✍️ लेखक : सी.ए. तेजेश सुतरिया
सनातन भारतीय संस्कृति में जल को केवल जीवन की आवश्यकता नहीं, बल्कि जीवन का आधार और चेतना का स्रोत माना गया है। नदियाँ यहाँ मात्र प्राकृतिक प्रवाह नहीं, बल्कि देवी स्वरूप हैं — जिनके माध्यम से मानव, प्रकृति और ईश्वर के बीच संबंध स्थापित होता है। इसी सांस्कृतिक चेतना की एक सरल किंतु अर्थपूर्ण लोक-परंपरा है यमुनाजी लोटी उत्सव, जो श्रद्धा, सरलता और सामूहिकता का प्रतीक है।
यमुनाजी : पौराणिक स्वरूप और महिमा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार यमुनाजी सूर्यदेव की पुत्री और यमदेव (धर्मराज) की बहन मानी जाती हैं। भागवत पुराण, स्कंद पुराण और पद्म पुराण में यमुना के महात्म्य का विस्तृत वर्णन मिलता है। मान्यता है कि यमुनाजी के जल में स्नान अथवा स्मरण मात्र से भी पापों का क्षय होता है और जीवन में शुद्धता आती है।
भगवान श्रीकृष्ण की बाल एवं किशोर लीलाएँ यमुना तट पर ही सम्पन्न हुईं — कालिया नाग दमन, रासलीला और ब्रज की अनेक दिव्य घटनाएँ यमुना को कृष्ण-भक्ति की जीवंत साक्षी बनाती हैं। इसी कारण वैष्णव परंपरा में यमुनाजी को विशेष पूजनीय स्थान प्राप्त है
*लोटी उत्सव क्या है* : ‘लोटी’ अर्थात लोटा या छोटा कलश। यमुनाजी लोटी उत्सव में यमुना के पवित्र जल को लोटी में भरकर विधिपूर्वक देवी यमुना को अर्पित किया जाता है। इस अवसर पर यमुनाजी की स्तुति, यमुनाष्टक का पाठ, भजन-कीर्तन, कथा और आरती की जाती है। यह उत्सव विशेष रूप से गुजरात और वैष्णव परंपरा से जुड़े समुदायों में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है
लोटी उत्सव की उत्पत्ति : शास्त्र और लोक का संगम
यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि ‘यमुनाजी लोटी उत्सव’ किसी एक शास्त्र में एक नाम से वर्णित औपचारिक पर्व नहीं है, बल्कि यह शास्त्र-प्रेरित लोक-परंपरा है।
15वीं–16वीं शताब्दी में वल्लभाचार्यजी द्वारा प्रवर्तित पुष्टिमार्ग और ब्रज-वैष्णव भक्ति के प्रभाव से यमुना-भक्ति गुजरात तक पहुँची। ब्रज से दूर बसे गृहस्थ भक्तों के लिए प्रत्यक्ष यमुना-पूजन संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने लोटी में यमुना जल भरकर गृह-आधारित पूजन की परंपरा अपनाई। धीरे-धीरे यह व्यक्तिगत साधना से निकलकर सामूहिक पाठ और उत्सव का रूप लेने लगी, जिसे आज यमुनाजी लोटी उत्सव के नाम से जाना जाता है।
यमुनाष्टक और उत्सव का संबंध
यमुनाष्टक की रचना श्री वल्लभाचार्यजी द्वारा मानी जाती है। इस स्तोत्र में यमुना के जल को पापहरण, भक्तिरस और कृष्ण-सान्निध्य का माध्यम बताया गया है। इसी कारण लोटी उत्सव में यमुनाष्टक का पाठ अनिवार्य रूप से किया जाता है।
जल और अन्य धर्म : एक साझा चेतना
यह उल्लेखनीय है कि जल से जुड़े उत्सव केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं हैं।
• ईसाई धर्म में बपतिस्मा,
• इस्लाम में वुज़ू और ज़मज़म जल,
• यहूदी परंपरा में मिक्वे स्नान,
• बौद्ध परंपरा में जल-आशीर्वाद —
इन सभी में जल को शुद्धि और नवजीवन का प्रतीक माना गया है। नाम अलग हैं, विधियाँ अलग हैं, पर भाव और उद्देश्य एक ही है।
आज के युग में लोटी उत्सव की प्रासंगिकता
आज जब नदियाँ प्रदूषण और उपेक्षा का शिकार हैं और जल संकट वैश्विक चुनौती बन चुका है, तब यमुनाजी लोटी उत्सव हमें यह स्मरण कराता है कि जल केवल संसाधन नहीं, बल्कि संरक्षण योग्य सांस्कृतिक धरोहर है।
यह उत्सव भक्ति के साथ-साथ पर्यावरण चेतना और सामाजिक उत्तरदायित्व का संदेश भी देता है।
जल — संस्कृति से संरक्षण तक
जल का महत्व किसी एक समाज, धर्म या परंपरा तक सीमित नहीं है। सभ्यताएँ अलग-अलग रही हैं, पर जल के प्रति श्रद्धा हर संस्कृति में समान रही है।
कहीं वही जल यमुना बनकर पूजित है, कहीं गंगा, कहीं ज़मज़म, कहीं जॉर्डन नदी।
नाम अलग हैं, मार्ग अलग हैं, पर उद्देश्य एक ही है — जीवन का संरक्षण और मानवता का कल्याण।
आज आवश्यकता है कि हम जल को केवल उपयोग की वस्तु नहीं, बल्कि आगामी पीढ़ियों की धरोहर मानें।
क्योंकि अंततः यह सत्य सार्वकालिक है —
“जल ही जीवन है।

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