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दण्डक्रम परायण का आधुनिक विज्ञान के नजरिए से विश्लेषण Analysis of Dandakarma Parayan from the perspective of modern science

 विज्ञान और दण्डक्रम 


- गिरीश जोशी

वेद मंत्र 

पूज्य स्वामी युक्तेश्वर गिरी जी ने अपनी पुस्तक साइंस ऑफ रिलीजन में लिखते है “सृष्टि का मूल कंपन (Vibration) है”और जब यह कंपन सुना जाता है तो इसे नाद कहा जाता है। सृष्टि रचना में सर्वप्रथम ईश्वर द्वारा सूक्ष्म कम्पन-इच्छा (स्पंदन)उत्पन्न होती है। इससे आकाश तत्त्व उत्पन्न होता है। आकाश का गुण शब्द है। 


ब्रह्मांड में सभी तत्त्वों के अपने-अपने स्पन्दन (vibratory patterns) हैं। सूर्य, तारे, ग्रह, पंचमहाभूत, मानव शरीर एवं चक्र सब विशिष्ट आवृत्तियों पर स्पंदित हैं। ऋषि इन स्पन्दनों को “श्रुति” रूप में सुनते थे। वे ध्यान से मिली समाधि अवस्था में ब्रह्मांडीय कम्पन को आध्यात्मिक कान (divine inner hearing) से सुनते थे। यही सुने गए मंत्र “श्रुति” तथा आगे वेद मंत्र कहलाए। वेद मंत्र विशिष्ट ध्वनि, विशिष्ट आवृत्ति, विशिष्ट स्पन्दन का कुल योग है। स्वामीजी के अनुसार वेद मंत्र ब्रह्मांडीय स्पन्दनों की ध्वन्यात्मक संरचना हैं। आगे वे कहते है वेद-मंत्र ब्रह्मांडीय कंपन का ‘मानवीय शब्द-रूप’ है। 


महर्षि महेश योगी के अनुसार वेद मंत्र पूर्णतः वैज्ञानिक और प्राकृतिक नियमों (Laws of Nature) का शुद्ध स्वरूप है । वे कहते हैं कि जैसे गुरुत्वाकर्षण प्रकृति का नियम है, वैसे ही वेद के मंत्र भी प्रकृति की आंतरिक संरचना का वर्णन हैं।


 वेद प्रकृति की परिपूर्ण कार्यप्रणाली का सूक्ष्म गणित है। वे वेद मंत्रों को science of natural law कहते थे। वे अक्सर कहते थे कि वेद प्रकृति के नियमों का पूर्ण कोड (complete code) है।


वेद मंत्रों का प्रभाव


 प्रत्येक वेद मंत्र एक विशिष्ट कम्पन (vibration) उत्पन्न करता है।ये कम्पन मानव शरीर, मन और पूरे परिवेश पर प्रभाव डालते हैं।

इन मंत्रों का सही मंत्र-उच्चारण, प्राण, मन, नाड़ी, चक्र को विशेष कम्पन-मिलन (resonance) में लाता है।


ॐ ब्रह्मांड की मूल आवृत्ति (Cosmic Frequency) है।

सभी वेद मंत्र इसी मूल-आवृत्ति से जुड़े उप-तरंग (sub-harmonics) हैं।मानव शरीर एक “ब्रह्मांडीय रिसीवर” है।शरीर में 72,000 नाड़ियाँ, 7 चक्र है।

सब ध्वनि-आधारित कंपन-संवेदी प्रणाली की तरह काम करते हैं।

इसलिए मंत्र और नाद शरीर को नाड़ी-स्तर पर प्रभावित करते हैं ।

जैसे कोई ट्यूनिंग फोर्क एक विशेष आवृत्ति पर ट्यून हो जाता है। 


 वैदिक मंत्रों की मात्राएँ, स्वर, दीर्घ-ह्रस्व, विराम, लय, एक fixed vibratory pattern हैं । मंत्र का प्रभाव कंपन द्वारा होता है, शब्दार्थ से नहीं। वे कहते हैं कि “मंत्र का फल अर्थ से नहीं, स्पन्दन से उत्पन्न होता है।” मंत्र ऊर्जा-केन्द्र (चक्र) को सक्रिय करते हैं 


दण्ड पारायण


“दण्ड” का अर्थ है खंड , अनुच्छेद या स्टेप, किसी मंत्र, सूक्त, या स्तोत्र को निश्चित छोटे-छोटे खंडों (दण्डों) में विभाजित करके पढ़ने को दण्डक्रम कहा जाता है। मंत्र के हर शब्द / वाक्यांश को सम्पूर्ण स्वर-वर्ण, मात्रा, उच्चारण के साथ व्यवस्थित क्रम में पढ़ा जाता है। दण्डक्रम में एक मंत्र या श्लोक को कई विन्यासों/खंडों में पढ़ा जाता है।ध्वनि-तरंगें हर विन्यास में अलग पैटर्न बनाती हैं।


उदाहरण के लिए

मंत्र A B C D E F है, तो दण्डक्रम में इसे इस प्रकार पढ़ा जाएगा:

दण्ड 1: A, दण्ड 2: A B, दण्ड 3: B C, दण्ड 4: C D, दण्ड 5: D E

, दण्ड 6: E F, दण्ड 7: F

यानी हर पाठ में कंपन का आरम्भ, मध्य, और समाप्ति बदल जाती है, जिससे मंत्र के पूरा स्पंदन-क्षेत्र (vibration field) सक्रिय होता है। यह वैदिक ध्वनि-विज्ञान का अत्यंत वैज्ञानिक पक्ष है।प्राचीन वैदिक ध्वनि-विज्ञान को आधुनिक विज्ञान की शब्दावली जैसे एकोस्टिक्स, न्यूरोसाइंस, और रिज़ोनेंस (अनुनाद) के सिद्धांतों से जोड़कर समझा जा सकता है। दण्डक्रम संरचित(Structured) ध्वनि-कंपन तकनीक है। 


प्राचीन ग्रंथों के अनुसार नाद का अर्थ सिर्फ “सुनाई देने वाली ध्वनि” नहीं है होती है। वह तो sound, energy, vibration, resonance का संयुक्त रूप है।


आधुनिक विज्ञान की परिभाषिक शब्दावली के अनुसार नाद यानी निर्दिष्ट आवृत्ति (frequency),स्वर अर्थात ध्वनि का आयाम (amplitude), उच्चारण का मतलब तरंग आकृति (waveform) और मात्रा का अर्थ समय-लय (time domain) है।दण्डक्रम में इन सबका संयोजन अत्यंत सटीक रूप से किया जाता है।

पतंजलि योग सूत्र के अनुसार मूलाधार से सहस्त्रार तक सात चक्रों में कुंडलनी शक्ति का प्रवास निर्बाध तरीके से हो इसके लिए इन चक्रों का शुद्धिकरण आवश्यक होता है। चक्रों के शुद्धिकरण के लिए अनेक प्रविधियों की खोज हमारे ऋषि मुनियों ने की थी। उसी का एक प्रकार दण्डक्रम है। इसमें वेद मंत्रो के स्वरों की पुनरावृत्ति से आज्ञा चक्र कंपन-दृष्टि (inner clarity), अनाहत –भाव और करुणा का विस्तार, विशुद्धि – वाणी/ध्वनि का शुद्धिकरण,मूलाधार – स्थिरता, मणिपुर से ऊर्जा संतुलित होते हैं।

दण्डक्रम पारायण का उद्देश्य 

मंत्र के कंपन और स्वर-शुद्धि को स्थापित करना है। दण्डक्रम से स्वर, उच्चारण, मात्रा, नाद, अनुप्रास सब पूर्ण रूप से शुद्ध होते हैं। मंत्र-शुद्धि, मन-प्राण की स्थिरता,आध्यात्मिक उन्नति, ध्वनि-ऊर्जा का अधिकतम लाभ प्राप्त होता है।


एकाग्रता में वृद्धि

दण्डक्रम में एकाग्रता बहुत अधिक लगती है। इससे मन स्थिर होता है, प्राण (life-force) संतुलित होता है,चेतना परिष्कृत होती है।


स्मरण-शक्ति का परिष्कार होता है क्योंकि एक ही मंत्र को अलग-अलग विन्यासों में पढ़ना होता है, इससे स्मरण-शक्ति (memory) बढ़ती है, भाषिक परिशुद्धि आती है,पाठक की क्षमता बढ़ जाती है। यह प्राचीन गुरुकुलों में अनिवार्य विद्या थी।

दंडक्रम के प्रकार 

दण्डक्रम पारायण कई स्थानों पर किया जाता है जैसे रुद्रम दण्डक्रम (शिवोपासना में),चमक दण्डक्रम, वेदिक सूक्त दण्डक्रम,श्रीसूक्त दण्डक्रम, नारायणसूक्त दण्डक्रम

महानारायणोपनिषद् पारायण आदि।

दण्डक्रम वैज्ञानिक इसलिए है क्योंकि इसमें मंत्र की हर ध्वनि को ‘रोटेशनल कम्पन’ मिलता है।पहली बार मंत्र शुरुआत से कंपन भेजता है,फिर मध्य से,फिर अंत से,फिर आधार से ऊर्ध्वगामी यानी ऊपर ,फिर ऊर्ध्व से आधारगामी यानी नीचे। इससे एक ही मंत्र की वाइब्रेशन की ऊर्जा अनेक कोणों से शरीर में प्रवेश करती है।इसे भारतीय नाद-विज्ञान में “बहुदिशात्मक कंपन (multi-directional resonance)” कहते हैं।

दण्डक्रम, नाड़ियों में ‘Standing Waves’ उत्पन्न करता है।ध्वनि के बार-बार दोहराव से शरीर की नाड़ियों और चक्रों में Standing Wave Patterns

(स्थिर तरंगें), Constructive Interference(ध्वनियों का सहयोग), Resonance Peaks(उच्चतम अनुनाद) बनते हैं।इससे नाड़ियाँ खुलती हैं, प्राण का प्रवाह संतुलित होता है, चित्त स्थिर होता है।

दण्डक्रम की संरचना ऐसी है कि

मस्तिष्क की तरंगें (brain waves) मंत्र के पैटर्न के साथ सिंक्रोनाइज़ होने लगती हैं।पहले बीटा →अल्फ़ा, 

फिर अल्फ़ा →थीटा,गहरे अभ्यास में थीटा→ गामा में परिवर्तन होता है। यह वही अवस्था है जो ध्यान के उच्च स्तर एवं समाधि की दहलीज मानी जाती है।

 ईश्वर का प्रथम ‘स्पन्दन’

परमहंस योगानंद जी लिखते हैं कि जब निराकार ईश्वर इच्छा करता है कि “मैं अनेक बनूँ” (“एकोऽहं बहुस्याम") तभी उसमें एक सूक्ष्म आत्मिक कंपित स्पन्दन उत्पन्न होता है। यह स्पन्दन ही प्रकृति (Cosmic Nature), प्राण (Cosmic Energy), सृष्टि के तत्त्व का मूल बनता है।समस्त ब्रह्मांड इसी स्पन्दन से बना है।


वे कहते हैं कि परमाणुओं का नृत्य, तारों का जन्म, मन की गति, कर्म का प्रवाह, सब उसी एक कॉस्मिक स्पन्दन के विविध रूप हैं।

स्पन्दन का अंत ईश्वरानुभूति

जब साधक अपने मन, प्राण, इन्द्रियों को योग के द्वारा स्थिर कर लेता है, तो वह स्पन्दन के क्षय का अनुभव करता है। स्पन्दन मिटते ही साधक, निराकार, चिदानन्द ब्रह्म को अनुभव करता है जिसे योगानंद जी “God beyond creation vibration” कहते हैं।

योगानंद जी के अनुसार “जहाँ नाद है वहाँ ईश्वर-शक्ति है और जहाँ स्पन्दन का अंत है वहाँ ईश्वर स्वयं है।”

इसलिए दण्डक्रम पारायण भी वेद मंत्रों को विशिष्ट क्रम में पढ़ने,अपने सप्त चक्र को शुद्ध करने, ईश्वर को जानने और उसी के साथ एकाकार होने की अब तक खोजी गई पद्धतियों में से एक महत्त्वपूर्ण पद्धति है। जिसे देवव्रत महेश रेखे ने अपने गुरु के मार्गदर्शन में अपनी कड़ी लगन और कठिन परिश्रम से 200 वर्षों के बाद पुनः इस विश्व को स्मरण करवाया है।


- गिरीश जोशी
संस्कृति अध्येता एवं लेखक
9425062332
girish.joshi0909@gmail.com

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