डायबिटीज लाइफस्टाइल से जुड़ी एक ऐसी बीमारी है जो एक बार हो जाने पर जीवनभर साथ रहती है। इसे ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन कंट्रोल कर सकते हैं। हालांकि, कई बार मरीज दवा लेने, डॉक्टर के पास जाने और कुछ सावधानियां बरतने के बावजूद भी अपने ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल नहीं कर पाते।
अगर आपके साथ भी ऐसा हो रहा है, तो इसके पीछे कुछ छोटे-छोटे कारण छिपे हो सकते हैं। आइए जानें किन वजहों से कई लोगों का डायबिटीज कंट्रोल (Why Diabetes is not Getting Controlled) नहीं हो पाता।
अनियमित दिनचर्या और खानपान
डायबिटीज कंट्रोल के लिए संतुलित खान-पान और नियमित समय पर खाना खाना बेहद जरूरी है। अक्सर लोग दवा तो लेते हैं, लेकिन खानपान में लापरवाही बरतते हैं। ज्यादा कार्बोहाइड्रेट वाले फूड्स, स्वीट ड्रिंक्स , फास्ट फूड और अनियमित खाने के समय से ब्लड शुगर अनियंत्रित हो जाता है।
फिजिकल एक्टिविटी की कमी
नियमित एक्सरसाइज या शारीरिक गतिविधि इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ाती है। आजकल की सेडेंटरी लाइफस्टाइल, लंबे समय तक बैठे रहना और शारीरिक मेहनत न करना डायबिटीज कंट्रोल न होने का मुख्य कारण है।
दवाओं में गैप या गलत डोज
कई बार मरीज डॉक्टर की बताई गई दवा का कोर्स पूरा नहीं करते या खुद से दवा की मात्रा कम-ज्यादा कर देते हैं। कुछ लोग ब्लड शुगर नॉर्मल आते ही दवा लेना बंद कर देते हैं, जो खतरनाक साबित हो सकता है।
तनाव और मानसिक स्वास्थ्य
तनाव शुगर लेवल बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। तनाव के दौरान कोर्टिसोल जैसे हार्मोन्स रिलीज होते हैं, जो लिवर से ग्लूकोज छोड़ने का संकेत देते हैं। यही कारण है कि एंग्जायटी, डिप्रेशन या ज्यादा स्ट्रेस से जूझ रहे लोगों में डायबिटीज कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है।
पूरी नींद न लेना
नींद की कमी शरीर के मेटाबॉलिज्म पर बुरा असर डालती है। इससे इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ता है और भूख बढ़ाने वाले हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं। रात में 6-8 घंटे की गहरी नींद डायबिटीज मैनेजमेंट के लिए जरूरी है।
अन्य स्वास्थ्य समस्याएं
कई बार थायराइड, मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, किडनी की समस्या या लिवर डिजीज डायबिटीज कंट्रोल को प्रभावित करते हैं। इन बीमारियों का ठीक से इलाज न होना भी शुगर लेवल बढ़ा सकता है।
शराब और धूम्रपान
स्मोकिंग और शराब इंसुलिन रेजिस्टेंस को बढ़ाता है। इससे दवाओं का असर कम हो जाता है और डायबिटीज नियंत्रण मुश्किल हो जाता है।
शुगर मॉनिटरिंग में लापरवाही
केवल लक्षणों के आधार पर शुगर का अंदाजा लगाना ठीक नहीं है। नियमित ब्लड शुगर चेक करके ही पता चल सकता है कि दवा और डाइट का क्या असर हो रहा है। कई लोग महीनों तक शुगर चेक नहीं करवाते, जिससे समय पर इलाज में बदलाव नहीं हो पाता।
जेनेटिक और हार्मोनल कारण
कुछ लोगों में जेनेटिक रूप से इंसुलिन रेजिस्टेंस होता है। महिलाओं में पीसीओएस, मेनोपॉज या प्रेग्नेंसी के दौरान हार्मोनल बदलाव भी शुगर को प्रभावित करते हैं।

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