Top News

देश चलता नहीं, दोहराता हैThe country doesn't work, it repeats itself.

 अजय कुमार बियानी  यंत्रिक इंजीनियर

 SIR = स–सिर्फ़, इ–भारत, र–रहेगा* *की अनोखी परंपरा

सिर्फ़ भारत रहेगा (SIR) — और उसकी विशेष गहन पुनरावृत्ति भी

हमारे देश में तीन अक्षर इतने ताक़तवर हैं कि अगर इन्हें संसद में पेश कर दिया जाए तो आधे नेता बेहोश हो जाएँ—स, इ और र।


ये तीन अक्षर मिलकर कहते हैं—स—सिर्फ़, इ—भारत, र—रहेगा।

और मज़े की बात यह कि ये सिर्फ़ नारा नहीं, हमारा व्यवहार है, हमारी बीमारी है, और हमारी राष्ट्रीय आदत है, जिसकी विशेष गहन पुनरावृत्ति (SIR) हम रोज़ करते हैं।

कहने को हम विकासशील देश हैं, मगर विकास कहाँ और किस गली में घूम रहा है, कोई नहीं जानता।

कुछ लोग मानते हैं कि विकास किसी मंत्री के भाषण में रहता है, कुछ कहते हैं फाइलों में बंद है।

लेकिन आम आदमी जानता है कि विकास वही है जो हर चुनाव के बाद “अगली बार” के वादे के नीचे कुचला मिलता है।

और यही हमारी SIR—विशेष गहन पुनरावृत्ति है—गलती दोहराओ, वादा दोहराओ, समस्या दोहराओ।

शुरुआत आम नागरिक से कर लेते हैं।

हमारे यहाँ कूड़ा डालना हो तो लोग पाँच कदम दूर कूड़ेदान तक नहीं जाते।

जहाँ खड़े हों, वहीं डाल देते हैं।

और जब पूछा जाए—“भाई, यह क्या?”

तो उत्तर आता है—“मैं रोज़ यही करता हूँ, आदत है, विशेष गहन पुनरावृत्ति से हाथ चलने लगते हैं।”

यह सुनकर कूड़ेदान भी शर्म से सिर झुका लेता है—“मैं तो सजावट की वस्तु बन गया हूँ।”

दफ़्तर की तो बात ही मत पूछिए।

किसी बाबू को फ़ाइल थमाएँ तो वह पहले ऐसे देखेगा जैसे फ़ाइल उसके निजी दुश्मन की हो।

फिर कहेगा—“काम हो जाएगा, पर प्रक्रिया है। पहले विभाग–एक जाएगा, फिर विभाग–दो जाएगा, फिर दफ़्तर तीन में पहुंचेगा। आखिर में इसे मेरे पास आना है।”

आप पूछें—“इतना घूमेगी क्यों?”

उत्तर मिलेगा—“विशेष गहन पुनरावृत्ति, तभी तो सिस्टम चलता है।”

यानी यहाँ काम नहीं होता, काम की पुनरावृत्ति होती है।

दफ़्तर का मूलमंत्र—स—सबको परेशान करो, इ—इतना घुमाओ कि थक जाए, र—रुको, कभी न कभी हो ही जाएगा।

अब आते हैं राजनीति पर—व्यंग्य की सबसे उपजाऊ ज़मीन।

यहाँ SIR पूरी ख़ुशहाली से फलता–फूलता है।

नेता वादा करते हैं—“हर घर पानी।”

जनता पूछती है—“कब?”

नेता मुस्कराते हैं—“थोड़ी विशेष गहन पुनरावृत्ति बाकी है।”

जनता समझ जाती है—“मतलब पाँच साल और इंतज़ार।”

पुल छोड़ देने का वादा, सड़क बनवाने का दावा, अस्पताल खोलने की घोषणा—सब कुछ अगले चुनाव की पुनरावृत्ति के लिए सुरक्षित।

देश में सबसे लंबी पुनरावृत्ति चुनाव से पहले के वादों की ही होती है।

देश में शिक्षा भी SIR से संचालित है।

बच्चा सालभर पढ़ाई से दूर रहता है, जैसे किताबें उससे बदला लेकर रहें।

और परीक्षा से एक रात पहले अचानक देशभक्त बनकर कहता है—

“माँ, मुझे विशेष गहन पुनरावृत्ति करनी है। पूरा साल का पाठ आज पढ़ूंगा।”

अब एक रात में देश नहीं बदलता, बच्चा क्या बदलेगा?

सुबह वही हालत—

सवाल किताब में, जवाब सपनों में, दिमाग़ कागज़ पर खाली।

और बच्चा proudly कहे—

“माँ, मैंने कोशिश की। SIR की प्रक्रिया पूरी की।”

ट्रैफ़िक में तो SIR को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना चाहिए।

लाल बत्ती देखते ही कुछ लोग सोचते हैं—“यह मेरे लिए नहीं है।”

वे ऐसे निकलते हैं जैसे देश का भविष्य उनके एक्सीलेटर पर रखा हो।

अगर पुलिस रोक ले तो चालक कहता है—

“भैयाजी, रोज़ यही करता हूँ। विशेष पुनरावृत्ति है। आदत बिगड़ जाए तो दिक़्कत होगी।”

सड़क टूट रही हो तो नागरिक कहता है—“कोई बात नहीं, हर साल टूटती है। यह भी पुनरावृत्ति है।”

भारत में सड़कें ठीक होती हैं सिर्फ इसलिए ताकि वे दोबारा टूट सकें।

यह भी राष्ट्रीय SIR का हिस्सा है।

सार्वजनिक कामों का भी यही हाल है।

पार्क में झूला टूटे तो बच्चे रोते हैं, बजट तैयार होता है, नेता फोटो खिंचवाते हैं, और अगले साल वही झूला फिर टूटता है।

यह पुनरावृत्ति नहीं, विशेष गहन पुनरावृत्ति है—यानी समस्या को हर साल इतना दोहराओ कि वह भी शर्म से बोले—“भाई, अब छोड़ दो!”

घरों में पति–पत्नी की बहसें भी इसी प्रक्रिया से चलती हैं।

पत्नी कहे—“आपको कुछ याद क्यों नहीं रहता?”

पति तुरन्त उत्तर दे—

“मैं रोज़ याद रखने का प्रयास करता हूँ। पर याद न रहना भी एक पुनरावृत्ति है। SIR है, छोड़ दो।”

पत्नी फिर वही संवाद दोहराती है, पति वही बहाना दोहराता है, और यह पुनरावृत्ति उनके विवाह का स्तंभ बन जाती है।

यानी भारत में विवाद भी परंपरा के साथ रोज़ दोहराए जाते हैं।

अब आते हैं मुख्य वाक्य पर—

स—सिर्फ़,

इ—भारत,

र—रहेगा।

हाँ, यह देश चाहे जितनी समस्याओं से गुज़रे, चाहे जितना परेशान हो, चाहे दस बार ठोकर खाए—यह खड़ा रहता है।

यह वही देश है जहाँ बिजली कटे तो लोग मोमबत्ती जलाकर हँसते हैं, पानी रुके तो बाल्टी भरकर पड़ोसी को बुला लेते हैं, और महँगाई बढ़े तो भी सब्ज़ी वाला कहता है—“देर से आए हो, भाव और बढ़ गए।”

फिर भी लोग मुस्कराते हैं—“चलो, जीवन की गहन पुनरावृत्ति जारी है।”

भारत की ख़ास बात यही है कि यहाँ समस्या पर हँसा जाता है, शिकायत पर चुटकुले बनते हैं, और संकट में भी सबसे पहले चाय बनती है।

यही कारण है कि यह देश चलता रहता है—दौड़ता नहीं, ठोकर खाकर हँसते हुए आगे बढ़ता है।

और अंत में निष्कर्ष सिर्फ़ यही—

स—संकट आएँ या नेताओं की पुनरावृत्ति,

इ—इन सबके बीच भी,

र—रहेगा सिर्फ़ भारत।

और आपकी जानकारी के लिए—

इस प्रक्रिया का आधिकारिक नाम है—

विशेष

गहन

पुनरावृत्ति (SIR)

—जिसकी वजह से हमारा देश अजीब भी है, महान भी है, और अनोखा तो इतना है कि दुनिया पूछती है—

“यह चलता कैसे है?”

और भारत मुस्कराकर कहता है—

“हमारे SIR के भरोसे।” no

Post a Comment

Previous Post Next Post