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जमीन-आसमान से भी ज्यादा खतरनाक दिमाग पर कब्जे की ये जंग, सोशल मीडिया के 'वॉर ऑफ माइंड्स' को समझिए .This war for control over the mind is more dangerous than the earth and sky, understand the 'War of Minds' of social media.

 पूनम पाण्डे 

नवभारत टाइम्स डिप्टी ब्यूरो चीफ 

ऑपरेशन सिंदूर में दुनिया ने देखा कि महज 25 मिनट में इंडियन आर्म्ड फोर्सेस ने पाकिस्तान के भीतर आतंक के 9 ठिकानों को ध्वस्त कर दिया। ये चार दिनों की आसमान, जमीन और टेक्नॉलजी की इंटेंस जंग थी। इस पूरी कवायद के बीच एक ऐसी जंग भी चल रही थी जो किसी बॉर्डर पर नहीं थी बल्कि थी दिमाग पर कब्जे की जंग। ये जंग है कॉग्नेटिव वॉरफेयर (Cognitive Warfare) जिसे दिमागी जंग कह सकते हैं। इस जंग में गोलियों की जगह नैरेटिव चलते हैं और मोर्चा सोशल मीडिया और मोबाइल नोटिफिकेशंस संभालते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान और इसके बाद भी लगातार चल रही दिमाग पर कब्जे की जंग पर


साल 2025, तारीख 6/7 मई, वक्त – 1 बजकर 51 मिनट। महज तीन शब्दों ने उस रात पूरी दुनिया को वो संदेश दे दिया जो भारत देना चाहता था। इंडियन आर्मी के एक्स हैंडल @adgpi से पोस्ट हुआ— Justice is Served और साथ में ऑपरेशन सिंदूर का लोगो। बस, इतना ही काफी था। तीन शब्दों में जो बात भारत कहना चाहता था वो दुनिया ने साफ-साफ सुन ली। इस पोस्ट ने सोशल मीडिया के इतिहास में एक नया रिकॉर्ड बना दिया।

इसके बाद इंडियन आर्मी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर कई प्रयोग शुरू किए। कभी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता तो कभी रॉक म्यूजिक के साथ बनाए वीडियो। लेकिन सवाल यह कि आखिर क्यों? इसका मकसद क्या था और इससे हासिल क्या हुआ?

इसके बाद इंडियन आर्मी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर कई प्रयोग शुरू किए। कभी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता तो कभी रॉक म्यूजिक के साथ बनाए वीडियो। लेकिन सवाल यह कि आखिर क्यों? इसका मकसद क्या था और इससे हासिल क्या हुआ?

नवंबर को इंडियन आर्मी ने अपने एक्स हैंडल पर 30 सेकंड का एक वीडियो जारी किया। उसमें लिखा था- Coordinates have consequences। साथ ही यह संदेश भी कि 'हम टारगेट का पीछा नहीं करते, उसे खत्म कर देते हैं।' इस वीडियो के सामने आते ही सोशल मीडिया पर चर्चाएं तेज हो गईं कि क्या भारत ऑपरेशन सिंदूर 2.0 लॉन्च करने जा रहा है? क्या भारत ने नए टारगेट तय कर लिए हैं?

इससे दो दिन पहले से ही आर्मी के हैंडल ने टीज करना शुरू किया था — 'Shadows and Steel... this weekend onwards.' बस फिर क्या था, लोगों ने अंदाज़े लगाने शुरू कर दिए कि आखिर इस वीकेंड क्या होने वाला है। साथ ही यूज़र्स ने ऑपरेशन सिंदूर के पुराने वीडियो फिर से पोस्ट करने शुरू कर दिए। अब यह स्वाभाविक था क्योंकि आर्म्ड फोर्सेस की बड़ी एक्सरसाइज़ के वीडियो सामने आते ही अब लोगों के दिमाग में ऑपरेशन सिंदूर की तस्वीर उभरने लगती है। यही तो कॉग्नेटिव वॉरफेयर की सफलता है, जब दिमाग में पहले से ही एक इमेज बैठा दी जाए।

अब इंफॉर्मेशन है सबसे बड़ा हथियार

करगिल युद्ध से पहले तक भारतीय सेना और मीडिया के बीच एक दूरी थी और इसका अर्थ था जनता से दूरी। लेकिन वक्त के साथ तस्वीर बदली। करगिल युद्ध के बाद इंडियन आर्मी में बना एडिशनल डायरेक्टरेट जनरल ऑफ स्ट्रैटजिक कम्युनिकेशन (ADGSC पुराना नाम ADGPI) जो पहले सिर्फ ज़रूरी सूचनाएं देने का काम करता था, अब नेरेटिव सेट करने और दुश्मन के नेरेटिव को ध्वस्त करने की दिशा में अहम भूमिका निभा रहा है। एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पूरी कोशिश यही रही कि दुश्मन किसी भी जानकारी को हथियार बनाकर इस्तेमाल न कर सके और हम इस खेल में उससे कई कदम आगे रहें।

दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान की आईएसपीआर यानी Inter-Services Public Relations कहीं बड़ी और ज्यादा संसाधनों वाली टीम है। वहां करीब 532 स्थायी कर्मचारी हैं, जिनमें आर्मी ऑफिसर से लेकर सिविलियन तक शामिल हैं और हर साल पांच से छह हजार इंटर्न अलग से रखे जाते हैं। इसके मुकाबले भारत का ADGSC सिर्फ करीब 50 लोगों की टीम है जिसमें 18 अधिकारी शामिल हैं। मगर असर और विश्वसनीयता के स्तर पर यह कहीं आगे है।

क्यों है अहम

कॉग्नेटिव वॉरफेयर के जरिए टारगेट ऑडियंस के दिमाग में ऐसी तस्वीर बनाई जाती है, जिस पर वह यकीन करे और जिसकी भावनात्मक गूंज महसूस करे। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान Justice is Served जैसे तीन शब्दों ने यही किया। दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत ने न्याय किया है, जिम्मेदारी से किया है और अपनी तकनीकी और सामरिक क्षमता भी दिखा दी है। यह साबित करने का तरीका था कि भारत अब इस नई जंग, यानी दिमाग की जंग में भी आगे है।आसान नहीं हर तरह की ऑडियंस को इंगेज करना

आज की हकीकत यही है कि परसेप्शन इज रिएलिटी। असलियत भले कुछ और हो लेकिन जो दिखाई देता है वही सच माना जाता है। अमेरिका दशकों से इस कला में माहिर है। हॉलीवुड की टॉप गन जैसी फिल्मों से लेकर उनकी मिलिट्री कैंपेन तक, सबके जरिए एक ही संदेश दिया जाता है कि अमेरिकी फोर्सेज दुनिया की सबसे ताकतवर हैं। इंडियन आर्मी भी अब इस कला में तेजी से आगे बढ़ी है।'याचना नहीं अब रण होगा...'

सिंदूर के वक्त जब एक वीडियो में रामधारी सिंह दिनकर की ‘रश्मिरथी’ की पंक्ति 'याचना नहीं अब रण होगा' शामिल की गई, तो वह हर वर्ग तक पहुंची। जनरेशन ज़ी को शायद दिनकर की कविता न पता हो लेकिन उसमें इस्तेमाल रॉक म्यूजिक ने उन्हें जोड़ा। इसलिए उस वीडियो पर ‘Dude, this is so cool!’ जैसे कमेंट्स दिखे, और कविता फिर से चर्चा में आ गई। वहीं बड़ी उम्र के ऑडियंस दिनकर की पंक्तियों से जुड़ गए। इसी तरह इंस्टाग्राम पर ‘वीकेंड वाइब्स’ के नाम से एक सीरीज़ चलाई जा रही है, जिसमें सैनिकों को कश्मीर के किसी कोने में बच्चों के साथ क्रिकेट खेलते या मुस्कुराते हुए दिखाया जाता है ताकि सेना का मानवीय चेहरा भी सामने आए।दुश्मन को संदेश देने का तरीका

एक अधिकारी बताते हैं कि जब हम वीडियो में आर्मी की नई ऑल-टेरेन व्हीकल दिखाते हैं, तो यह सिर्फ मशीन नहीं दिखा रहे होते, यह दुश्मन को संदेश देने का तरीका होता है कि हम कहीं भी पहुंच सकते हैं। पैराजंपिंग या ड्रोन ऑपरेशन के वीडियो भी इसी सोच का हिस्सा हैं। हाल के महीनों में आर्मी ने सोशल मीडिया पर कई प्रयोग किए हैं। जनरेशन जी को जोड़ने के लिए अब 10 से 20 सेकंड के वीडियो भी बनाए जा रहे हैं, जो तेज़, छोटे और असरदार हैं।क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

एम्स में साइकाइट्री डिपार्टमेंट में प्रफेसर डॉ नंद कुमार कहते हैं कि जब बार बार एक खास तरह की बनी वीडियो एक छोटी अवधि के लिए देखते हैं तो दिमाग पर उसका असर अधिक होने की संभावना होती है। किसी लिखी चीज के मुकाबले वीडियो का असर इसलिए ज्यादा होता है क्योंकि हमारी ऑडियोबिज़ुअल सेंसेस इसकी आदि हो चुकी होती है। अटेंशन स्पैम कम हो गया है इसलिए हम पढ़ने के बजाय वीडियो देख कर फैसला आसानी से कर लेते है। किसी को अगर इंगेज करना है तो वीडियो बहुत छोटा सा होना चाहिए और जो बात कहनी है वह कम से कम वक्त में कही जानी चाहिए। शॉर्ट वीडियो और अगर उसमें स्पेशल साउंड इफेक्ट जो एक खास तरह के ब्रेन वेव को प्रभावित करती है तो वह ज्यादा असर करते हैं।हर पिक्चर, हर फ्रेम कुछ कहता है

एक अधिकारी कहते हैं, 'हम अपने देश के लोगों को यह बताना चाहते हैं कि हम एक प्रोफेशनल और केपेबल फोर्स हैं, जो अपने थ्रेट को समझती है और लगातार अपग्रेड होती रहती है।' यही कारण है कि सेना आज सिर्फ सुरक्षा का प्रतीक नहीं, बल्कि भरोसे और प्रेरणा का चेहरा भी बन गई है।सवाल ये भी कि जिन लोगों को मिलिट्री कंटेंट में इंटरेस्ट नहीं है उन्हें कैसे इंगेज करें। इसके लिए भी कई प्रयोग हो रहे हैं। इंस्टाग्राम पर किसी सैन्य वाहन की तस्वीर के साथ एक शेर पोस्ट किया जाता है- 'मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग आते गए और कारवां बनता गया।' उर्दू शायर मजरूह सुल्तानपुरी से लेकर बंगाली कवि काज़ी नजरूल इस्लाम तक, सबकी पंक्तियों का इस्तेमाल इस कनेक्ट को गहरा करने के लिए किया जा रहा है।फैक्ट फाइल

मार्च 2013 में इंडियन आर्मी का ट्विटर (अब एक्स) हैंडल बना

इसके कुछ महीने बाद फेसबुक और बाद में इंस्टाग्राम पर भी आर्मी की मौजूदगी

सभी सोशल मीडिया हैंडल मिलाकर 3 करोड़ फॉलोअर्स

दुनिया भर के मिलिट्री हैंडल्स में सबसे ज्यादा पहुंच वाला हैंडल

ऑपरेशन सिंदूर जैसे वक्त में कैसे आता है काम

एक अधिकारी बताते हैं 'हम सोशल मीडिया को सिर्फ कम्युनिकेशन टूल नहीं, बल्कि एक रणनीतिक क्षमता के रूप में देखते हैं। इसका उद्देश्य नागरिकों से जुड़ना, दुनिया को जानकारी देना और राष्ट्र को प्रेरित करना है।' ऑपरेशन सिंदूर के दौरान आर्मी के सोशल मीडिया हैंडल की रीच 50 बिलियन तक पहुंची थी। यह दिखाता है कि जब ऑडियंस लगातार जुड़े रहते हैं तो संकट या युद्ध के वक्त वे सही सूचना के लिए इन्हीं प्लेटफॉर्म्स पर भरोसा करते हैं। इससे फेक न्यूज का असर कम होता है और लोग हर जानकारी को वेरिफाई करने की कोशिश करते हैं।फेक न्यूज को काउंटर करना बड़ा चुनौती

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने बताया था कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान 15 प्रतिशत समय फेक न्यूज को काउंटर करने में गया। ऐसे वक्त में जब टैंक, तोप और फाइटर जेट गरज रहे होते हैं तब साल भर सोशल मीडिया के जरिए दुनिया से कनेक्ट होने का फायदा दिखता है। तब पूरी दुनिया भारत की हार्ड पावर के साथ ही सॉफ्ट पावर से भी वाकिफ होती है। ये सिर्फ फौज का चेहरा नहीं दिखाता बल्कि देश के संदेश को भी दूर तक पहुंचाता है।

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