• रवि उपाध्याय
यह कहावत है कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं कि उन्हें किसी का भी खुश होना जरा भी सुहाता नहीं है। ऐसे लोग हरदम रंग में भंग डालने के लिए एक पैर पर खड़े रहते हैं। ऐसे लोग मकान बन कर तैयार होता नहीं है और रंग में भंग डालने वाले लोग बुलडोजर ले कर तोड़ने आ जाते हैं। ऐसे लोग पूरी दुनिया में मिल जाएंगे। इसकी एक बानगी हम पांच साल पहले सात समंदर पार अमेरिका में देख चुके हैं। जब डेमोक्रेट जो बाइडन ने तत्कालीन राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में पराजित कर दिया। तब ट्रंप ने बाइडन की शपथ ग्रहण में कई बाधाएं खड़ी कर दीं थीं। इनमें ही एक मंथरा भी थीं। जिन्होंने रामजी को राज तिलक से पहले 14 वर्ष के लिए वनवास पहुंचा दिया था।
अच्छे काम में बाधा खड़ी करने वालों को विघ्न संतोषी कहा जाता हैं। ऐसा ही कुछ इन दिनों बिहार में करने का प्रयास किया जा रहा है। हाल ही 14 नवम्बर को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणाम आए हैं। इनमें राजग गठबंधन को 243 सदस्यीय सदन में 202 सीटों पर जीत मिली है। जबकि राजद कांग्रेस नीत महागठबंधन को केवल 35 सीटों पर जीत हासिल हुई है।
चुनाव परिणाम आने के बाद यह तय है कि बिहार में एक बार फिर राजद की सरकार बनेगी और नीतीश कुमार दसवीं बार मुख्यमंत्री बनेंगे। हाल के चुनावों में भाजपा 89 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रुप में सामने आई है। वहीं नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को 85 सीट मिलीं हैं।
ओवैसी की टंगड़ी
चुनाव परिणाम आने के तत्काल बाद हैदराबादी भाई जान असुद्दीन ओवैसी ने बिहार की सियासत में रंग में भंग डालने का प्रयास किया है। ओवैसी ने निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ऑफर दिया है कि वे राजग गठबंधन को छोड़ कर महागठबंधन में शामिल दलों के अलावा एआईएमआईएम तथा निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाएं।
ओवैसी ने भाजपा को छोड़ कर सरकार बनाने का जो गणित बताया कि जनता दल यूनाइटेड के 85, राजद 25, कांग्रेस 06, एआईएमआईएम 05,भाकपा माले 02, माकपा 01, बसपा 01 और आई आई पी 01 के विधायक के समर्थन से नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनाई जा सकती है।
ओवैसी की जुगाड़
ओवैसी खुद यह अच्छी तरह जानते होंगे कि उनका यह ऑफर ना तो नीतीश कुमार कभी मानेंगे और ना ही इस पर राजद कांग्रेस हां कहेगी। क्योंकि यदि ऐसा होता तो चुनावों के पहले से ही महा गठबंधन में ओवैसी की पार्टी को शामिल किया जा चुका होता। ओवैसी ने इसके लिए अपनी एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। इसके लिए पार्टी कार्यकर्ताओं ने लालू यादव के घर पर प्रदर्शन भी किया। लालू यादव को अनेक पत्र लिखे परन्तु ओवैसी के लिए राजद कांग्रेस ने महा गठबंधन के दरवाजे नहीं खोले।
ओवैसी की यह थी योजना
ओवैसी यह जानते थे कि ऐसा होना असंभव है। इसके बाद भी उन्होंने यह दांव यह सोच कर चला था कि यदि भाजपा ने नीतीश कुमार को तथाकथित स्वास्थ को लेकर यदि भाजपा के किसी नेता को बिहार का मुख्य मंत्री बनाने का प्रयास किया तो उनका यह ऑफर काम कर सकता है। इसका फायदा उनकी पार्टी को यह होगा कि वह सभी दलों के लिए सर्वग्राही हो जाएगी। इस तरह यदि सरकार बनती है तो वे सरकार में शामिल हो कर बिहार में अपनी पार्टी का विस्तार कर सकेंगे और उनकी पार्टी को उसी तरह सेक्युलर मान लिया जाएगा जिस तरह कांग्रेस विशेषतौर पर राहुल गांधी ने केरल में मुस्लिम लीग को सेक्युलर होने का प्रमाण पत्र दे दिया है।
हालांकि ओवैसी का यह सपना पूरा होने की कतई संभावना नहीं है। क्योंकि जदयू विधायक दल ने नीतीश कुमार को अपना नेता चुन लिया है। बताया गया है कि राजग ने भी उनके मुख्य मंत्री बनाने पर अपनी मोहर लगा दी है। 17 नवम्बर को एनडीए विधायक दल की बैठक में नीतीश कुमार को नेता चुना जाएगा।नए मुख्य मंत्री का शपथ ग्रहण समारोह 20 नवंबर को पटना के गांधी मैदान में होना तय किया गया है। इसकी तैयारियां चल रहीं हैं।
मीडिया की खबरों के अनुसार गुरुवार 20 नवम्बर को पटना में होने वाले शपथ समारोह में एनडीए राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री, भाजपा और जनता दल के नेता मौजूद रहेंगे। महा गठबंधन के नेताओं को भी आमंत्रण पत्र भेजे जाएंगे।
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