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भारत का स्ट्राइक मोड: ब्रह्मोस ने जो कहा, दुनिया ने सुन लियाIndia's strike mode: What BrahMos said, the world heard

प्रो. आरके जैन “अरिजीत

[ब्रह्मोस कॉम्बैट लॉन्च: शक्ति नहीं, भविष्य की परिभाषा]

बंगाल की खाड़ी की उस सुबह में एक अनोखी खामोशी पसरी थी, मानो प्रकृति किसी अदृश्य दैत्य-शक्ति के उद्भव से पहले ठहर गई हो। और फिर अचानक एक दहकती गर्जना ने आसमान को वैसे चीर डाला, मानो किसी अदृश्य महाशक्ति ने अपने अटल संकल्प को सीधे नभ की देह पर तराश दिया हो। यह कोई सामान्य मिसाइल परीक्षण नहीं था; यह भारत का 21वीं सदी की सामरिक राजनीति में अडिग, निर्भीक ऐलान था—भारत अब परिस्थितियों का शिकार नहीं, बल्कि परिस्थितियों की दिशा तय करने वाली शक्ति है।


ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल का यह कॉम्बैट लॉन्च केवल तकनीक का प्रदर्शन नहीं, बल्कि भारत की सामरिक चेतना का सजीव, जलता हुआ प्रमाण था। इसने शत्रुओं को साफ चेताया कि भारत की सीमा-सुरक्षा को चुनौती देना अब किसी भी कीमत पर सुरक्षित दांव नहीं। साथ ही, इसने मित्र राष्ट्रों को आश्वस्त किया कि हिंद महासागर का सामरिक संतुलन अब निर्णायक रूप से भारत की दृढ़ पकड़ में सुरक्षित है। यह लॉन्च केवल शक्ति का इज़हार नहीं, शक्ति की भाषा को नए सिरे से लिख देने वाला क्षण था।

1 दिसंबर 2025 को भारतीय सेना की साउदर्न कमांड की ब्रह्मोस यूनिट ने एंडमान और निकोबार कमांड के सहयोग से जो परीक्षण किया, वह मात्र तकनीकी सफलता नहीं था—यह रणनीतिक दूरदर्शिता, मनोवैज्ञानिक बढ़त और आत्मनिर्भर रक्षा क्षमता का एक ऐसा संगम था जिसे अनदेखा करना किसी भी राष्ट्र के लिए असंभव है। ब्रह्मोस ने 2.8 मैक की दहकती रफ्तार से आकाश को चीरते हुए 290 किलोमीटर दूर स्थित लक्ष्य को इतनी नपे-तुले प्रहार-निपुणता से खत्म किया कि मानो लक्ष्य अस्तित्व में था ही नहीं। इसी एक पल ने दुनिया को साफ़ कर दिया कि भारत की स्ट्राइक क्षमता अब केवल सक्षम नहीं—बहुआयामी, परिपक्व, आक्रामक और हर क्षण युद्ध-सिद्ध है।

जो कभी रूस के साथ 49:51 का संयुक्त प्रयास था, उसी मिसाइल का आज 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा—मुख्य सेंसर, सीकर, बूस्टर और कई महत्वपूर्ण सब-सिस्टम—पूरी तरह भारतीय हाथों की देन है, और स्वदेशी घटकों का हिस्सा तेज़ी से 85 प्रतिशत के स्तर की ओर बढ़ रहा है। यह मिसाइल सिर्फ़ तकनीक का ढांचा नहीं; यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ की वह प्रगति है जो ज़मीन की सीमाओं से आगे बढ़कर सागरों, आकाश और आने वाले अंतरिक्षीय आयामों में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है। ब्रह्मोस का यह तीव्र भारतीयकरण महज़ एक उपलब्धि नहीं—यह भारत के उभरते रक्षा-उद्योग की परिपक्वता का ठोस, अविचलित और वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य प्रमाण है।

इस परीक्षण का सबसे प्रबल संदेश उसकी टाइमिंग में छिपा था। जब चीन दक्षिण चीन सागर से लेकर हिंद महासागर तक अपनी नौसैनिक सरगर्मियाँ तेज़ कर शक्ति-प्रदर्शन में जुटा है, जब पाकिस्तान सीमित हथियारों के सहारे क्षेत्रीय अस्थिरता को हवा देने की कोशिश में लगा है—ठीक उसी दौर में भारत का यह परीक्षण साफ घोषणा बनकर उभरा कि हिंद महासागर अब भारत की सामरिक सीमारेखा है, और इस क्षेत्र की स्थिरता पर अंतिम शब्द भारत का ही होगा। ब्रह्मोस का यह प्रहार किसी एक लक्ष्य का विनाश नहीं था; यह उस भ्रम का विध्वंस था जो भारत की शांति-प्रियता को भूलवश कमजोरी समझने की भूल करता रहा है।

लेफ्टिनेंट जनरल धीरज सेठ की टिप्पणी बिल्कुल सटीक थी—यह मात्र तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत की बढ़ती शक्ति, आत्मनिर्भरता और निर्णायक तैयारी का ठोस प्रमाण है। ब्रह्मोस की वास्तविक ताकत उसकी गति से कहीं आगे है; उसकी असली शक्ति उस भय में है जो वह दुश्मन की योजना में पैदा करती है। कम ऊंचाई पर तीव्र गति से उड़ान भरने वाली यह मिसाइल न तो आसानी से रडार में आती है और न ही रोकी जा सकती है, इसकी गति से बचने का मतलब पहले से हार स्वीकार करना है। जब ऐसी घातक क्षमता वाली मिसाइल इस गति से मेक-इन-इंडिया रूप ले रही हो, तो उसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव दोगुना नहीं, कई गुना बढ़ जाता है।

एंडमान और निकोबार आज केवल एक द्वीप-समूह नहीं, भारत की सामरिक ढाल का वह धारदार किनारा बन चुका है जिसे दुनिया अब “एयरक्राफ्ट कैरियर किलर ज़ोन” के रूप में पहचानने लगी है। यहां से तैनात बढ़ी हुई रेंज वाली ब्रह्मोस (600+ किमी) मलक्का स्ट्रेट तक हर हलचल को अपनी निगरानी और नियंत्रण की सीमा में समेट लेती है—यानी हिंद-प्रशांत की धड़कन अब भारत की मुट्ठी में धड़कती है। इसी कारण इस परीक्षण के बाद क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन की दिशा पर विश्व की निगाहें एक बार फिर भारत पर आ टिकना स्वाभाविक था—क्योंकि संदेश बिल्कुल वहीं पहुँचा, जहाँ उसे पहुँचना चाहिए था।

यह उपलब्धि केवल सेना की दक्षता का परिणाम नहीं, बल्कि डीआरडीओ, एचएएल, भारतीय निजी क्षेत्र और हजारों युवा वैज्ञानिकों की अनगिनत रातों की तपस्या का सार है। उन्होंने ब्रह्मोस को सिर्फ़ अधिक स्वदेशी नहीं बनाया, बल्कि उसे दुनिया की सबसे तेज़, सबसे भरोसेमंद और सबसे सटीक सुपरसोनिक स्ट्राइक मिसाइलों के शिखर पर स्थापित कर दिया। और अब भारत की नजरें अगले आयाम पर हैं—हाइपरसोनिक ब्रह्मोस। 2028 तक 7–8 मैक की रफ्तार और 1000+ किमी रेंज वाली इस मिसाइल का परीक्षण दुनिया को एक नई वास्तविकता से रूबरू करा देगा: भारत सिर्फ़ भविष्य की जंगों के लिए तैयार नहीं, बल्कि भविष्य की युद्ध-परिभाषा को पुनर्लेखित करने की राह पर अग्रसर है।

जब कोई यह पूछे कि भारत ने पिछले दशक में रक्षा क्षेत्र में कैसी तरक्की की है, तो लंबे जवाबों की जरूरत ही नहीं। बस ब्रह्मोस की वह गूंज याद दिला दीजिए, जिसने उस सुबह समंदर और आसमान दोनों को हिला दिया था। कुछ संदेश शब्दों से नहीं, क्षमता के प्रदर्शन से समझ आते हैं। और ब्रह्मोस ने फिर वही भाषा बोली—तेज़ी, भरोसे, सटीकता और दृढ़ इच्छाशक्ति की भाषा। ऐसी भाषा, जिसे दुनिया सम्मान से सुनती है और जिसे देखकर विरोधी दो कदम पीछे हट जाते हैं।

 

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