मुंबई परीक्षित गुप्ता
भारतीय सिनेमा में मनोज बाजपेयी का अपना अलग नाम है. 'बैंडिट क्वीन' में एक छोटी सी भूमिका के बाद, फिल्म 'सत्या' में भीखू म्हात्रे के किरदार ने उन्हें देशभर में पॉपुलैरिटी दिलाई. उन्होंने 'शूल', 'राजनीति', 'पिंजर', 'अलीगढ़', 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' जैसी कई फिल्मों में सामाजिक और भावनात्मक सोच वाली भूमिका निभाई.
'स्पेशल 26', 'वजीर', 'नाम शबाना' और 'सोनचिड़िया' में उनके काम को आलोचकों ने भी खूब सराहा. ओटीटी पर आई सीरीज 'द फैमिली मैन' ने उन्हें नई पीढ़ी के दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया. अपने अभिनय में ईमानदारी, किरदार में पूरी तरह घुल-मिल जाने की क्षमता और जोखिम उठाने के जज्बे के कारण, उन्हें आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे सम्मानित अभिनेताओं में से एक माना जाता है. 'द फैमिली मैन' का तीसरा सीजन आ गया है और इस बारे में मनोज बाजपेयी ने हमारे संवाददाता बातचीत की.
मनोज बाजपेयी: नहीं, नहीं. ऐसा कुछ नहीं है. हम (निर्देशक के साथ) तभी चर्चा करते हैं जब जरूरी होता है. शूटिंग के दौरान अचानक कुछ सीन, कुछ डायलॉग या कुछ नया सुझाया जाता है. लेखक और निर्देशक के साथ लगातार चर्चा, बहस होती रहती है. क्योंकि उन्होंने इसे लिखा है और हम इसे लागू कर रहे हैं, वे अभिनेताओं के रूप में हमसे आने वाले नए विचारों को भी महत्व देते हैं. मैं थोड़ा भाग्यशाली हूं क्योंकि मैं लगातार उनके (निर्देशक राज और डीके) पीछे चलता रहता हूं, लगातार आग्रह करता हूं, मुझे स्क्रिप्ट दो, मुझे स्क्रिप्ट दो. मैं बहुत नर्वस एक्टर हूं. वे मेरी घबराहट को भी समझते हैं. स्क्रिप्ट पढ़ते समय सवाल उठते हैं और निर्देशकों को पकड़कर चर्चा करनी होती है, लेकिन वे बहुत व्यस्त होते हैं. समय निकालकर आधे घंटे बैठकर बात करना मुश्किल होता है. इसलिए यह प्रक्रिया शूटिंग खत्म होने तक चलती रहती है. लेकिन हां... मैं नर्वस हूं. तो फिर मैं ही क्यों घबराता हूं, तो मैं दूसरों को भी थोड़ा बैचेन कर देता हूं, एक्टर हंसते हुए बोले.
इस सीरीज के दूसरे और तीसरे सीजन के बीच चार साल का लंबा ब्रेक था. आपको 'तिवारी जोन' में वापस आने में कितना समय लगा?
मनोज बाजपेयी: जब सीरीज की पढ़ाई और तैयारी शुरू होती है, और यह तय होता है कि आपको एक महीने में शूटिंग के लिए जाना है, तो कोई भी जिम्मेदार अभिनेता पूरी तरह से तैयार होकर जाना चाहता है. मैं एक पेशेवर कलाकार के रूप में अपना कर्तव्य निभाना चाहता हूं. अगर मैं सेट पर जाता हूं और पूछता हूं, 'इस सीजन की कहानी क्या है?", तो निर्देशक बेहोश हो जाएंगे, इसलिए हम पहले से तैयारी करते हैं. निर्देशक कुछ चीजें समझाते हैं, हम चर्चा करते हैं और फिर शूटिंग शुरू होती है. तैयारी हमारी होती है. मैं 'द फैमिली मैन' के सेट पर श्रीकांत तिवारी बनकर पहुंचता था.इस सीजन की शूटिंग का पहला दिन और भी तनावपूर्ण था. पहला सीन कैसा होगा, मैं इसे कैसे देखूंगा, वे इसे कैसे देखेंगे? फिर कभी-कभी मैं सोचता हूं, 'यह खड़े होने के बजाय बैठकर कहूंगा तो बेहतर लगेगा?, "मैंने वह मार्क दिया है, लेकिन मैं वहां बैठ नहीं सकता, क्या मैं यहां खड़ा रहूं? इस तरह का आदान-प्रदान लगातार होता रहता है. पहले 10-12 दिनों तक मेरी एकमात्र चिंता यही थी कि क्या मैं यह काम सही ढंग से कर रहा हूं.
सवाल: आप 'द फैमिली मैन' के दो सीजन कर चुके हैं. आपका किरदार स्थापित हो चुका है. तो इस बार श्रीकांत तिवारी के लिए क्या नई चुनौतियां थीं?
मनोज बाजपेयी: इस बार बहुत बड़ी और गंभीर चुनौतियां हैं. प्लॉट और स्क्रिप्ट स्ट्रक्चर की वजह से मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकता, लेकिन इतना कह सकता हूं कि श्रीकांत तिवारी इस बार कोई लड़ाई जीतते नहीं दिख रहे हैं. पूरे सीजन में सवाल यही है कि वो खुद को कितना बचा पाते हैं? 'फैमिली मैन' से 'मोस्ट वांटेड मैन' तक का ये सफर खुद को बचाने, अपनी बेगुनाही साबित करने और जयदीप और निमरत जैसे लोगों का सामना करने का है जो दस कदम आगे हैं. श्रीकांत और उनके परिवार की जिंदगी में इतना कुछ दांव पर लगा है कि उनका बचना बहुत मुश्किल हो गया है. इस बार दर्शकों को और मजा आने वाला है. ये देखना काफी रोमांचक होगा कि ये हीरो, जिसे आपने हर रूप में देखा है, कैसे अपनी पहचान और अपनी खुद की वैल्यू बनाए रखता है.
सवाल: इस वेब सीरीज के तीसरे सीजन में आपने श्रीकांत में क्या नया डेवलप किया है?
मनोज बाजपेयी: श्रीकांत मूल रूप से वही हैं, लेकिन समय के साथ उनकी जिंदगी के कई पहलू बदल गए हैं. बच्चे अब बड़े हो गए हैं, इसलिए उनके साथ उनका रिश्ता एक नए मुकाम पर पहुंच गया है. कुछ घटनाओं के कारण उनकी पत्नी के साथ उनका रिश्ता भी एक अलग दिशा में बह गया है और वह लगातार उस रिश्ते को बनाए रखने की कोशिश करते हैं.एक चीज जो नहीं बदली, वह है जेके (शारिब हाशमी द्वारा अभिनीत किरदार) और श्रीकांत के बीच का रिश्ता. यह हमेशा बरकरार और मजबूत रहा है. मैं जयदीप से ज्यादा मिलता हूं, निमरत से थोड़ा कम. कई साल पहले, हमारी साथ में एक फिल्म करने की योजना थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. फिर भी, हमें हमेशा एक-दूसरे का काम पसंद आता है, इसलिए साथ काम करने का आनंद अलग है. बाकी दिनचर्या वही है, सुबह पांच बजे उठना, सात बजे सेट पर पहुंचना और डीके से कहना, आज का काम हो गया, अगला कल करेंगे, और वे तुरंत कहते हैं, चलो एक और शॉट लेते हैं, यह एक छोटा सा सीन है, चलो इसे आज ही पूरा कर लेते हैं, यह सारी भागदौड़ और कड़ी मेहनत हमेशा चलती रहती है.
सवाल: आपने इतना काम किया है, खुद को साबित किया है. तो नया सीजन आपके लिए क्या मायने रखता है? और क्या बाकी है? और आपको क्या प्रेरित करता है?
मनोज बाजपेयी: यह बहुत अच्छा सवाल है. तीन बड़ी चीजें हैं जो मुझे प्रेरित करती हैं.1. एक्टिंग के प्रति मेरा अपार जुनून. एक्टिंग मेरे लिए सिर्फ एक पेशा नहीं है, यह मेरी सांस है, मेरी जिंदगी है. इस सपने को पूरा करने के लिए मैंने जीवन में बहुत त्याग किया है, इसीलिए मैं हर पल को दिल से जीता हूं.2. अगली पीढ़ी के कलाकारों जयदीप, निमरत का अद्भुत काम. मैं हमेशा उनके काम से प्रेरित होता हूं. उनके काम में ईमानदारी और ऊर्जा मुझे उत्साहित रखती है.3. राज-डीके जैसे निर्देशक. उनकी सोच, दुनिया को देखने का उनका नजरिया, उनके सिद्धांत, यह सब मेरे काफी अनुरूप है. उनके साथ काम करते समय कभी कोई तनाव नहीं होता है; हम बिल्कुल एक ही लय में सोचते हैं. इसलिए सेट पर जाना हमेशा सुखद होता है.मुझे एक्टिंग का इतना शौक है कि अगर कोई मुझसे कहे, 'अगर मुझे बहुत सारे पैसे मिलें, तो घर पर ही रहना, तो भी मैं नहीं बैठूंगा, क्योंकि मेरी असली जिंदगी नए-नए कॉस्ट्यूम पहनना, डायलॉग बोलना, कैमरे के सामने खड़े होकर उस दुनिया में जीना है.
सवाल: आपकी निजी जिंदगी में 'बॉस' कौन है?
मनोज बाजपेयी: मेरी जिंदगी में असली बॉस मेरी बेटी है. वो बड़ी हो रही है, इसलिए उसने मुझे व्यवहार करना सिखाना शुरू कर दिया है, वो अब मुझे फैशन सिखाती है, मेरी अंग्रेजी सुधारती है और मैं उसकी हिंदी सुधारने की कोशिश करता हूं'.

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