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विज्ञान के महामानव: वैज्ञानिक श्री जगदीश चन्द्र बोसGreat Man of Science: Scientist Shri Jagdish Chandra Bose

 30 नवम्बर — सर डॉ. जगदीश चन्द्र बोस की जयंती पर विशेष 

(भारत में आधुनिक वैज्ञानिक चेतना के पथप्रदर्शक)

भारत के वैज्ञानिक इतिहास को यदि गौर से देखा जाए, तो कुछ ऐसे नाम सामने आते हैं जिन्होंने न केवल विज्ञान की सीमाओं को आगे बढ़ाया, बल्कि इस देश की बौद्धिक पहचान को विश्व-पटल पर स्थापित किया। वैज्ञानिक श्री जगदीश चन्द्र बोस ऐसा ही एक विराट व्यक्तित्व हैं—एक ऐसे वैज्ञानिक, जिन्हें पौधों की संवेदना से लेकर आधुनिक भौतिकी और वायरलेस संचार तक, अनेक क्षेत्रों में अद्भुत योगदान के लिए जाना जाता है।


पौधों में जीवन और संवेदना का वैज्ञानिक प्रमाण

डॉ. बोस का सबसे उल्लेखनीय और विश्व-प्रसिद्ध कार्य था—पौधों में संवेदनशीलता और प्रतिक्रिया का वैज्ञानिक प्रमाण देना।

उन्होंने यह खोज प्रस्तुत की कि पौधे मात्र निष्क्रिय जीव नहीं, बल्कि उनमें भी नाड़ी-सदृश प्रणाली होती है, जो बाहरी उत्तेजनाओं—जैसे प्रकाश, ताप, ध्वनि, चोट या रसायनों—पर प्रतिक्रिया देती है।

उनके द्वारा बनाया गया यंत्र क्रेस्कोग्राफ (Crescograph) विश्व का पहला वैज्ञानिक उपकरण था, जो पौधों की सूक्ष्म से सूक्ष्म गतियों को हज़ार गुना तक बढ़ाकर दर्शा सकता था। इस खोज ने पूरे विश्व को चौंका दिया और वनस्पति विज्ञान में एक नई दिशा दी।

उनके शोध ने ये सिद्ध किया कि—

पौधे दर्द महसूस करते हैं,

वातावरण के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं,

और उनमें जीवन ऊर्जा समान रूप से प्रवाहित होती है।

आज *“प्लांट बायोइलेक्ट्रिसिटी”* के नाम से जिस विज्ञान को पढ़ाया जाता है, उसकी नींव बोस ने ही रखी थी।

वायरलेस संचार के वास्तविक अग्रदूत

बहुत कम लोग जानते हैं कि वायरलेस संचार (Radio waves) की खोज एवं प्रयोगात्मक प्रदर्शन मार्कोनी से पहले बोस ने किया था।

1895 में कलकत्ता में बोस ने 1 किमी दूर तक वायरलेस संकेत सफलतापूर्वक भेजकर दिखाया था।

उनका उपकरण अत्यंत उन्नत था, पर उन्होंने वैज्ञानिक ज्ञान को व्यापार नहीं, मानवता की सेवा के लिए समर्पित किया, इसलिए उन्होंने पेटेंट की दौड़ में भाग नहीं लिया।

आज कई वैज्ञानिक इतिहासकार मानते हैं कि यदि उस समय उनका कार्य अधिक प्रचारित होता, तो वायरलेस संचार के जनक के रूप में बोस का नाम विश्वभर में प्रमुखता से दर्ज होता।

भारतीय वैज्ञानिक चेतना का निर्माण

जगदीश चन्द्र बोस केवल प्रयोगशाला में ही महान नहीं थे, वे एक सांस्कृतिक व्यक्तित्व भी थे।

उन्होंने यह सिद्ध किया कि ज्ञान, शोध और नवाचार केवल पश्चिम की बपौती नहीं हैं—भारतीय मस्तिष्क भी उतना ही तेज, सृजनशील और वैज्ञानिक है।

उनकी जीवन यात्रा युवा वैज्ञानिकों के लिए एक संदेश है—

बाधाएँ आएंगी,

संसाधन कम होंगे,

मान्यता देर से मिलेगी,

लेकिन सत्य और शोध का पथ अंततः विश्व को झुकाने की शक्ति रखता है।

सम्मान और विरासत

उनके योगदान के सम्मान में भारत सरकार ने

अनेक अनुसंधान केंद्र

संस्थान

और पुरस्कार

उनके नाम पर स्थापित किए हैं।

उनकी खोजें आज भी वैज्ञानिकों को प्रेरित करती हैं, और उनका क्रेस्कोग्राफ आधुनिक शोध का आधार बना हुआ है

डॉ. जगदीश चन्द्र बोस केवल एक वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि भारत की वैज्ञानिक आत्मा के प्रतीक थे।

उन्होंने यह बताया कि प्रकृति की प्रत्येक वस्तु जीवंत है, संवाद करती है और प्रतिक्रिया देती है। उनका जीवन सिखाता है कि विज्ञान में विनम्रता और समर्पण सबसे बड़ी शक्ति है।

उनकी शोध-दृष्टि, सादगी और भारत के प्रति गहरी निष्ठा आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करती रहेगी।

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