद थी कि पचास प्रतिशत का टैरिफ लगाने से भारत झुक जाएगा, लेकिन टैरिफ वार के बाद भी भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा तो अब ट्रंप ने प्रोजेक्ट फायर वाल वाला हमला किया है। हो सकता है कि कुछ भारतीय इंजीनियरों का 88 लाख रुपए वाला शुल्क अमेरिका की कंपनियां जमा करवा दें, लेकिन अधिकांश इंजीनियरों का शुल्क अमेरिका की कंपनियां जमा नहीं करवा सकती है। ऐसे में भारतीय इंजीनियरों का अमेरिका में काम करना मुश्किल होगा। 

अब जब इंजीनियर स्वदेश लौटेंगे तो यह भारत सरकार की जिम्मेदारी होगी कि उन्हें अपने ही देश में उचित माहौल उपलब्ध करवाए। सब जानते हैं कि बुद्धिमता में भारत के युवा अमेरिका पर हावी है। चूंकि अमेरिका के इंजीनियरों के पास योग्यता का अभाव है, इसलिए अमेरिका में भारतीयों को नौकरियां मिल रही है। अब भारतीय इंजीनियरों का भी यह दायित्व है कि वह अपने ही देश में दक्षता का प्रदर्शन करें। इसके लिए सरकार को प्रोत्साहन देना चाहिए। मोदी सरकार को भी अब भारत में कार्यरत अमेरिकी कंपनियों पर शिकंजा कसना चाहिए। यानी अमेरिकी कंपनियों को जो सुविधाएं दे रखी है, उनमें कटौती करनी चाहिए।

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