सम्पादकीय
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हवा एक बार फिर से जानलेवा हो चुकी है। बीते कुछ दिनों से हवा की गुणवत्ता बेहद खराब स्तर पर बनी हुई है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के प्रोजेक्ट सफर की रिपोर्ट के मुताबिक गुरुवार की शाम दिल्ली के आनंद विहार इलाके में हवा में पीएम 10 का स्तर 423 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर पहुंच गया। वहीं हवा में पीएम 2.5 का स्तर 197 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के करीब दर्ज किया गया। मानकों के तहत हवा में पीएम 10 का स्तर 100 और पीएम 2.5 का स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रतिक्यूबिक मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए। वहीं पूसा, अलीपुर, आरकेपुरम आदि इलाकों में भी हवा में प्रदूषण का स्तर मानकों से तीन गुना से ज्यादा दर्ज किया गया।
अमेरिका की दो स्वास्थ्य संस्थाओं, हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट और इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन, की ओर से जारी स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2025 रिपोर्ट के मुताबिक भारत में साल 2023 में वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण 20 लाख लोगों की मौत हुई। वर्ष 2000 की तुलना में इन मौतों में लगभग 43 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि वायु प्रदूषण के चलते सामान्य बीमारियां महामारी का रूप ले सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक वायु प्रदूषण के चलते दिल की बीमारियां, फेफड़ों के कैंसर, मधुमेह और मनोभ्रंश जैसी घातक बीमारियां तेजी से बढ़ती जा रही हैं। वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए नीतिगत कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले समय में स्थितियां और गंभीर हो सकती हैं।
दुनिया भर में होने वाली आठ मौतों में से लगभग एक वायु प्रदूषण के कारण हो रही है। इनमें से आधी से ज्यादा मौतें (लगभग 49 लाख) खुले में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने के कारण होती हैं। वहीं लगभग 28 लाख मौतें घरेलू वायु प्रदूषण के कारण और बाकी ओजोन के प्रदूषण के संपर्क में आने के कारण होती हैं। इस बार रिपोर्ट में वायु प्रदूषण और मनोभ्रंश के बढ़ते जोखिम के बीच संबंध के बारे में ठोस सबूत पेश किए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि मनोभ्रंश के कारण दुनियाभर में 626,000 मौतें हो रही हैं और 40 मिलियन स्वस्थ जीवन वर्ष नष्ट हो रहे हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि सूक्ष्म कण पदार्थ PM 2.5 के लंबे समय तक संपर्क में रहने से मस्तिष्क के ऊतकों को नुकसान पहुँच सकता है और संज्ञानात्मक गिरावट तेज़ हो सकती है।
वायु प्रदूषण के कारण भारत में तेजी से बढ़ रहीं बीमारियांभारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों की दर उच्च आय वाले देशों की तुलना में 10 गुना ज़्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक यहां हर दस हजार लोगों में वायु प्रदूषण से लगभग 186 मौतें होती हैं। वहीं विकसित देशों में हर एक लाख लोगों पर वायु प्रदूषण से 17 मौतें होती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में दर्ज किया गया है। वहीं रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वायु प्रदूषण के चलते गैर-संचारी रोग (एनसीडी) तेजी से बढ़े हैं। 2023 में भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली सभी मौतों में से 89 प्रतिशत गैर-संचारी रोगों के कारण हुईं। इनमें हृदय और फेफड़ों की बीमारी, फेफड़ों का कैंसर, मधुमेह और मनोभ्रंश शामिल हैं।
वर्ल्ड हेल्थ फेडरेशन की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक में वायु प्रदूषण के चलते दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों में लगभग 27 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है। रिपोर्ट इंगित करती है कि हवा में प्रदूषण छोटे प्रदूषक अदृश्य कण हृदय की लय, रक्त के थक्के जमने, धमनियों में प्लाक बनने और रक्तचाप को प्रभावित कर रहे हैं। भारत में आईसीएमआर सहित कई संस्थानों ने भी बढ़ती दिल की बीमारियों के लिए वायु प्रदूषण को एक बड़ा कारण माना है। आईसीएमआर की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में भारत में हर आठ मौतों में से एक मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई।
वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट में कहा है कि वायु प्रदूषण के कारण होने वाली हृदय संबंधी बीमारियों से होने वाली मौतों की संख्या पिछले एक दशक में बढ़ रही है और आगे भी बढ़ने वाली है। दुनिया भर में सरकारें अगर इस मुद्दे से निपटने के लिए कानून नहीं बनाती हैं, तो हृदय रोग पर वायु प्रदूषण के प्रभाव से हर साल लाखों लोगों की मृत्यु हो सकती है
। रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण को लेकर एक वैश्विक नीति बनाने की जरूरत है। रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण लक्ष्यों को पूरा करने में विफलता के कारण मोटापा और मधुमेह सहित कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं, इसे "सबसे बड़ा पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिम" बताया गया है। डब्ल्यूएचओ और अन्य एजेंसियों द्वारा सुझाए गए उपायों के बावजूद वायु गुणवत्ता के स्तर में मुश्किल से ही सुधार हुआ है, जिसके कारण हर साल लगभग 1.9 मिलियन लोग हृदय रोग से और लगभग दस लाख लोग स्ट्रोक से मर रहे हैं, इन मौतों के लिए सिर्फ वायु प्रदूषण ही जिम्मेदार है। रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी भूमध्यसागरीय देशों में वायु प्रदूषण मानकों कसे लगभग लगभग दस गुना तक अधिक है।
अध्ययन में कहा गया है कि बाहरी वातावरण में प्रदूषण के साथ ही घरों के अंतर लम्बे समय तक रहने वाला वायु प्रदूषण ज्यादा मुश्किल पैदा कर रहा है। लेंसेट कमीशन ऑन पॉल्यूशन एंड हेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में भारत में वायु प्रदूषण से लगभग 16.7 लाख मौतें हुईं ये उस साल देश में होने वाली सभी मौतों का 17.8% हिस्सा था। दुनिया की लगभग 91% आबादी उन जगहों पर रहती है जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देशों द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक है।
एम्स कॉर्डियोलॉजी के निदेशक रह चुके डॉक्टर संदीप मिश्रा कहते हैं कि वायु प्रदूषण में PM 2.5 बेहद छोटे कण होते हैं। ये इतने छोटे होते हैं कि आपकी सांस के जरिए आपके फेफड़ों तक और वहां से आपके खून तक पहुंच जाते हैं। इन प्रदूषक कणों के आपके शरीर में पहुंचने से दिल, धमनियों सहित कई जगहों पर संक्रमण फैल जाता है। ये धीरे धीरे दिल की गतिविधियों पर असर डालते हैं। ज्यादा समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने पर कंजेशन के चलते हार्ट अटैक की स्थिति बन सकती है
। हवा में इस प्रदूषक कण की मात्रा बढ़ने से आपको कफ भी ज्यादा बनता है। प्रदूषित हवा में मौजूद PM 2.5 दिल के साथ ही दिल तक खून पहुंचाने और ले जाने वाले पूरे सिस्टम पर असर डालता है। ऑर्गनाइजड मेडिसिन अकेडेमिक गिल्ड के सेक्रेटरी जनरल डॉ ईश्वर गिलाडा कहते हैं कि PM 2.5 के खून मे पहुंच जाने के बाद ये प्रदूषक तत्व खून के साथ पूरे शरीर में घूमते हुए दिल तक पहुंचता है।
ऐसे में मरीज को सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, चक्कर आना, बेचैनी जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। कई बार मरीज को ऐसा लगता है की उसको सांस कम आ रही है। ऐसे में मरीज की मुश्किल बढ़ सकती है। उसे तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए। PM 2.5 का असर फेफड़ों और दिल के साथ ही आपके दिमाग पर भी पड़ता है। हवा में प्रदूषण बढ़ने पर खास तौर पर सांस के मरीजों, दिल की बीमारी से जूझ रहे मरीजों और ऐसे मरीज जिन्हें पहले कोविड संक्रमण हुआ हो उन्हें ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। ब्रांकराइटिस के मरीज अगर ज्यादा लम्बे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं तो उनके जीवन पर भी संकट खड़ा हो सकता है। ऐसे में इस तरह के मरीजों को खास तौर पर ध्यान देने की जरूरत है।
पुरुषों में महिलाओं की तुलना में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा ज्यादा होता है। वहीं हाल ही में एक अध्ययन में पाया गया कि साफ हवा में रहने वाले या गांवों में रहने वाले लोगों की तुलना में शहरों में या प्रदूषित वातावरण में रहने वाले लोगों को डिमेंशिया का खतरा आठ से दस गुना तक ज्यादा होता है।
इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज के डिप्टी मेडिकल सुप्रीटेंडेंट डॉक्टर ओम प्रकाश कहते हैं कि हवा में प्रदूषण बढ़ता और लम्बे समय तक बना रहता है तो लोगों में तनाव, गुस्सा, घबराहट और डिप्रेशन जैसे सिमटम देखने को मिलते हैं। प्रदूषण के चलते ही बहुत से लोगों में नींद न आने की समस्या बढ़ी है। बहुत से मरीज ऐसे सामने आ रहे हैं जिनमें या तो नींद का समय कम हो गया है या गहरी नींद नहीं आती है। ऐसे में मानसिक तनाव बढ़ जाता है, काम में मन नहीं लगता है।
हवा में प्रदूषण बढ़ने के साथ ही ऐसे मरीजों की संख्या भी बढ़ती है। प्रदूषण की समस्या से बचने के लिए लोगों को सर्जिकल मास्क लगाना चाहिए। ये मास्क PM2.5 जैसे कणों को रोक देता है। ये प्रदूषक कण मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज्यादा हानिकारक होते हैं। मास्क लगाने से कई तरह के वायरस और बैक्टीरिया के संक्रमण से भी बचाव होता है।

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