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महर्षि कश्यप के गर्भ संस्कार नियमiMaharishi Kashyap's rules for conceiving

 विभास क्षीरसागर

जब दिति की ईर्ष्या से जन्मी थी देव-असुर कथा

प्रजापति दक्ष की कई कन्याएं थीं, जिनमें से तेरह का विवाह महर्षि कश्यप के साथ हुआ था। इनमें दिति और अदिति प्रमुख हैं। अदिति के पुत्र आदित्य कहलाए, जिनमें इंद्र देवताओं के राजा हैं। दिति के पुत्र दैत्य थे। दिति को इंद्र से ईर्ष्या थी। वह चाहती थी कि उसे इंद्र का वध करने वाला एक पुत्र हो। इसी इरादे से उसने महर्षि कश्यप की बहुत सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर कश्यप ने दिति को वरदान मांगने को कहा। यह सुनकर दिति के हृदय में वर्षों से संचित इच्छा मुखर हो उठी। उसने विनम्रता से कहा, ‘भगवन्! मैं आपसे ऐसा पुत्र चाहती हूं


, जो इंद्र का वध करने में समर्थ हो, जिसका पराक्रम और आत्मबल अनुपम हो और जो देवताओं का संहारक बने।’महर्षि कश्यप कुछ क्षण मौन रहे। फिर कोमल, किंतु गंभीर स्वर में बोले—‘शुभे! तुम्हारी इच्छा पूरी होगी। मैं तुम्हें ऐसा तेजस्वी पुत्र प्रदान करूंगा, जो इंद्र का शत्रु होगा, पर इसके लिए तुम्हें एक कार्य अवश्य करना होगा। आज ही आपस्तंब ऋषि से पुत्रेष्टि यज्ञ का अनुष्ठान कराओ। यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद मैं तुम्हारे उदर में उस पुत्र का गर्भाधान करूंगा, जो इंद्ररूपी शत्रु का संहार करेगा।’दिति ने तुरंत आज्ञा स्वीकार की। महर्षि आपस्तंब को बुलाकर उसने पुत्रेष्टि यज्ञ का अनुष्ठान कराया। यज्ञ अत्यंत वैभवपूर्ण ढंग से किया गया था। 

मंत्रोच्चार के साथ अग्नि में आहुति दी गई, ‘इंद्रशत्रुर्भवस्व !’ अर्थात ‘इंद्र का शत्रु उत्पन्न हो।’देवता इस यज्ञ से पहले क्षुब्ध हुए, परंतु जब उन्हें यह मालूम हुआ कि इस यज्ञ का फल दानवों को ही नियंत्रित करेगा, तब वे प्रसन्न हो गए। यज्ञ की समाप्ति के बाद महर्षि कश्यप ने दिति का गर्भाधान किया और बोले, ‘प्रिये! अब तुम्हें एक सौ वर्षों तक इस गर्भ की रक्षा करनी होगी। तपोवन में रह कर सभी नियमों का पालन करना, अन्यथा गर्भ का नाश हो सकता है।’दिति ने नियम के विषय में पूछा, तो महर्षि कश्यप ने उसे विस्तार से नियम समझाए: ‘गर्भवती स्त्री को संध्या के समय भोजन नहीं करना चाहिए। उसे वृक्ष की जड़ पर नहीं बैठना चाहिए और न ही उसके पास जाना चाहिए। मूसल, ओखली या ऐसी गृह-सामग्री पर न बैठना, न ही जल में अधिक समय तक स्नान करना। सुनसान घर में अकेले न जाना। पृथ्वी पर नख या लकड़ी से रेखाएं मत खींचना। 

आलस्य और अधिक निद्रा से बचना। कठिन परिश्रम वाले कार्य न करना।भूसी, राख, हड्डी और खोपड़ी पर कभी मत बैठना। विवादों से दूर रहना और शरीर को तोड़-मरोड़ कर कष्ट मत देना। बाल खोलकर मत बैठना। अपवित्रता से बचना। सिरहाना उत्तर दिशा की ओर रखकर मत सोना। निर्वस्त्र या उद्विग्न होकर शयन न करना। गीले चरणों के साथ कभी मत लेटना। अमंगलसूचक वाणी मत बोलना, न ही अधिक हंसना। 

सदैव मंगल कार्यों में संलग्न रहना, गुरुजनों की सेवा करना और औषधीय स्नान करना। प्रसन्न मुख रहना और पति के हित में सदा संलग्न रहना।गर्भवती स्त्री को स्वच्छ वेश-भूषा धारण करनी चाहिए, और पर्वों से जुड़े व्रत का पालन करना चाहिए। जो स्त्री इन नियमों का पालन करती है, उसका पुत्र शीलवान, तेजस्वी और दीर्घायु होता है, परंतु यदि नियमों की अवहेलना की जाए, तो गर्भपात की आशंका बनी रहती है।’ महर्षि कश्यप अंत में बोले, ‘यदि तुम पूर्ण सावधानी व अनुशासन से इन नियमों का पालन करोगी, तो तुम्हें वही पुत्र प्राप्त होगा, जिसकी तुम्हें कामना है। किंतु यदि तुम तनिक भी असावधान हुई, तो होने वाला पुत्र, इंद्र का शत्रु नहीं, बल्कि मित्र बन जाएगा।’ दिति ने निश्चय किया कि चाहे जैसे भी कष्ट आएं, वह नियमों का पालन करेगी। दिति ने गर्भधारण किया, पर उससे एक चूक हो गई, जिसके चलते दिति ने जिस ‘मरुदगण’ को जन्म दिया, वह इंद्र के सहयोगी बने और इंद्र ने उन्हें देवताओं के समान अधिकार दिलाए।

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