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सांसद मैडम बोलीं कुत्ते की बोली भौं - भौं....Madam MP said, bark like a dog...


                         • रवि उपाध्याय 


सोमवार से संसद का शीतकालीन सत्र शुरु हो गया।बिहार विधानसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद बुलाया गए इस सत्र की भी उसी तरह हंगामेदार शुरुआत हुई जैसे पिछले ग्यारह सालों से संसद के हर सत्र की होती आ रही है। लगता है यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा जब तक विपक्ष सत्ता में नहीं आ जाता। इस सत्र की शुरुआत एक महिला सांसद, संसद में कुत्ते को लेकर आने से हुई। 



इस घटना में कुत्ते से ज्यादा चर्चा सांसद के कुत्ता प्रेम की हुई। बताया गया है कि वे जब संसद आ रहीं थीं तो उनकी नज़र सड़क पर से गुजर रहे डरे - सहमे एक कुत्ते के पिल्ले पर पड़ी। तब एक मां की तरह उनका वात्सल्य और ममता उस पिल्ले के प्रति उमड़ने लगी और उन्होंने उसे अपनी लक्जरी कार में बैठा लिया। यह घटना उनके कुत्तों के प्रति अनुराग और प्रेम को दर्शाती है। जब सांसद महोदया की गाड़ी संसद परिसर में प्रवेश हुई तो सुरक्षा कर्मियो ने उन्हें पिल्ले के साथ प्रवेश करते हुए टोका,तो उन्होंने ने सांसद को प्राप्त विशेषाधिकार की बात कही। संसद के साथ सुरक्षा कर्मियो की इस बहस को देख कर प्रेस- मीडिया के लोग सांसद और कुत्ते को देख उधर ही दौड़ पड़े। कैमरे चमक उठे, वीडियो बनने लगे। न्यूज़ चैनलों पर महिला सांसद एवं उस भाग्यशाली कुत्ते की तस्वीरें नुमाया होने लगीं।


सांसद का पिल्ले के प्रति अनुराग को देख कर इस मौके पर रसखान कवि का वह दोहा, याद आ गया जिसमें कवि कोए के भाग्य की सराहना करते हुए कहते हैं कि काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी । जिस तरह रसखान कवि ने कोए के भाग को सराहा वैसे ही 

पूरा देश उस कुत्ते के भाग को सराह रहा है, जिसे सांसद महोदया ने अपनी गोद में उठा कर कार में बैठाया। वरना सांसद किसी को भी मुंह लगाना तो दूर आम आदमी की तरफ़ तो देखतीं तक नहीं है। ये अब उस कुत्ते का भाग्य कहें या उसके पिछले जन्म का संबंधों का पुण्य की सांसद ने उसे न केवल गोदी में बैठाया बल्कि कार में भी लिफ्ट दी। अभी तक यह नहीं पता चला है कि कुत्ते का सेक्स क्या था ? वह मेल था या फीमेल और उसकी जाति क्या थी। क्योंकि हर किसी की जाति पूछने का फैशन जो हो गया है।


इतना ही नहीं अपुन तो सांसद महोदया के कुकुर ज्ञान से भी चित हो गए। जिस तरह नेता दो प्रकार के होते हैं एक बड़े बड़े वायदे करने वाले दूसरे वायदों को पूरा करने वाले। उसी तरह सांसद ने ज्ञान दिया कि कुत्ते दो प्रकार के होते हैं। एक काटने वाले दूसरे चाटने वाले। सांसद जी ने बताया कि जिस कुत्ते को वे संसद दिखाने या घुमाने लाईं थीं वह काटने वाला कुत्ता नहीं था। जाहिर है कि फ़िर तो वो चाटने वाला रहा होगा। वैसे भी नेता अपने साथ चाटने वाले ही रखना ज्यादा प्रिफर्ड करते हैं। काटने वालों को तो नेता पहले ही नो - दो - ग्यारह कर देते हैं। काटने वाले तो उनके साथ वैसे भी नहीं होते हैं।


हो सकता है कि उस भाग्यशाली पपी ने उसके प्रति ममता प्रदर्शित करने वाली सांसद महोदया को अपने उस गुण का कार में ही परिचय करा दिया हो। अब जो भी हो वैसे भी महिलाओं को इस प्राणी के प्रति अनुराग तो होता ही है। हमने कई मेम साहिबाओं को डॉग्स के साथ लक्जरी कारों में देखा है। कई मेमों को अंग्रेजी पप्पीज़ के साथ गोद में उठा कर चूमा चाटी करते हुए भी देखा है। हो सकता है कि सांसद मैडम को भी इस देशी पिल्ले पर प्यार उमड़ आया हो।


सांसद महोदया का देशी कुत्ते के साथ यह अनुराग अनूठा तो था ही साथ ही वह सियासी भी था। सियासी इस लिहाज़ से की उनके इस कदम से उन्हें वोटों का फायदा हो सकता है क्योंकि वोट देने का अधिकार तो केवल देशी लोगों को ही हासिल है। वैसे भी जो विदेशी घुसपैठिए हमारे देश में घुस आए हैं वे तो एस आई आर के चलते सिर पर पैर रख कर भाग ही रहें हैं। हो सकता है कि मोहतरमा के कुत्ता प्रेम से उनके वोट बैंक में और कुछ इज़ाफ़ा हो जाए। 


उन्होंने एक बात का खुलासा कर दिया कि जो वे अपने साथ कुत्ता लेकर आईं थी वह काटने वाला नहीं है। उन्होंने ने बताया कि काटने वाले तो संसद में ही बैठे हैं। काटने और छांटने का काम तो सियासत में होता ही रहता है उनका इशारा किस तरफ था लेफ्ट साइड या राइट साइड । यह तो कोई नहीं बता सकता क्योंकि सदन में किसने किसको काटा है वही बता सकता है जिसे काटा गया हो या जिसने काटा हो। बाहरी लोग क्या बता सकते हैं कि सदन में कौन कटखना है और कौन चाट कर ही संतुष्ट हो जाता हैं। 


हम तो इतना जानते हैं कि जिसे काटा जाता है वह रेबीज़ के असर से पागल हो कर कुत्ते के ही तरह ऊटपटांग हरकतें करने लगता है। लेकिन यह पहली बार देखा गया कि कुत्ते को छूने का असर इतनी तेजी से होता हो। कुत्ते को संसद परिसर में ले कर आने के दूसरे जब मीडिया ने उनसे उनके खिलाफ संसद में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने पर उनकी टिप्पणी चाही तो वह भौं- भौं कर कुत्ते की आवाज़ निकाल कर संसद के अंदर चलीं गईं। रही बात हमारी तो भैया हम को तो किसी कुत्ते ने थोड़े ही काटा है जो हम नेताओं से नेह लड़ाएं। हम तो नेताओं की अग़ाड़ी हो या पिछाड़ी दोनों से ही दूर रहते हैं । कौन जाने कौन कब दुलत्ती मार दे और कौन कब हबक ले। ऐसे में चौदह इंजेक्शन कौन लगवाए।


( लेखक व्यंग्यकार एवं एक राजनैतिक समीक्षक भी हैं।)

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