मऊगंज। मध्यप्रदेश के मऊगंज में तीन दिन तक चली जीएसटी की छापेमारी अब विवादों में घिर गई है। सराफा कारोबारी मोहित टंच की फर्मों पर कार्रवाई तो हुई, लेकिन जिस तरह से पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया, उसने कर विभाग की कार्यप्रणाली को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सबसे चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब जीएसटी अधिकारी देर रात जांच खत्म कर बाहर निकले और मीडिया को देखते ही उल्टे पैर वापस भाग गए। यह दृश्य ऐसा लग रहा था मानो किसी बड़े सच को छुपाने की कोशिश की जा रही हो। रात 1 बजे जब अधिकारी दोबारा बाहर आए, तो पहले तो उन्होंने कैमरे से दूरी बनाने की कोशिश की और कहा कि “मैं मीडिया में बात रखने के लिए अधिकृत नहीं हूं।”
लेकिन जब पत्रकार हटे नहीं और कैमरा लगातार चालू रहा, तो उन्हें मजबूरन कुछ सवालों के जवाब देने पड़े। सवाल यह था कि जब जांच में 35 लाख की कर चोरी का खुलासा हुआ, तो मामला आखिर 52 लाख में क्यों निपटाया गया? और अधिकारी इस पूरे प्रकरण पर स्पष्ट जवाब देने से क्यों बच रहे थे? मऊगंज के प्रमुख सराफा व्यवसाय- बीएम ऑर्नामेंट्स और एस.एम. ज्वेलर्स, जिन्हें लोग ‘मोहित टंच’ के नाम से जानते हैं-इन फर्मों पर लंबे समय से बिना पक्के बिल और वाउचर के कारोबार करने की शिकायतें थीं। इसी कारण कर विभाग की टीम ने लगातार 72 घंटे तक दस्तावेजों की गहन जांच की। सूत्रों के अनुसार, इस कार्रवाई ने पूरे सराफा बाजार पर सवालों के बादल खड़े कर दिए हैं।
अधिकारियों की भागदौड़, क्या सच से दूरी?
जांच के तीसरे दिन रात 10:30 बजे जब जीएसटी अधिकारी परिसर से बाहर निकले, तो मीडिया ने उन्हें घेर लिया। पर उन्होंने एक पल में वापसी कर ली और दफ्तर की ओर भागे। रात 1 बजे दोबारा बाहर आने पर भी कैमरों से बचने की कोशिश की गई। यह रवैया पारदर्शिता को लेकर बड़ा संदेह पैदा करता है।
कार्रवाई में कई अनियमितताओं के प्रमाण
जांच में यह सामने आया कि फर्मों ने लेनदेन में 99 प्रतिशत तक इनपुट टैक्स क्रेडिट का उपयोग किया और दो वित्तीय वर्षों में सिर्फ 3.25 लाख रुपये नकद जमा किए। बड़े कारोबार के अनुपात में यह बेहद कम है। कच्चे बिल, गलत वाउचर और स्टॉक तथा बिक्री में भारी अंतर भी सामने आया, जो जीएसटी चोरी की स्पष्ट ओर इशारा करता है।
क्या ‘समझौते’ की ओर बढ़ गई थी कार्रवाई?
सूत्र बताते हैं कि इतनी गंभीर अनियमितताएं मिलने के बाद भी पूरा मामला मात्र 52.91 लाख रुपये जमा कराकर ‘निपटा’ दिया गया। सहायक आयुक्त अमित पटेल ने 35 लाख रुपये की कर चोरी का प्रस्ताव दिया था, लेकिन जमा राशि उससे अधिक थी। इससे यह शक और गहरा हो गया कि क्या तीन दिनों की लगातार जांच केवल दबाव बनाकर समझौता कराने का तरीका थी? अधिकारियों का मीडिया से भागना, सवालों से बचना और फिर आधे-अधूरे जवाब देना-ये सब इशारा करते हैं कि मऊगंज में जीएसटी विभाग की विश्वसनीयता पर बड़ा प्रश्नचिह्न लग गया है।
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